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ऑल वैदर रोड के बहाने उत्तराखंड की सड़कों की हालत

समय आ गया है कि इस बात पर बहस की जाय उत्तराखंड राज्य में सड़क ने विकास किया है या विनाश. राज्य में जितना अंदर सड़क गयी है उतना पलायन की दर वहां बड़ी है लेकिन जिन जगहों पर सड़क गयी है वहां के लोगों का जीवन स्तर भी बड़ा है.

इस राज्य क्षेत्र में सड़क निर्माण की पहली बार भारत सरकार को तब सूझी जब भारत में चीन ने आक्रमण किया. सरकार को तब पहली बार लगा कि इस क्षेत्र में भी सड़क का निर्माण किया जाना चाहिये. विश्व भर में प्रसिद्ध चिपको आंदोलन के मूल कारणों में एक मुख्य कारण सड़कों के निर्माण के लिये किया जाने वाला अंधाधुंध वन कटान का विरोध था. जिसे अब केवल गौरा देवी के एक जंगल से चिपकने की घटना तक सीमित कर दिया गया है जबकि यह एक दशक तक लोगों के वन अधिकारों की लड़ाई है.

प्रधानमंत्री सड़क योजना शुरू होने के साथ पूरे देश की तरह उत्तराखंड के गावों में भी सड़कों का अंधाधुंध निर्माण शुरू हुआ. मनरेगा ने सड़क निर्माण के कार्य और अधिक गति देने का काम किया. उत्तराखंड में इन सड़कों से गावों से बाहर जाने के रास्ते तो खोलने का काम किया लेकिन इनका निर्माण कभी इस तरह नहीं किया गया सड़क बनने से कोई गांव बसा हो या किसी सड़क ने सिवाय ड्राइविंग के गांव के युवाओं को कोई नवीन रोजगार दिया हो.

उत्तराखंड की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति को ध्यान में रखकर एक भी सड़क का निर्माण किया गया हो ऐसा मुश्किल है. च्यूंकि यहां अधिकांश सड़कों का निर्माण केंद्र द्वारा दिये फंड द्वारा होता है जिसमें त्वरित और अधिक पैसा आता है. केंद्र के अधिकारी इतनी जहमत कम ही उठाते हैं कि उत्तराखंड के किसी गांव में आये और सर्वे रिपोर्ट की जांच करें फिर पर्यावरण रिपोर्ट का आंकलन करें और सड़क बनाने की अनुमति दें.

इसका फायदा उठाकर यहां की सड़कें स्थानीय अधिकारी अपने फायदे के अनुसार करते हैं जैसे एक सड़क जो एक किमी तक बननी हो उसे जलेबी की तरह घुमाकर चार किमी बनाया जाता है. अपने स्थानीय गावों को जाने वाली सड़कों में हम सब इसे देख सकते हैं.

फोटो : अखिलेश बोहरा

अब अगर बात की जाय सरकार के एक ड्रीम प्रोजेक्ट ऑल वैदर रोड की तो इसके जो लाभ स्थानीय लोगों को दिखाये जा रहे हैं वैसा इस प्रोजेक्ट के मूल में नहीं है. प्रोजेक्ट के मूल पहली बात यह है कि भारत और चीन के बीच बड़ते तनाव के बीच भारत के लिये जरुरी हो गया है कि चीन की सीमा को जाने वाली सड़कें चौड़ी और मजबूत हों. ऑल वैदर रोड का प्रयोग चीन के भारत पर इस क्षेत्र में दबाव को कम करने के लिये किया जा रहा है.

दूसरा कारण राजनैतिक है. इस ड्रीम प्रोजेक्ट का नाम पढ़े तो चारधाम यात्रा ऑल वैदर रोड है. इसके पीछे एक वाजिब तर्क यह है कि सरकार दक्षिण भारत के राज्यों के हिन्दू वोट घेरने की तैयारी में हैं. प. बंगाल, उड़ीसा, कर्नाटक, तमिलनाडु जैसे दक्षिण के राज्य जहां के बहुत से यात्री हर साल उत्तराखंड में धार्मिक यात्रा के लिये आते हैं उन्हें आकर्षित करने के लिये इसे चारधाम यात्रा ऑल वैदर रोड नाम दिया गया है.

सरकार द्वारा बोला जा रहा सबसे बड़ा झूठ है चारधाम यात्रा ऑल वैदर रोड. ऑल वैदर रोड का अर्थ है हर मौसम में खुलने वाली रोड. जिसे भी इन चार धामों के विषय में जानकारी होगी वह जानता होगा कि यह धाम वर्ष में कम से कम तीन से चार महिना बंद रहते हैं. ऐसे में चारधाम ऑल वेदर रोड जैसा कोई कांसेप्ट ही नहीं बनता.

कायदे से देखा जाये तो एक सवाल यह भी है कि क्या इन सड़कों के निर्माण की आवश्यकता वास्तव में थी? दिमाग में जोर डालकर याद करेंगे तो उत्तराखंड में सड़क न होना परेशानी नहीं है सड़क का रखरखाव बड़ी परेशानी है. सरकार ने सड़क के रखरखाव के लिये कदम उठाने के बजाय सड़कों को चौड़ा कर दिया.

सरकार इस सड़कों से रोजगार की बात कर रही है लेकिन सरकार सड़क से रोजगार क्या देगी इसका जवाब नहीं दे रही है. लेकिन इतना साफ़ है कि इससे रोजगार जरूर छिन जायेगा. जैसे अभी तक जिन चार धाम यात्रा में चार दिन का समय लगता था वो दो दिन में पूरी होगी. पहला नुकसान तो होटल वालों का, जो कि मुख्य रूप से स्थानीय लोगों के थे. रास्ते में पड़ने वाली हजारों दुकानें जिनमें पहले दिन भर में सैकड़ों गाड़ियां खड़ी रहती थी.

इस बात को समझना बेहद जरुरी है कि धार्मिक यात्रा लम्बे होने के बावजूद कभी भी उसकी संख्या में कमी नहीं होती है और यह अनुमान बिलकुल ही गलत है कि एक धार्मिक यात्रा पर आया हुआ यात्री उसके आस-पास के पर्यटक क्षेत्रों में रूचि दिखायेगा जब तक धर्म से जुड़ा अन्य कोई हिस्सा उससे न जोड़ा जाये.

उदाहरण के स्वरूप आप पूर्णागिरी मंदिर यात्रा को लीजिये. पूर्णागिरी मंदिर की यात्रा तब तक अधूरी मानी जाती है जब तक आप सिद्ध बाबा के दर्शन नहीं कर लेते तब तक आपकी यात्रा पूरी नहीं मानी जाती. यह मान्यता किसने कब कैसे बनायी कोई नहीं जानता लेकिन एक सच यह है कि सिद्ध बाबा के मंदिर के पास एक बड़ी बाजार है जिसमें जैकेट,जूते और न जाने क्या क्या सामान मिलता है. यह बाजार केवल सिद्ध बाबा के कारण ही चल रही है.

इसका एक अन्य हालिया उदाहरण देखिये. गंगोत्री धाम में गंगोत्री की मूर्ति शीतकाल में मुखबा गांव के मंदिर में रहती है. यहां से गंगोत्री का डोला प्रत्येक वर्ष गंगोत्रीधाम जाता है जिसमें हजारों की भीड़ रहती थी. इसी तरह कपाट बंद होने पर भी गंगोत्री का डोला जाता है. इस यात्रा में बहुत भीड़ होती थी अनेक श्रद्धालु इस यात्रा में जुड़ते थे जिनमें बाहर से आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या भी होती थी. पिछले कुछ वर्षों में इस यात्रा में आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या में तेजी से कमी देखी गयी है जिसका कारण प्राकृतिक आपदा का डर बताया जा रहा है. एक ही गंगोत्री के दर्शन के लिये धार्मिक यात्रा करने वाला यात्री दो अलग-अलग जगह रूचि नहीं लेता है फिर प्राकृतिक स्थलों में उसकी रूचि को बढ़ाना कितना मुश्किल काम है.

भारतीय सड़क एवं परिवहन मंत्रालय द्वारा तैयार किया गया मैप

सड़क के चौड़े होने से प्रवासी उत्तराखंडियों को फायदा होगा वाली बात आधा सच है. हकीकत यह है कि प्रवासी उत्तराखंडी साल में दीवाली, होली और गर्मियों की छुट्टी में पहाड़ आता है. इसके लिये वह प्राइवेट गाड़ियों या उत्तराखंड परिवहन की बसों पर निर्भर रहता है और ये दोनों इस दौरान क्या हाल करते हैं किसी प्रवासी उत्तराखंडी से नहीं छुपा है.

कुल मिलाकर चारधाम ऑल वैदर रोड प्रोजेक्ट सरकार की अदूरदर्शीता दिखाता है. यह प्रोजेक्ट नये रोजगार की जगह एक ही स्थान पर रोजगार को सीमित कर देगा. सरकार ने इस योजना में स्थानीय लोगों की पूर्णतः अनदेखी की है. स्थानीय लोगों के पास एक फिर ड्राइविंवरी के अलावा अन्य किसी स्थान पर रोजगार का स्कोप नहीं दिखता है यह स्कोप भी चौड़ी बड़ी सड़कों के कारण जल्द खत्म होने की पूर्ण संभावना है.

इन सब मामलों के बाद अब तक हमने पर्यावरण के विषय में बात नहीं की है. पारस्थितिकी दृष्टि से अतिसंवेदनशील क्षेत्र में 900 किमी का सड़क निर्माण कार्य चल रहा है बिना किसी पर्यावरण प्रभाव आंकलन के. कानून के मुताबिक़ यदि 100 किमी से अधिक राजमार्ग का निर्माण किया जाता है तो सरकार को पर्यावरण प्रभाव आंकलन रिपोर्ट बनानी पड़ेगी. सरकार ने 900 किमी की ऑल वैदर रोड को 53 भागों में बांट दिया. न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी.

जब से ऑल वैदर रोड का निर्माण कार्य शुरू हुआ है आये दिन सड़क हादसे हो चुके हैं. सड़कों को लम्बवत काटा जा रहा है. पहाड़ को रोकने के लिये कंक्रीट कि दीवार बनायी जा रही है जो कभी भू-स्खलन को रोक ही नहीं सकती.

सड़क निर्माण से अधिक सरकार को सड़कों के रख-रखाव पर देना चाहिये केवल सड़क निर्माण से राज्य का विकास संभव नहीं है.

-काफल ट्री

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Girish Lohani

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  • I have never met a person who is this mych of negative!! How funny it is that let the public in jaam and run the business!! Only environmental point is valid..! Otherwise it's too negative!

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