फ़िल्मों की बहार उर्फ़ जाने कहां गए वो दिन – 2

6 years ago

(पिछली क़िस्त से आगे) सिनेमा की टिकटों के लिए खिड़की खुलने से काफी पहले ही लम्बी क़तार लग जाया करती…

फ़िल्मों की बहार उर्फ़ जाने कहां गए वो दिन – 1

6 years ago

जिस तरह पुराने हीरो अब हीरो नहीं रहे, एक दम ज़ीरो हो गए हैं या दादा-नाना बनकर खंखार रहे हैं,…

दो दशकों में सर्वाधिक उत्पादक रहा संसद का यह मानसून सत्र

6 years ago

वर्ष 2018 का संसद में मानसून सत्र 10 अगस्त को समाप्त हो चुका है. 10 अगस्त लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन…

चलो दिलदार चलो – एक म्यूजिक डायरेक्टर थे गुलाम मोहम्मद

6 years ago

साहिर लुधियानवी ने लिखा था - “ये बस्ती है मुर्दापरस्तों की बस्ती”. ताज़िन्दगी आदमी इस मुगालते में जीता है कि…

उत्तराखण्ड की एक बीहड़ यात्रा की याद – 3

6 years ago

रूद्रप्रयाग जा रही रोडवेज की खटारा बस की सीट के नीचे बैग रख रहा था कि कातर भाव से आकाश…

आम के नाम

6 years ago

आम तो बस आम है. इसका कोई जवाब नहीं. खास ही नहीं, आम आदमी का भी मनपसंद फल. देश भर…

समाचारों के प्रस्तुतीकरण के वैचारिक चरित्र

6 years ago

पत्रकारिता की पाठ्यपुस्तकों में यह बताया जाता है कि हर समाचार में ‘कौन’, ‘क्या’, ‘कब’, ‘कहां’, ‘क्यों,’ और ‘कैसे’- का…