हाल में पीएनएएस (PNAS) नामक पत्रिका में एक अध्ययन प्रकाशित किया गया जिसके अनुसार चन्द्रमा के ध्रुवीय क्षेत्रों में बर्फ जमे होने का पता लगा है. पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार चन्द्रमा में अत्यंत ठन्डे और तथा के घूर्णन अक्ष के बहुत कम झुके होने के कारण अंधकारमय स्थानों पर बर्फ इधर-उधर बिखरी हुई है. दक्षिणी ध्रुव पर अधिकतर बर्फ लूनार क्रेटर्स के पास जमी हुई है. उत्तरी ध्रुव की बर्फ अधिक व्यापक तौर पर फैली हुई लेकिन अधिक बिखरी हुई भी है.
अमेरिकी अतंरिक्ष एजेंसी नाशा ने पुष्टि की है कि यह अध्ययन 10 साल पहले भारत द्वारा शुरू किया गये चन्द्रयान-1 से प्राप्त आकड़ों का उपयोग करते हुए किया गया है. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ( इसरो) द्वारा 2008 में प्रक्षेपित किये गए चंद्रयान-1 के साथ अमेरिकी मून मिनरेलॉजी मैपर (एम-3 ) उपकरण को भेजा था. एम-3 से प्राप्त आँकड़ों का इस्तेमाल कर अध्ययन किया और इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि चंद्रमा की सतह पर जल हिम के रूप में मौजूद है.
एम-3 उपकरण ऐसे डेटा को एकत्र करने में सक्षम है जो बर्फ के परावर्तक गुणों को प्रदर्शित करते हैं. यह अपने अणुओं को इन्फ्रारेड लाइट को अवशोषित करने के विशिष्ट तरीके को मापने में भी सक्षम है इसी कारण एम-3 जल, वाष्प और ठोस बर्फ के बीच अंतर कर सका.
भारत का प्रथम चन्द्र मिशन चंद्रयान-1 है. चंद्रयान-1 22 अक्टूबर 2018 को सतीश धवन स्पेस सेंटर श्रीहरिकोटा से लांच किया गया. इस मिशन का कुल खर्च 386 करोड़ रुपये था. 2009 में अचानक इससे रेडियो संपर्क टूट गया जिसके कुछ दिन बाद इसरो ने मिशन समाप्त की घोषणा कर दी. अमेरिकी अन्तरिक्ष एजेंसी नासा ने इसे 2017 में खोज निकाला था.
नासा के अध्ययन के पश्चात इसरो ने कहा की भारतीय उपकरण मूण इम्पैक्ट प्रोब ( एमआईपी) ने भी चंद्रमा में बर्फ के साक्ष्य प्रस्तुत किये थे. एमआईपी एक क्यूब के आकार का भारतीय उपकरण था जिसपर भारतीय झंडा लगा था. तकनीकी कारणों के कारण एमआईपी स्पष्ट डाटा प्रेषित नहीं कर सका.
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