जीवन का लक्ष्य क्या होना चाहिए, इस बारे में पिछले दिनों एक बहुत ही रोचक कथा पढ़ने को मिली. आप भी उसका आनंद लें. (An Interesting Story of Father and Son)

एक बार की बात है कि एक गांव में एक बुद्धिमान व्यक्ति रहता था. वह खुद तो गांव का मुखिया था, लेकिन उसका बेटा बहुत नालायक था. बेटा कुछ बड़ा करना चाहता था, लेकिन उसका काम वैसा न था. वह घोर आलसी था और ज्यादातर सोते हुए कल्पना की दुनिया में डूबा रहता. उसे समझाने, धमकाने के बाद भी उस पर कोई असर न पड़ा. समय के साथ वह बुद्धिमान व्यक्ति बूढ़ा होने लगा. (An Interesting Story of Father and Son)

वह अपने बेटे को लेकर बहुत चिंतित रहता था. उसे लगा कि बेटे को कुछ तो ऐसा देकर जाना चाहिए कि वह अपना और अपने परिवार की देखभाल कर सके. उसने बेटे को अपने पास बुलाकर कहा, ‘बेटा, तुम्हें अब जिम्मेदारी लेना सीखना चाहिए. मैं चाहता हूं कि तुम इस जीवन के उद्देश्य को समझने की कोशिश करो और उसे हमेशा याद रखो. इस तरह तुम खुश रहते हुए आनंद में अपना जीवन जी पाओगे.’ ऐसा कहते हुए उसने बेटे को एक बैग पकड़ाया, जिसके अंदर चार किस्म के मौसमों के मुताबिक चार तरह के कपड़े रखे हुए थे. उसमें कुछ खाने-पीने का सामान, थोड़े पैसे और एक नक्शा भी था. बेटा सामान देख बहुत हैरान हुआ. तब पिता ने कहा, ‘मैं तुम्हें एक खजाना ढूंढने का काम दे रहा हूं. मैंने इसमें एक नक्शा दिया है. इस नक्शे के सहारे तुम्हें उस खजाने तक पहुंचना है.’

बेटे को पिता का आइडिया बहुत पसंद आया. अगले दिन वह खजाने की तलाश में निकल पड़ा. उसे जंगलों, पहाड़ों, पठारों, सूखे प्रदेशों से होते हुए जाना था. दिन हफ्तों में बदले, हफ्ते महीनों में. रास्ते में उसे लोग मिले, जिन्होंने उसे भोजन दिया, रहने को जगह दी. धीरे-धीरे ऋतु बदली और उसके साथ आसपास का परिदृश्य भी. लेकिन वह चलता रहा. करीब एक साल तक चलते रहने के बाद वह अपनी मंजिल पर पहुंचा. वह एक खड़ी पहाड़ी थी. नक्शे के मुताबिक इस पहाड़ी पर एक पेड़ था, जिसके नीचे खजाना छिपा हुआ था.

पेड़ खोजने के बाद उसने आसपास, नीचे, ऊपर हर जगह तलाश की, लेकिन खजाना नहीं मिला. वह दो दिन तक खजाना खोजता रहा. तीसरे दिन तक वह बुरी तरह थक गया और अपने पिता के झूठ से दुखी हो उसने वापस लौटने का फैसला किया. लौटते हुए फिर से उसने ऋतुओं को बदलते देखा. उसने बदलते मौसम के खूबसूरत रंगों का भरपूर आनंद लिया. उसने वसंत में फूलों को खिलते देखा, मॉनसून में तितलियों और चिड़ियों के रंग देखे, सूर्योदय और सूर्यास्त के जादुई नजारे देखे. वह नदी की कल-कल सुनते हुए कई दिनों तक नदी के साथ रहा, जंगलों का सन्नाटा सुनते हुए जंगलों में ही खो गया. चूंकि उसका घर से लाया भोजन कभी का खत्म हो चुका था, उसने अपने भोजन के लिए शिकार करना सीखा, रहने के लिए जगह बनाना और अपनी सुरक्षा का इंतजाम करना सीखा.

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उसने सूरज की स्थिति देखकर समय का अनुमान लगाना भी सीख लिया. वह उन लोगों से फिर मिला, जिन्होंने जाते हुए उसकी मदद की थी. उसने उनके लिए काम करके उनका कर्ज उतारा. घर पहुंचने तक उसे अहसास हुआ कि उसे घर से निकले दो साल से ज्यादा समय हो गया था. वह सीधे अपने पिता के पास पहुंचा. An Interesting Story of Father and Son

‘पिताजी!’ उसने पिता को आवाज लगाई. बेटे को देखते ही पिता बिस्तर से कूदकर उसके पास आए. बेटे को गले लगाते हुए उन्होंने पूछा, ‘बेटा! कैसी रही तुम्हारी यात्रा?’

‘यात्रा बहुत रोमांचक थी पिताजी, पर मुझे अफसोस है कि मैं आपके लिए खजाना खोजकर नहीं ला पाया. मेरी कोशिश के बावजूद मुझे खजाना नहीं मिला. हो सकता है मुझसे पहले कोई और वहां पहुंचकर खजाना ले गया’, पिता को यह सब बताते हुए उसे खुद पर अरश्चर्य हुआ, क्योंकि वह पिता से नाराज न था, बल्कि उनसे माफी मांग रहा था.

‘वहां कोई खजाना था ही नहीं बेटे’, पिता ने रहस्य खोला.

‘तब आपने मुझे वहां क्यों भेजा?’, बेटे ने हैरान होते हुए पूछा.

‘मैं तुम्हें जरूर बताऊंगा कि मैंने ऐसा क्यों किया. पर पहले तुम बताओ तुम्हारी यात्रा कैसी रही?’

‘जाते हुए तो अच्छी नहीं थी. मुझे चिंता थी कि मेरे पहुंचने से पहले कोई और न खजाना ले जाए, इसलिए मैं दिन-रात बिना आराम किए चलता रहा. लेकिन लौटते हुए मैंने यात्रा का भरपूर आनंद लिया. बहुत-सी नई चीजें सीखीं. सच बताऊं तो लौटते हुए ही मैंने जीवन को जीना सीखा, मुझे खजाना न खोज पाने का भी कोई दुख नहीं हुआ.’ An Interesting Story of Father and Son

‘मैं तुम्हें यही तो सिखाना चाहता था बेटे कि कैसे हमें जीवन में कोई न कोई लक्ष्य रखना चाहिए. लेकिन अगर हम सिर्फ लक्ष्य को ही दिमाग में रखें, बाकी सब भूल जाएं, तो हम जीवन के असली खजाने से वंचित रह जाते हैं. असली सच यह है कि जीवन का कोई लक्ष्य नहीं है, सिवाय उसे भरपूर जीने और हर दिन के साथ और अनुभवी होने के. जीवन का लक्ष्य उसे भरपूर जीना है, उसके अप्रतिम अनुभवों को आत्मसात करना है, बिना किसी डर के और पूरे उत्साह के साथ उसके नए और गहरे अनुभवों से गुजरना है.’

सुन्दर चंद ठाकुर

सुन्दर चन्द ठाकुर

कवि, पत्रकार, सम्पादक और उपन्यासकार सुन्दर चन्द ठाकुर सम्प्रति नवभारत टाइम्स के मुम्बई संस्करण के सम्पादक हैं. उनका एक उपन्यास और दो कविता संग्रह प्रकाशित हैं. मीडिया में जुड़ने से पहले सुन्दर भारतीय सेना में अफसर थे. सुन्दर ने कोई साल भर तक काफल ट्री के लिए अपने बचपन के एक्सक्लूसिव संस्मरण लिखे थे जिन्हें पाठकों की बहुत सराहना मिली थी.

लेखक के प्रेरक यूट्यूब विडियो देखने के लिए कृपया उनका चैनल MindFit सब्सक्राइब करें

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