यूं तो आलू दुनिया में सबसे ज्यादा इस्तेमाल की जाने वाली सब्जियों में है लेकिन इसे वह इज्जत नहीं बख्शी जाती जिसकी हकदार ये है. माना जाता है कि इसका अपना कोई गुण और चरित्र नहीं है, ये हर सब्जी के रंग और स्वाद में ढल जाता है. कुल मिलाकर प्रचंड लोकप्रियता के बावजूद आलू को बहुत आम माना जाता है. लेकिन उत्तराखण्ड में ऐसा नहीं है. (Alu Ke Gutke The most popular dish of Uttarakhand)
उत्तराखण्ड में आलू का रोजमर्रा के जीवन में ख़ास महत्त्व है. लोहे की कढ़ाई में सिर्फ हल्दी, धनिया, नमक, मिर्च के मसाले में आलू के भूनकर उस पर साबुत धनिए, जीरे या जखिया का तड़का और हरे धनिए की गार्निशिंग करके परोसे जाने वाले आलू के गुटके उत्तराखण्ड का सबसे लोकप्रिय स्नेक्स है. तली-भुनी साबुत लाल मिर्च और भांग की चटनी के साथ इसका जायका हर व्यंजन के स्वाद को बौना साबित कर देता है.
मैगी, चौमीन-मोमो के पांव पसारने के बाद भी आलू के गुटकों ने अपना नंबर वन का दर्जा कायम रखा है. कई महीनों तक खराब न होने के अपने गुण के कारण उत्तराखण्ड के दुर्गम पहाड़ी क्षेत्रों में आलू की सब्जी ही सबसे ज्यादा खायी जाती है.
आलू के गुटके उत्तराखण्ड के चायखानों और पहाड़ी क्षेत्रों के बस स्टॉपों पर सबसे ज्यादा खाए जाते हैं. गर्मागरम चाय के साथ आलू के गुटकों का काले चने, रायता, पकौड़ियों आदि के साथ फ्यूजन पहाड़ी मुसाफिरों की पहली पसंद है. स्थिति यह है कि चंदा देवी, दोगांव, ज्योलीकोट, कैंची, गरमपानी जैसी कई जगहों के आलू के गुटके उत्तराखण्ड ही नहीं दूर-दराज तक मशहूर हैं.
लोहे की कढ़ाई में भुनी मिर्च खोंसकर हरे धनिए से सजे आलू सैलानियों को बरबस आकर्षित कर अपने मोहपाश में जकड़ लेते हैं. आलू को सज-धज में देखकर सैलानी इसकी तफ्तीश में जुट जाते हैं. उन्हें यह जानकार हैरानी होती है कि आलू को स्नैक्स के तौर पर भी खाया जाता है. लेकिन इसका जायका हर संशय का समाधान कर देता है.
इसके अलावा हर सामूहिक जलसे में भी आलू के गुटके ही संकटमोचक का काम करते हैं. घर का लेंटर पढ़ना हो, फसल की कटाई-बुवाई या फिर बैठकी-खड़ी होली का जश्न हर मौके पर आलू के गुटके स्नैक्स के तौर पर परोसे जाते हैं. पेट भरना हो तो इसके साथ पूरियां खायी जाती हैं. आलू के गुटके और पूरी की यह जोड़ी लम्बी बस, रेल या पैदल यात्राओं में भी पहाड़ियों की हमसफ़र हैं. घर से पोटली में बांधकर यात्रा के लिए साथ ली जाने वाली आलू-पूरी रास्ते में आपके पैसे तो बचाती ही है बाहर का बेस्वाद संक्रमित भोजन खाने से भी आपको बचाती है.
अनुसंधान बताते हैं की पेरू में 7000 साल से आलू की खेती की जा रही है. पेरू से ही आलू ने पहले यूरोप और बाद में पूरी दुनिया में अपने पांव पसारे. जब यह भारत पहुंचा तो यहां इससे समोसा, टिक्की, कचौड़ी, चिप्स, भरवा परांठे, नान जैसे ढेरों व्यंजन बना डाले. इसी कड़ी में पहाड़ में आलू के गुटके ठीक-ठीक कबसे बनना शुरू हुए इसकी जानकारी तो नहीं लेकिन पीढ़ियों से इन्हें खाया जा रहा है. इस दौरान खानपान में कई बदलाव हुए लेकिन पहाड़ी रसोई में आलू का दर्जा कभी कम नहीं हुआ. उत्तराखण्ड का प्रादेशिक व्यंजन घोषित करने की दौड़ में आलू के गुटके पहली पंक्ति में होंगे.
आलू में भरपूर मात्रा में कार्बोहाइड्रेड तो है ही इसके अलावा विटामिन, कैल्शियम, आयरन जैसे कई अन्य पौष्टिक तत्व भी हैं. इसके अलावा आलू के इस्तेमाल से त्वचा में भी निखार आता है.
-सुधीर कुमार
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