हैडलाइन्स

उत्तराखंड में 86 करोड़ की सड़क पहली बरसात नहीं झेल पाई

पहली बारिश के बाद ही बेहाल हो चुके राष्ट्रीय राजमार्ग 94 की तस्वीरें सोशियल मीडिया में वायरल हो रही हैं. ऋषिकेश-गंगोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग 94 के अंतर्गत चंबा टनल से जुड़ी यह सड़क हाल ही में बनी है जो पहली बारिश भी नहीं झेल पाई. सड़क निर्माण का काम कितना खराब होगा इसका अंदाजा इसी बात से चलता है कि सड़क अपने उद्धाटन से पहले ही खस्ताहाल हो चुकी है. पहली बारिश से 1 किमी सड़क पूरी तरह से टूट गयी है.
(86 Crores Road Broken in Uttarakhand)

सड़क पर चलने वाले भाग्यशाली रहे कि जब यह हादसा हुआ इस समय कोई वाहन नहीं चल रहा था जिसकी वजह से एक बड़ी दुर्घटना होने से टल गयी. इटीवी भारत ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया है कि भारत कंस्ट्रक्शन कंपनी द्वारा निर्मित इस सड़क की गुणवत्ता पर स्थानीय लोग पहले से ही सवाल कर रहे थे. स्थानीय लोगों ने ख़राब गुणवत्ता से बन रही सड़क की शिकायत जिला स्तर से केंद्र स्तर तक की थी.  स्थानीय लोग अब मांग कर रहे हैं कि केंद्र व राज्य सरकार को भारत कंस्ट्रक्शन कम्पनी के खिलाफ जांच करनी चाहिए.

चम्बा टनल की चर्चा राष्ट्रीय स्तर पर की जा रही है. यह सड़क इसी टनल को जोडती है. आस्ट्रेलियन तकनीक से बनी इस सड़क के निर्माण में केंद्र सरकार द्वारा ₹86 करोड़ खर्च किये जाने की ख़बर है.  एक रिपोर्ट के अनुसार मजदूरों भारत कंस्ट्रक्शन कम्पनी पर गंभीर आरोप लगाकर कहा है कि सड़क बनाते समय इसमें नीचे हार्ड रॉक नहीं थी. इसमें सिर्फ मिट्टी भरी गई है. इस कारण यह बारिश के चलते पूरी टूट गई है.  
(86 Crores Road Broken Kilometer in Uttarakhand) 

सड़क टूटने के संबंध में भारत कंस्ट्रक्शन कम्पनी द्वारा कहा जा रहा है कि सड़क का बेस मजबूत नहीं था और सड़क की ऊंचाई अधिक होने की वजह से यह सड़क टूटी है. पुराना डिजायन सफ़ल नहीं हुआ इसलिए नया डिज़ाइन आने के बाद काम शुरु होगा.

सड़क टूटने के संबंध में बीआरओ के अफसर लक्ष्मी चंद शर्मा ने ईटीवी भारत से कहा कि जो सड़क टूटी है, उसका कार्य कम्पनी द्वारा किया जाएगा क्योंकि 4 साल तक मेंटेनेंस का कार्य भारत कंस्ट्रक्शन कंपनी के ही पास है.
(86 Crores Road Broken Kilometer in Uttarakhand)

-काफल ट्री डेस्क

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

View Comments

Recent Posts

1886 की गर्मियों में बरेली से नैनीताल की यात्रा: खेतों से स्वर्ग तक

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…

8 hours ago

बहुत कठिन है डगर पनघट की

पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…

1 day ago

गढ़वाल-कुमाऊं के रिश्तों में मिठास घोलती उत्तराखंडी फिल्म ‘गढ़-कुमौं’

आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…

1 day ago

गढ़वाल और प्रथम विश्वयुद्ध: संवेदना से भरपूर शौर्यगाथा

“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…

6 days ago

साधो ! देखो ये जग बौराना

पिछली कड़ी : उसके इशारे मुझको यहां ले आये मोहन निवास में अपने कागजातों के…

1 week ago

कफ़न चोर: धर्मवीर भारती की लघुकथा

सकीना की बुख़ार से जलती हुई पलकों पर एक आंसू चू पड़ा. (Kafan Chor Hindi Story…

1 week ago