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ढोलियों के बिना लोकदेवता की हर पूजा अधूरी मानी गयी है

रामगंगा नदी को पानी देने वाली अनेक गुमनाम नदियों के किनारे अनेक गांव हैं जिनके नाम सिवा खाता-खतूनी के कहीं और दर्ज नहीं हैं. हर गांव के नाम की अपनी कहानी है. इन गावों में अलग-अलग जाति के लोग रहते हैं जिनमें बोली और रहन-सहन की थोड़ी बहुत विविधता बखूबी नजर आती है. फोटो में दिखने वाले यह ढोल-दमाऊ चौंसला गांव के ढोलियों के हैं.
(Worship Folk Deity Uttarakhand)

पहाड़ के अन्य गावों तरह यहां भी में गाड़ के आर-पार में देवताओं के स्वरूप बदल जाते हैं. मूल रूप में एक पत्थर को थापकर शुरु किये गये इन मंदिरों में लोगों की सदियों से आस्था है. इसी आस्था के फलस्वरूप अब इनमें से कुछ में चार-दिवारी कर दी गयी या किसी में भव्य भवन निर्माण भी कर दिये गये हैं. पर पहले की तरह आज भी सभी देवताओं को पूजने का समय और तरीके अलग-अलग ही हैं.

मसलन किसी देवता को दूध चढ़ाया जाता है किसी को अनाज. किसी मंदिर में चैत्र के महीने पूजा होती है किसी में होली के दिन किसी में कार्तिक पूर्णिमा. इन मंदिरों में आस-पास के गांव के सभी लोग मिलकर पूजा करते हैं हालांकि एक या अधिक गांव का एक मुख्य देवता होता है जिसे ईष्ट देवता कहा जाता है.

विविधता से भरे हमारे पहाड़ में बजने वाले ढोल और दमाऊं ऐसे वाद्ययंत्र हैं जो पूरे पहाड़ को एक डोर में बांधकर रखते हैं. माना जाता है कि रामगंगा नदी के इन क्षेत्रों में एक पूरी पट्टी में कुछ गांव के निश्चित ढोली नियत हुआ करते थे. जिस तरह ब्राह्मणों के यजमान निर्धारित होते हैं उसी तरह ढोलियों के भी परिवार निश्चित होते थे.
(Worship Folk Deity Uttarakhand)

अपनी भूमि न होने के कारण पुराने समय में ढोलियों के परिवार पूरी तरह से अन्य गावों पर निर्भर रहते थे. फसल बोने, काटने, और देवता को उसे चढ़ाते समय इन परिवारों को अनाज दिया जाता था. किसी गांव के लोकदेवता के मंदिर में होने वाली पूजा में ढोल और दमाऊं ही बजाया जाता है.

पूजा से पहले ढोली लोक देवता से संबंधित परिवारों के घर-घर जाकर उन्हें आमंत्रित करते हैं जिसके बदले में उन्हें नेग दिया जाता है. पूजा खत्म होने के बाद एक बार फिर ढोली सभी के घरों में आते हैं और परिवार की मनोकामना पूरी होने के लिये प्रार्थना करते हैं.

एक जातीय ताने-बाने में बुने गये इस सामजिक संबंध की एक हकीकत यह भी रही है कि बिना ढोलियों के बाजे के पहाड़ का कोई लोक देवता नहीं पूजा जा सकता, उनके बिना लोक देवता की हर पूजा अधूरी मानी गयी है.
(Worship Folk Deity Uttarakhand)

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