मेरे लिए यादों का एक शहर. कई वर्षों बाद आज यहां लौटना हुआ. इसे लौटना भी क्या कहूँ? बस ये वापसी कुछ दिनों की थी. कुछ काम निपटाकर फिर वापस लौट जाना था. आज की मुलाक़ातों का सिलसिला ख़त्म कर लौट रहा था तो एक ऑटो पर सवार हो गया. ऑटो में एक नई उम्र का मासूम सा बच्चा पहले से ही सवार था. जिसने अपनी गोद में एक बैग रखा था और शांत भाव से सड़कों पर दौड़ती जिंदगियों को देख रहा था. खैर… मैं सब बातों से बेख़बर अपने मोबाइल पर व्यस्त था. अचानक मोबाइल की बैटरी खत्म होने पर मैंने बड़े अनमने भाव से मोबाइल को जेब में रखा और मैं भी बाहर की ओर देखने लगा. मेरी पुरानी यादों के शहर में काफी कुछ बदला-बदला सा लग रहा था. मैं रोमांचित था. देहरादून की सड़कें, यहां के दृश्य, मुझे मोबाइल की आभासी दुनिया से कहीं अच्छे लग रहे थे. (An anecdote from the city Dehradun)
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मैं देखता हूँ कि सड़क के किनारे खड़े एक बुज़ुर्ग व्यक्ति हमारी ऑटो रिक्शा को रोकने का इशारा करते हैं. उन्हें ऑटो में बैठने में दिक़्क़त हो रही थी तो मेरे साथ बैठे लड़के ने बाहर निकलकर उनको सहारा दिया. मैंने भी उनका हाथ पकड़ा और वे ऑटो में बैठ गए. ऑटो में अब हम तीन लोग थे. तीनों की निगाहें बाहर की तरफ थीं. कुछ दूर चले तो सबसे बाद में बैठे उन बुज़ुर्ग ने ऑटो रोकने का इशारा किया. वे उतरे और ऑटो वाले को किराया देने के लिए जेब से सिक्के निकालकर गिनने लगे. साथ में बैठे लड़के ने उनकी हथेली पर रखे सारे सिक्के निकालकर वापस बुजुर्ग की जेब में रखते हुए कहा-‘रहने दीजिए मैं दे दूंगा.’ बुजुर्ग कुछ कह पाते इससे पहले ऑटो आगे की ओर बढ़ गया. मैं उस लड़के की इस बात से बड़ा प्रभावित हुआ. सोचने लगा कि ये इसके संस्कारों की परिणति है. मैं उस लड़के के बारे में अभी कई और धारणाएं बनाता कि तभी वह ऑटो रोकते हुए नीचे उतरकर ड्राइवर को बुज़ुर्ग और अपने किराए के पैसे देने लगा. तभी मैंने न जाने क्यों अपना हाथ उसकी उस जेब के ऊपर रख दिया जिससे उसे पैसे निकालने थे. मैं ऑटो वाले को बोला—‘चलो तुम चलो.‘ ऑटो आगे बढ़ गया. मैंने पीछे मुड़कर देखा तो वह लड़का मुस्कुराता हुआ हाथ हिला रहा था.
मैं सोचने लगा… अगर मेरे मोबाइल की बैटरी खत्म न होती तो शायद आज मैं खूबसूरत शहर के खूबसूरत लोगों से जीने का नया अंदाज़ न सीख पाता. देहरादून मुझे कुछ न कुछ सिखा ही देता है. इसीलिए बहुत अज़ीज़ है मुझे… यादों का शहर देहरादून.
मूल रूप से गांव डाबर, पौड़ी-गढ़वाल के रहने वाले उपान्त डबराल फिलहाल दिल्ली में डाक्यूमेंट्री फिल्म मेकर और न्यूज प्रोड्यूसर हैं.
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