समाज

पहाड़ की तीस हज़ार कहानियां कह सकती हैं अमित साह की ये तीन तस्वीरें

काफल ट्री के नियमित पाठक युवा फोटोग्राफर अमित साह के नाम से परिचित हैं. उनके काम की अनेक शानदार बानगियाँ आपको समय-समय पर दिखाते रहे हैं.

अमित साह की तस्वीरों की एक ख़ास बात यह है कि उनकी हर तस्वीर कहानी कहती है. आप घंटों उनकी खीचीं तस्वीरें देख सकते हैं और न जाने कितनी कहानियां कह सकते हैं. आज अमित की तीन तस्वीरें और तस्वीरों के पीछे की कहानियां :

स्कूल चलें. खाती गांव के पास बागेश्वर

शहरों में बच्चे जहाँ घर से स्कूल और स्कूल से घर अमूमन गाड़ियों में ही जाते हैं, वही पहाड़ो में आज भी बच्चे पैदल ही स्कूल जाते हैं. कभी 6-7 किलोमीटर होता है घर से स्कूल तो कभी 10-12 किलोमीटर भी. फिर वापस भी वैसे ही पैदल आना हुआ. ये रास्ते आसान नही होते. कभी ऊँची पहाड़िया तो कभी तीखी ढलान, कभी संकरा रास्ता तो कभी नदी, नाले और कच्चे लकड़ी के पुल. किसी ऊँचे पहाड़ से पतला से रास्ता कई बार ऐसा होता है कि हम जैसो के रौंगटे खड़े हो जाये. पर ये बच्चे बेफिक्र होकर चलते हैं. मन मे यही आस होती है कि पढ़ लिखकर कुछ बनना है. इन कठिन रास्तो में सभी बच्चे कई कारणों से अपनी पढ़ाई पूरी नही कर पाते है. 12वी तक के स्कूल की पढ़ाई की चुनौती को पूरा करने के बाद भी उच्च शिक्षा के लिए बहुत दूर ही जाना होता है, वहाँ किराये में रहकर पढ़ना सबके लिए संभव नही होता. खैर जो भी हो पर दूर पहाड़ो की यात्राओं में इन स्कूल आते जाते बच्चो को मैंने आज तक उदास नही देखा, हमेशा हँसते गाते और हर एक राहगीर से ‘नमस्ते’ कहते हुए देखा है.

बैगनी बुरांश के बीच एक कहानी. पिंडारी ग्लेशियर के पास

पिंडारी ग्लेशियर की यात्रा के दौरान बैंगनी बुरांश से भरा जंगल देखने का मौका मिला. कई तस्वीरे भी ली पर केवल फूल ही नही खींचना चाह रहा था तो थोड़ा इंतज़ार करने का फैसला किया. कुछ इंतज़ार के बाद दूर से कुछ लोगो को आते देखा तो जगह संभाल कर कुछ फोटो खींच ली. दो आदमी जो घोड़ो के साथ थे और एक बच्ची जो बर्फ को हाथो में लिए आइसक्रीम की तरह चूसते हुए आ रही थी. अब आपको बता दूं कि ये लोग कहाँ जा रहे हैं. पुराने समय से ही पहाड़ के वो लोग जो घोड़ो का काम करते है या उन्हें पालते है, मई जून की गर्मियों में बर्फ कम हो जाने पर अपने घोड़ो को उच्च हिमालयी बुग्यालों में छोड़ कर आ जाते है, जहाँ वो खूब सारी घास खाकर हट्टे कट्टे हो जाते है. फिर अक्टूबर के आसपास उन्हें वापस ले आते हैं. ये चलन काफी पुराना है. ऊपर बुग्याल में ये सारे घोड़े जो अलग अलग जगहों से आये होते हैं, सुरक्षा के लिहाज से ही शायद अपना एक झुंड बना लेते है और साथ ही घास खाते और घूमते है. एक घोड़ा मालिक से जब मैंने ये पूछा कि क्या इतने महीने ऊपर रहने के बाद ये घोड़े आसानी से वापस आ जाते हैं तो घोड़ा मालिक ने बताया कि बड़ा मुश्किल होता है वापसी के वक़्त. घोड़ा अपने झुंड से बिछुड़ना नही चाहता और मालिक को देखते ही दूर भाग जाता है, बड़ी मुश्किल से अनेक उपाय करके वापस लाया जाता है.  ये बच्ची जो बर्फ खाते हुए आ रही है, इससे बात करने पर पता चला कि ये अपने पिता के साथ आयी है और अपने घोड़े को ऊपर छोड़ने जा रही है और जिससे ये बहुत प्यार करती है.

घोड़े को नदी पार करवाता मालिक. द्वाली

उत्तराखंड में पर्यटन की अपार संभावनाएं है पर यहाँ सरकारे केवल कुछ खास जगहों पर ही ध्यान देती आयी हैं, बाकी सबको लगभग अनदेखा ही किया जाता है या फिर केवल खानापूर्ति कर दी जाती है. पिण्डारी ग्लेशियर का ट्रैक बरसो पुराना हैं पर पिण्डारी से लगभग 12 किलोमीटर पहले द्वाली से पहले पिंडर नदी पर 2 जगहों पर पक्के पुल की बहुत ही ज्यादा ज़रूरत है पर पिछले 6 सालों से जब से मैं देख रहा हूँ, कोई बदलाव नही हुआ. दोनों कच्चे पुल भगवान भरोसे हैं. हर तेज़ बारिश में ये बह जाते हैं और लोकल लोगो के लिये रोजगार वही खत्म हो जाता है. फिर पास वाले गाँव के लोग मिलकर दोबारा से पुल तैयार करते हैं और यात्री जान जोखिम में डाल कर भगवान का नाम लेकर इन पुलों को पार करते हैं. साथ ही सामान ले जा रहे घोड़ो को उनके मालिक भी इसी तरह ये पुल पार करवाते हैं. पिंडर नदी का बहाव इतना तेज होता है कि अगर कोई इसमें गिर जाता है तो उसका बचना असंभव है . 

काफल ट्री के फेसबुक पेज को लाइक करें : Kafal Tree Online

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Girish Lohani

Recent Posts

सर्दियों की दस्तक

उत्तराखंड, जिसे अक्सर "देवभूमि" के नाम से जाना जाता है, अपने पहाड़ी परिदृश्यों, घने जंगलों,…

1 day ago

शेरवुड कॉलेज नैनीताल

शेरवुड कॉलेज, भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित किए गए पहले आवासीय विद्यालयों में से एक…

1 week ago

दीप पर्व में रंगोली

कभी गौर से देखना, दीप पर्व के ज्योत्सनालोक में सबसे सुंदर तस्वीर रंगोली बनाती हुई एक…

1 week ago

इस बार दो दिन मनाएं दीपावली

शायद यह पहला अवसर होगा जब दीपावली दो दिन मनाई जाएगी. मंगलवार 29 अक्टूबर को…

1 week ago

गुम : रजनीश की कविता

तकलीफ़ तो बहुत हुए थी... तेरे आख़िरी अलविदा के बाद। तकलीफ़ तो बहुत हुए थी,…

2 weeks ago

मैं जहां-जहां चलूंगा तेरा साया साथ होगा

चाणक्य! डीएसबी राजकीय स्नात्तकोत्तर महाविद्यालय नैनीताल. तल्ली ताल से फांसी गधेरे की चढ़ाई चढ़, चार…

2 weeks ago