..क्या आपने ख़्याल किया है कि लगातार आपके इर्द-गिर्द गौरैया की तादाद घटती जा रही है? आप याद करें आपने कब से गौरैया नहीं देखी? शायद आंगन में बैठे अब गौरैया उस तरह आसानी से आपको नहीं दिखाई देती जैसे पहले दिखाई देती जाती थी. मुश्किल से ही कभी कोई गौरैया दिखाई दे पाती है. ऐसा क्यों हुआ?..
बचपन की यादों को टटोल, अगर आपसे कुछ चिड़ियों का नाम बताने को कहा जाए जो आपकी ज़िंदगी में सबसे आम थीं, तो आप गौरैया का नाम ज़रूर लेंगें. क्योंकि वह आसानी से आपके आंगन में बेधड़क आ जाती थी और इर्द-गिर्द बिखरे अनाज के दाने और कीड़े-मकौड़ों को अपना आहार बनाती. गौरैया इंसानी बसासत के क़रीब रहने की आदत वाली चिड़िया है. उसका अधिकतर चारा उसे इंसानी बसासतों के इर्द गिर्द ही मिलता है.
लेकिन क्या आपने ख़्याल किया है कि लगातार आपके इर्द-गिर्द गौरैया की तादाद घटती जा रही है? आप याद करें आपने कब से गौरैया नहीं देखी? शायद आंगन में बैठे अब गौरैया उस तरह आसानी से आपको नहीं दिखाई देती जैसे पहले दिखाई देती जाती थी. मुश्किल से ही कभी कोई गौरैया दिखाई दे पाती है. ऐसा क्यों हुआ?
ठीक यही सवाल बेरीनाग के कुछ युवाओं के जेहन में भी उतरा और उन्होंने कोशिश की इसका जवाब ढूंढने की. बेरीनाग में एक दुकान चलाने वाले युवा प्रकाश बोरा कहते हैं, ”बचपन में गौरैया को देखना बिल्कुल आम बात थी. वो हर तरफ़ दिख जाती थी. लेकिन अब उनकी तादात लगातार घटती जा रही है. इसे हर कोई महसूस कर रहा है.”
बोरा आगे कहते हैं, ”हमने इसकी वजह जानने की कोशिश की तो समझ आया कि यह सब तो हमारी जीवन शैली में बदलाव के चलते हुआ है. पहले हमारे पारंपरिक घर ऐसे हुआ करते थे जिसमें गौरैया और दूसरी चिड़ियों के रहने के लिए लकड़ी में छेद कर घोंसले बनाए जाते थे. लेकिन अब पूरे शहर भर में जो मकान बने हैं सबके सब सीमेंट के हैं और उनमें एक छोटा सा छेद तक चिड़ियों के लिए नहीं छोड़ा गया है।”
बोरा चिंता ज़ाहिर करते हुए कहते हैं कि जब चिड़ियों के घर ही नहीं बचेंगे तो वे कहां रहेंगी, ”गौरैया शुरूआत से ही इंसानी बसासतों के साथ ही रहती आई हैं. यही उनकी आदत है. लेकिन इंसानी रहन सहन में आए बदलाव ने उनके अस्तित्व पर ख़तरा पैदा कर दिया है.”
बोरा और उनके सहयोगियों के इस विश्लेषण को वैज्ञानिक अध्ययन भी सही ठहराते हैं. कई वैज्ञानिक पड़तालों से पता चला है कि गौरैयाओं की तेज़ी से घटती आबादी की वजह उनके पारंपरिक आवासों का ख़त्म हो जाना रही है.
पक्षियों के संरक्षण के क्षेत्र में लंबे समय से काम कर रहे दुष्यंत पराशर की भी यही राय है, ”गौरैया, जिसे अंग्रेज़ी में हाउस स्पैरो कहा जाता है, उसका अस्तित्व केवल मानवीय बसासतों में ही संभव है. लेकिन पिछले कुछ दशकों में जिस तेज़ी से घरों के आर्किटेक्चरल डिज़ाइन में बदलाव आया है उसमें गौरैया के लिए कहीं जगह नहीं है. और यह इनके अस्तित्व के लिए सबसे बड़ी चुनौती है.”
प्रकाश और उनकी टीम ने शुरूआत में कई घोंसले बनाकर शहर के लोगों में बांटे और उनसे अपील की कि वे इन्हें अपने घरों के बाहर ज़रूर लगाएं. प्रकाश बताते हैं, ”हम से प्रेरित होकर लोगों ने अपने घरों में घोंसले लगाने शुरू किए हैं.”
बेरीनाग की जमुना देवी के घर पर भी प्रकाश और उनकी टीम ने घोंसले लगाए थे. वे कहती हैं, ”हमें इन लोगों की बातें काफी अच्छी लगीं. हमने भी महसूस किया है कि गौरैया हमारे इर्द गिर्द से लुप्त होती जा रही हैं. इसलिए हमने भी एक घोंसला अपने मकान में लगाया है और खुशी की बात है उसमें गौरैया का एक जोड़ा आकर रहने लगा है.”
-काफल ट्री डेस्क
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