इतने विशाल हिंदी समाज में सिर्फ डेढ़ यार : छठी क़िस्त

6 years ago

फूलन और मनोहरश्याम की जुबान के बगैर कोई लेखक बन ही कैसे सकता है जैसे पराई धरती पर पौधा नहीं…

रामलीला पर्वतीय जनजीवन की ‘लाइफ-लाइन’

6 years ago

रामलीला भारतीय जनमानस की एक ऐसी तस्वीर है, जिसमें कोई भी भारतीय अछूता नहीं है. राम ऐसे जननायक थे कि…

माफ़ करना हे पिता – 5

6 years ago

(पिछली क़िस्त: माफ़ करना हे पिता - 4) माँ की मौत के साल बीतते-बीतते पिता जब्त नहीं कर पाये और…

स्वतंत्रता आन्दोलन में उत्तराखण्ड की महिलाएं भाग – 3

6 years ago

पिछला भाग जागृत महिला समाज के इन प्रयत्नों के फलस्वरूप ही कुछ समय के लिए पौड़ी व नन्दप्रयाग में महिलाओं…

विचारोत्तेजक सवाल छोड़ती जाती है ‘सन ऑफ मंजीत सिंह’ फिल्म

6 years ago

लगता है कि अच्छी फिल्मों का दौर फिर से लौट आया है. बॉलीवुड में तो अच्छी - अर्थपूर्ण फिल्में बन…

रहस्यमयी झील रूपकुंड तक की पैदल यात्रा – 5

6 years ago

(पिछली क़िस्त का लिंक - रहस्यमयी झील रूपकुंड तक की पैदल यात्रा - 4) सुबह उजाला हुआ तो मैं बाहर…

रंग उसे बीजगणित की जटिल वीथियों में ले जाते थे

6 years ago

मून फ्लोरिस्ट वो जब भी इस दुकान के आगे से गुज़रता, हल्का सा ठिठक जाता.. . और सोचने लगता कि…

अंतर देस इ उर्फ़… शेष कुशल है! भाग – 2

6 years ago

पिछली कड़ी गुडी गुडी डेज़ -अमित श्रीवास्तव बतकुच्चन मामा फैल गए थे. ये बात उनको नागवार गुज़री थी. वैसे तो…

भारतवासी होने का सौभाग्य तो आम से भी बनता है

6 years ago

आम के बाग़ -आलोक धन्वा आम के फले हुए पेड़ों के बाग़ में कब जाऊँगा? मुझे पता है कि अवध,…

मीटू इज स्वीटू

6 years ago

गुजरात के शहरों और कस्बों से हिंदी बोलने वाले बिहार, यूपी, एमपी के भइया लोग देसी गालियां और लात देकर…