Categories: Featured

बेहाल हैं उत्तराखण्ड के छोटे किसान

देश की अर्थव्यवस्था में जीडीपी का सर्वाधिक प्रतिशत कमाने वाली कृषि को लेकर जहां एक तरफ देशभर में राजनीति चरम पर है, वहीं दूसरी तरफ छोटी-छोटी जोतों के मालिक यानि छोटे स्तर के करोड़ो किसान परेशान हैं. सरकारी नीतियों के कारण उन्हें हाशिये पर धकेल दिया गया है. अब उनके सामने खुद को जीवित रखने की चुनौती आ गई है. कहीं बाढ़, कहीं अकाल तो कहीं मौसम के बदलते मिजाज़ ने पहले ही किसानों की फसलों को बर्बाद कर दिया है. सितम यह है कि उनके हितों की बात करने वाली सरकारें भी उन्हें तन्हां छोड़ चुकी है. इसकी एक बानगी उत्तराखंड के सबसे बड़े गांव बिन्दुखत्ता के किसान हैं. जो कुदरत की मार के साथ साथ कृषि संबंधी सरकार की नीतियों से भी हताश हो चुके हैं. (Agriculture Crisis in Uttarakhand)

सरकार के नियमों के अनुसार केवल खाता-खतौनीधारी किसान की उपज ही सरकारी खरीद के नियम के तहत ख़रीदे जायेंगे. इसके चलते देश भर के छोटी जोत के कई खत्तावासी किसान अपनी उपज निजी हाथों में औने-पौने दाम पर बेचने को मजबूर है. नैनीताल जिले के लालकुंआ तहसील स्थित हज़ारों बिन्दुखत्तावासी किसान धान, सोयाबीन गेहूं व अन्य कृषि उत्पादनों की सरकारी खरीद योजना के लाभ से वंचित है. इसकी आड़ में मिनी फाइनैंस और बनिया यहां के किसानों को लूट रहे हैं. उनकी किस्मत पूरी तरह बिचैलियों के रहमो करम पर निर्भर हो चुकी है. इस क्षेत्र में सभी छोटी जोत के किसान हैं जिनके ऊपर ‘बचाएगा क्या और बोयेगा क्या,’ वाली कहावत पूरी तरह चरितार्थ हो रही है. क्षेत्र में खरीफ की प्रमुख फसल धान की प्रति कुंतल लागत 2000 रुपये आती है परंतु बिचैलिया सिर्फ 1200 से 1300 के बीच खरीद रहे हैं. जबकि किसान के सिर पर बीज, खाद, जुताई आदि के निमित्त बाजार से लिये गये ऋण की अदायगी भी शेष है. इससे वह हर साल कर्ज में लगातार डूबता जा रहा है. उसके लिए खेती की लागत भी पूरी करना कठिन होता जा रहा है.

बिन्दुखत्ता में मिनी फाइनैंस के नाम पर बहुत सारे बड़े इजारेदार (पूंजीपति) व साहूकार आ गये हैं जो अनाप-शनाप चक्रवृद्धि ब्याज पर कर्ज से यहां के गरीब किसानों को लूट रहे हैं. लिये गये ऋण की समय पर अदायगी नहीं कर पाने वाले गरीब किसान की जमीन को हड़प रहे हैं. विडंबना यह भी है कि यहां किसान के पास कोई ऐसा मंच भी नहीं है जहां वह अपनी व्यथा कह सके या संकट के समय उसे मदद मिल सके. क्षेत्र के प्रमुख जन प्रतिनिधि भी किसानों की मांग पर मुंह बंद किये हैं. यह वही गांव है जहां पंडित नारायण दत्त तिवारी की सरकार के समय विद्युतीकरण, पक्की सड़कें, राजकीय इंटर कालेज, प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र, राजकीय आईटीआई, सरकारी सस्ता गल्ला, पशु चिकित्सालय, बैक व डाकघर खुलवाये गये थे. यही नहीं यहां पर रबी व खरीफ की फसलों की सरकारी समर्थन मूल्य पर खरीद के लिए सरकारी कांटे भी लगाये जाते थे.

इस संबंध में स्थानीय खत्तावसी पूर्व सैनिक किसान शंकर सिंह चुफाल का कहना है कि रबी हो या खरीफ की फसल, दोनों फसलों को हमें बिचैलिये के हाथों औने-पौने दामों में बेचना पड़ रहा है. वर्तमान में धान की खरीद के लिए निजी बिचौलियों द्वारा तय कीमत 1200 रूपये प्रति कुन्तल है जोकि सरकारी मानक से प्रति कुन्तल 600 रूपये कम है. यदि हम यहां से कहीं भी बेचने जाते है तो हमारा धान नहीं खरीदा जाता है. केवल राइस मिल के व्यापारी ही खरीद रहे है. एक अन्य किसान जीत सिंह ठकुन्ना ने बताया कि खेती किसानी उनके लिए अब घाटे का सौदा साबित होता जा रहा है. इससे उनकी लागत भी नहीं निकल पा रही है. जिससे खेती के प्रति उनकी उदासीनता बढने के चलते वह जमीन बेचने पर मजबूर है. किसान गोपाल सिंह कन्याल के अनुसार अब खेती नाममात्र की रह गयी है, जो अनाज उगाते हैं उनकी लागत भी नही निकल रही है. प्रताप सिंह बिष्ट ने कहा कि यदि सरकारी क्रय केन्द्र नहीं खोलती है तो वह इन बिचैलियों पर लगाम कसे ताकि न्यूनतम समर्थन मूल्य गरीब किसानों मिल सकें.

दलित वर्ग से आने वाले किसान शंकर राम ने कहा कि बिचैलिये की वजह से अनाज का वाजिब दाम भी नहीं मिल पा रहा है और लागत को पूरा करने के लिए ऋण लेना पड़ता है, इस ऋण के लिए सरकारी बैंक मना कर देती है. इसलिए मजबुरीवश निजी फाइनैंर्सर से उचित ब्याज दर पर ऋण लेने के लिए हम मजबूर है. इस विषय में क्षेत्रीय विधायक नवीन दुम्का ने कहा कि भूमि के दस्तावेज न होने के चलते उक्त क्षेत्र में सरकारी खरीद नहीं हो सकती है. गत वर्ष रबी की प्रमुख फसल गेहूं के समय कांटे लगाये गये थे परंतु कोई भी किसान गेहूं लेकर कांटे पर नहीं आया. वहीं क्षेत्रीय खाद्य निरीक्षक कुमाऊं मण्डल ललित मोहन रयाल ने कहा कि भारत सरकार ने 4-5 वर्ष पूर्व सरकारी खरीद के लिए खाता-खतौनी अनिवार्य कर दी जिसके कारण बिन्दुखत्ता में अब सरकारी कांटे नहीं लग रहे हैं. इस नीति से यहाँ के किसानों के सम्मुख बहुत बड़ा संकट उत्पन्न हो गया है.

बहरहाल एक तरफ केंद सरकार देश भर के किसानों के हितों की बात करते हुए एक नहीं बल्कि तीन-तीन नए कानून बनाती है, जिसमें दावा किया जाता है कि इससे सभी तरह के किसानों को लाभ होगा. लेकिन दूसरी ओर बिन्दुखत्ता के किसानों की परेशानी को देख कर लगता है कि किसी भी योजना को केवल लागू कर देने से समस्या का समाधान नहीं हो जाता है बल्कि उसे ज़मीनी स्तर पर क्रियान्वित भी करवाना भी आवश्यक है. यदि केन्द्र और राज्य सरकार ने बिन्दुखत्ता के किसानों की भूमि व उनकी फसल खरीद का उचित प्रबंध नहीं किया तो इससे यहां के किसानों को गंभीर संकटों का सामना करना पड़ सकता है.

हल्द्वानी, उत्तराखंड में रहने वाले बसंत पांडे का यह लेख हमें चरखा फीचर द्वारा भेजा गया है.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Sudhir Kumar

Recent Posts

अंग्रेजों के जमाने में नैनीताल की गर्मियाँ और हल्द्वानी की सर्दियाँ

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…

2 days ago

पिथौरागढ़ के कर्नल रजनीश जोशी ने हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान, दार्जिलिंग के प्राचार्य का कार्यभार संभाला

उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…

2 days ago

1886 की गर्मियों में बरेली से नैनीताल की यात्रा: खेतों से स्वर्ग तक

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…

3 days ago

बहुत कठिन है डगर पनघट की

पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…

4 days ago

गढ़वाल-कुमाऊं के रिश्तों में मिठास घोलती उत्तराखंडी फिल्म ‘गढ़-कुमौं’

आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…

4 days ago

गढ़वाल और प्रथम विश्वयुद्ध: संवेदना से भरपूर शौर्यगाथा

“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…

1 week ago