समाज

नरेन्द्र सिंह नेगी के गीतों का अंग्रेजी अनुवाद: अ स्ट्रीम आफ हिमालयन मेलडी

उत्तराखण्ड में जन्मे नरेन्द्र सिंह नेगी ऐसे रचनाकार हैं जिनके सृजन में हिमालय का प्रतिनिधित्व झलकता है. उनका सृजन त्रिस्तरीय है. शब्द, संगीत और स्वर तीनों स्तर में पहाड़ी जनजीवन की आत्मा का मौलिक-कलात्मक स्पर्श उनके गीतों में है. न सिर्फ़ लोकगीतों को बल्कि समग्र संस्कृति को आत्मसात करके ही उन्होंने गीत-लेखन किया है.
(A stream of Himalayan Melody Review)

पहाड़ों के पारम्परिक-प्राकृतिक संगीत को तलाश कर सँवारा और अपने सुरीले कंठ से, सीधे मर्मस्थल को छू लेने वाला स्वर प्रदान किया. गढ़वाली गीतिकाव्य में नरेन्द्र सिंह नेगी का योगदान निसंदेह रिनेशां है. उनकी कलम ने गीतों को काव्य के निकट पहुँचाया, काव्य सौष्ठव और अर्थगौरव के श्रेष्ठ तत्वों से अलंकृत किया और सर्वोपरि ये कि एक आम पहाड़ी के सुख-दुःख, हर्ष-विषाद को अपने गीतों में प्रतिबिम्बित किया.

निश्चित ही विश्व के श्रेष्ठ गीतिकाव्य में नरेन्द्र सिंह नेगी का सृजन भी गिने जाने योग्य है. छोटे भौगोलिक क्षेत्र और सीमित व्यवहारी होने से उनके सृजन को पढ़ने-समझने और तुलनात्मक मूल्यांकन को अपेक्षित आयाम अब तक नहीं मिल सका. इसके लिए बहुत जरूरी था कि उनके सृजन को दुनिया के बड़े हिस्से में पढ़ी-समझी जाने वाली भाषा में अनूदित किया जाता. सुखद यह है कि उनके चुनिंदा गीतों के अंग्रेजी अनुवाद की एक किताब हाल ही में प्रकाशित हुई है.

अ स्ट्रीम ऑफ हिमालयन मेलडी नाम से प्रकाशित इस पुस्तक में नरेन्द्र सिंह नेगी के 40 चुनिंदा गीत शामिल हैं. गीतों को अतीत-स्मृति, पर्यावरणीय-दूरदृष्टि, प्रेम और विविध चार उपशीर्षकों के अंतर्गत रखा गया है. अनुवादक दीपक बिजल्वाण हैं जो स्वयं भी कवि हैं, हे.न.ब.गढ़वाल विश्वविद्यालय के बादशाहीथौल परिसर के शोधछात्र हैं और नरेन्द्र सिंह नेगी के चुनिंदा गीतों के समीक्षात्मक अध्ययन पर शोध कर रहे हैं.
(A stream of Himalayan Melody Review)

अनुवाद में ट्रांसलेशन और ट्रांसक्रिएशन दोनों दिखायी देते हैं. गढ़वाली और अंग्रेजी दोनों भाषाओं पर अच्छी पकड़ से अनुवादक गीतों का अच्छा अनुवाद कर सके हैं. शोध-मार्गदर्शक, प्रोफेसर डॉ. अरूण पंत जी का मार्गदर्शन प्राप्त होने से अनुवाद और भी निखर गया है. गौरतलब है कि प्रोफेसर पंत स्वयं भी प्रख्यात साहित्यकार और गढ़वाली संस्कृतिमर्मज्ञ गोविंद चातक जी के संकलन का अंग्रेजी अनुवाद कर चुके हैं. फिर भी अनुवाद की सीमाएं होती हैं. मूलभाषा में जो संप्रेषणीयता होती है वो तारगेट लिंग्विज़ में बरकरार नहीं रह पाती. हर शब्द और हर भाव का अनुवाद नहीं हो पाता है.

मेरा, अनुवाद का अपना अनुभव ये है कि कई बार मूल भाव को अनूदित करने में अपनी असफलता को मैं ट्रांसक्रिएशन में छुपा लेता हूँ. समीक्ष्य पुस्तक के अनुवादक को ऐसा बहुत कम करना पड़ा है.

घुघुती सी सांकी, गढ़वाली की सशक्त उपमा है. सुराही-सी गर्दन इसका हिंदी-उर्दू अनुवाद है. इसे वॉइस ऑफ घुघूती कर देने से मूल भाव मिस हो रहा है. ग्लॉसरी में किरमिची का अर्थ अ सीज़न दिया गया है जबकि यह अरबी के किरमिज़ शब्द से बना है जिसका अंग्रेजी पर्याय क्रिम्ज़न है. हिलांस का अर्थ अ ब्यूटिफुल बर्ड ऑफ गढ़वाल दिया गया है जबकि वो सिंगिंग बर्ड के रूप में अधिक जानी जाती है. हूणियाज़/हूण का बहुत विस्तारित अर्थ दिया गया है जबकि एक ही शब्द तिब्बतियन्स पर्याप्त है. नरेन्द्र सिंह नेगी जी द्वारा लिखित प्राक्कथन में उनके गीतसंग्रह खुचकण्डि का नाम छूट जाना और पृष्ठ 105 पर gourd का guard हो जाना प्रिंटिंग मिस्टेक्स ही कही जाएंगी.
(A stream of Himalayan Melody Review)

गढ़वाली गीतों के अंग्रेजी अनुवाद की बात करें तो अंग्रेजी में अनूदित पहला संग्रह 1946 में प्रकाशित हुआ था. स्नोबॉल्स ऑफ गढ़वाल नाम के इस अनूदित संग्रह के रचनाकार पूर्व काबीना मंत्री और बदरी-केदार के पूर्व विधायक नरेन्द्र सिंह भण्डारी थे. इसके बाद भी पत्र-पत्रिकाओं और पोर्टल्स पर गढ़वाली गीतों के अंग्रेजी अनुवाद देखने-पढ़ने को मिलते रहे हैं.

इसके बावजूद गढ़वाली गीतों की पहुँच गैरगढ़वालीभाषी पाठकों के बड़े वर्ग तक नहीं थी. समीक्ष्य पुस्तक निश्चित ही इस रिक्तता को दूर करने में समर्थ है. साथ ही गढ़वाल के उन मूल निवासियों और उनके बच्चों के लिए भी अत्यंत उपयोगी है जो गढ़वाली गीत-संगीत में रुचि तो लेते हैं पर शब्द और भावों को पूरी तरह समझ नहीं पाते हैं.

उत्कृष्ट भाव और सार्थक अभिव्यक्ति होने से नरेन्द्र सिंह नेगी जी के गीत किसी भी भाषा में सुंदर अनुवाद की असीम संभावनाओं को लिए हुए हैं. उम्मीद की जानी चाहिए कि इस संकलन के बाद अंग्रेजी सहित विभिन्न देशी-विदेशी भाषाओं में गढ़वाली गीतों के अनुवाद के प्रति अनुवादक उत्साह दिखाएंगे. गढ़वाली भाषा और गीतों को इससे अधिक विस्तार मिल सकेगा. समय साक्ष्य द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक का मूल्य मात्र रु.110 है.
(A stream of Himalayan Melody Review)

1 अगस्त 1967 को जन्मे देवेश जोशी फिलहाल राजकीय इण्टरमीडिएट काॅलेज में प्रवक्ता हैं. उनकी प्रकाशित पुस्तकें है: जिंदा रहेंगी यात्राएँ (संपादन, पहाड़ नैनीताल से प्रकाशित), उत्तरांचल स्वप्निल पर्वत प्रदेश (संपादन, गोपेश्वर से प्रकाशित) और घुघती ना बास (लेख संग्रह विनसर देहरादून से प्रकाशित). उनके दो कविता संग्रह – घाम-बरखा-छैल, गाणि गिणी गीणि धरीं भी छपे हैं. वे एक दर्जन से अधिक विभागीय पत्रिकाओं में लेखन-सम्पादन और आकाशवाणी नजीबाबाद से गीत-कविता का प्रसारण कर चुके हैं. .

हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online

Support Kafal Tree

.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

नेत्रदान करने वाली चम्पावत की पहली महिला हरिप्रिया गहतोड़ी और उनका प्रेरणादायी परिवार

लम्बी बीमारी के बाद हरिप्रिया गहतोड़ी का 75 वर्ष की आयु में निधन हो गया.…

1 week ago

भैलो रे भैलो काखड़ी को रैलू उज्यालू आलो अंधेरो भगलू

इगास पर्व पर उपरोक्त गढ़वाली लोकगीत गाते हुए, भैलों खेलते, गोल-घेरे में घूमते हुए स्त्री और …

1 week ago

ये मुर्दानी तस्वीर बदलनी चाहिए

तस्वीरें बोलती हैं... तस्वीरें कुछ छिपाती नहीं, वे जैसी होती हैं वैसी ही दिखती हैं.…

2 weeks ago

सर्दियों की दस्तक

उत्तराखंड, जिसे अक्सर "देवभूमि" के नाम से जाना जाता है, अपने पहाड़ी परिदृश्यों, घने जंगलों,…

2 weeks ago

शेरवुड कॉलेज नैनीताल

शेरवुड कॉलेज, भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित किए गए पहले आवासीय विद्यालयों में से एक…

3 weeks ago

दीप पर्व में रंगोली

कभी गौर से देखना, दीप पर्व के ज्योत्सनालोक में सबसे सुंदर तस्वीर रंगोली बनाती हुई एक…

3 weeks ago