जब टीम इंडिया इंग्लैंड के भ्रमण पर निकलती है. तो 1975का वह दौरा भूल नहीं सकते, लेकिन किसी शौर्य के लिए नहीं. बल्कि एक ऐसे रिकॉर्ड के लिए जिसे कोई भारतीय क्या दुनिया का कोई भी बल्लेबाज़ रिपीट करना नहीं चाहेगा. हां, एक सबक के तौर पर ज़रूर याद रखना होगा.
07 जून 1975 में पहले वनडे विश्व कप में भारत का पहला मैच इंग्लैंड के साथ हुआ था. पहला एक दिन वर्ल्ड कप. इंग्लिश बल्लेबाज़ों को छोड़ कर एक दिनी क्रिकेट के बारे में बाकी बल्लेबाज़ों को कोई तजुर्बा नहीं था. क्रिकेट प्रेमी भी कम जानते थे. लिहाज़ा इसके रोमांच का तो किसी को अहसास ही नहीं था.
बहरहाल, क्रिकेट के तीर्थ लॉर्ड्स के मैदान पर इंग्लिश टीम ने 4 विकेट पर 334 रन पीट डाले. यानी पहले ही एक दिनी में 300 का स्कोर पार. डेनिस एमिस ने शतक (137) बनाया। तब 60 ओवर की इनिंग थी. इसलिए कि इंग्लैंड में दिन बड़े होते हैं. जवाब में भारतीय टीम 3 विकेट पर महज़ 132 रन ही बना सकी. अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि बल्लेबाज़ विकेट पर खड़े होकर कर क्या रहे थे?
महान बल्लेबाज़ बनने की ओर अग्रसर सुनील गावस्कर ने 174 गेंदों का सामना किया यानी 29 ओवर खेले और रन बनाये महज़ 36 एक चौके के साथ. उनका स्ट्राइक रेट था 20.68. दूसरे छोर पर खड़े बृजेश पटेल जैसे धुरंदर हिट्टर 57 गेंद पर 16 रन बना कर नॉट आउट रहे. मज़े की बात तो ये देखिये कि इंग्लिश फील्डरों ने गावस्कर के एक नहीं तीन-तीन कैच टपकाये. ऐसे बल्लेबाज़ को आउट करने में भला किसे दिलचस्पी होगी? कई पत्रकारों ने लिखा कि महंगा टिकट खरीद कर मैच देखने आये तमाशबीनों के साथ ये ज़ुल्म था। सुप्रसिद्ध क्रिकेट समीक्षक जॉन वुडकॉक ने लिखा कि अगर पुलिस का तगड़ा बंदोबस्त ने होता तो तमाशबीन मैदान में घुस गए होते, गावस्कर से ये पूछने कि तुम यहां क्या करने आये हो?
सवाल ये पैदा होता है कि खेल की हर तक़नीक के माहिर गावस्कर को क्या हो गया था? वो खुद आउट क्यों नहीं हुए? विकेट छोड़ कर खड़े हो जाते ताकि बोल्ड हो जाएँ. या फिर मैदान से वॉक आउट कर जाते कि मुझसे नहीं खेला जा रहा फ़ारुख़ इंजीनियर, मोहिंदर अमरनाथ या रुसी सुरती को भेजें, जो इंग्लिश पिचों पर तेज़ी से रन बनाने की महारत रखते हैं. बरसों बाद गावस्कर ने अपने संस्मरण में बताया कि उनको मेंटल ब्लॉक हो गया था. कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूं?
बेशक गावस्कर दुनिया के महानतम बल्लेबाज़ों में एक हैं, लेकिन उनकी ये इनिंग उनके सुनहरे कैरियर में एक ऐसा धब्बा है, जिसका ज़िक्र गावस्कर कभी करना नहीं चाहेंगे, ख़राब से ख़राब सपने में भी नहीं.
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