मंदिर में रखी पत्थर की मूर्तियों पर पानी छिडका जाता है और प्रार्थना की जाती है —“परमेश्वर खुश हो जा, मेरी भूलचूक क्षमा कर और ये मेमना तेरी भेंट है, इसे स्वीकार कर, मैं नासमझ हूं और तू अन्तर्यामी. और तू अन्तर्यामी. (What Mantra is Blown in the Ear of the Lamb who is Sacrificed to the Deity)
जब यह प्रार्थना की जा रही होती है उस समय बलि के निए लाए गए मेमने के कान में ये मंत्र बुदबुदाते है —
“अश्वम् नैव; गजम् नैव, सिंहम् नैव च नैव च; अजा पुत्रो बलिमद्यात देवो दुर्बल घातक.”
अर्थात — तू न तो घोड़ा है, न हाथी और न शेर; तू केवल बकरे का बेटा है और मैं तेरी बलि दे रहा हूं, इस प्रकार भगवान भी कमजोर को ही नष्ट करता है.
मेमने के माथे पर एक लाल टीका (पिठाई) लगाया जाता है, माला पहनाई जाती है, सिर पर चावल (अक्षत) बिखेरा जाता है और अंत में उसके बदन पर कुछ पानी छिड़का जाता है. इस सबसे छुटकारा पाने, यानी, चावल आदि को अपने बदन से झटकने के लिए मेमना स्वयं को हिलाता है तो उसके ऐसा करने को यह माना जाता है कि भगवान ने उसकी बलि लेनी स्वीकार कर ली है. उसके बाद खुखरी के एक ही वार से उसका सिर, धड़ से अलग कर दिया जाता है. लेकिन अगर चावल, पानी आदि बदन पर पड़ने के बाद भी वह हिलता नहीं है तो यह माना जाता है कि उसकी बलि देवता को क़ुबूल नहीं है और वह मेमना बच जाता है.
बलि देने के बाद मेमने की पूंछ काटकर मंदिर के त्रिशूल या मूर्तियों के बगल पर रख दिया जाता है. उसका सर पुजारी को दे दिया जाता है और पीछे का फटट उसे, जो मेमने की बलि चढ़ाता है. शेष मांस काट कर प्रसाद के रूप में भक्तों के बीच बांट दिया जाता है. अंग-भंग या अशक्त मेमने की बलि नहीं दी जाती.
(हिमालयन गजेटियर एडविन टी. एटकिंसन के आधार पर)
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