Featured

किंग रिचर्ड्स और बिग बर्ड का था 1979 का विश्वकप

क्रिकेट का दूसरा विश्वकप 1979 में खेला गया. इस बार भी पिछले विश्वकप का पैटर्न दोहराया गया और 4 टीमों वाले 2 ग्रुपों के बीच राउंड-रोबिन पद्धति से 60 ओवरों के मैच खेले गए. दोनों ग्रुपों की दो टॉप टीमें सेमीफाइनल में पहुँचीं. 1979 की आईसीसी ट्रॉफी के अंतिम चरण तक पहुँची टीमों – श्रीलंका और कनाडा – को टूर्नामेंट में जगह मिली. ये दोनों ही टीमें टेस्ट क्रिकेट नहीं खेलती थीं. (Vivian Richards World Cup 1979)

1979 की विजेता वेस्ट इंडीज

जैसी कि उम्मीद थी यह टूर्नामेंट भी क्लाइव लॉयड की कप्तानी में वेस्ट इंडीज ने ही जीता. 1975 के बाद से बीते चार सालों में वेस्ट इंडीज के पास तेज़ गेंदबाजों – माइकेल होल्डिंग, जोएल गार्नर, एंडी रॉबर्ट्स और कॉलिन क्रॉफ्ट – की अजेय चौकड़ी आ चुकी थी जिसने आधुनिक किकेट की परिभाषा ही बदल डाली थी. इसके अलावा यह वक्त विवियन रिचर्ड्स का स्वर्ण युग भी था जिन्हें अनेक खेक-समीक्षक क्रिकेट के इतिहास का सबसे महान बल्लेबाज कहते हैं. रिचर्ड्स के अलावा टीम में गॉर्डन ग्रीनिज, डेसमंड हेंस, क्लाइव लॉयड और एल्विन कालीचरण जैसे सूरमा बल्लेबाज भी थे. वेस्ट इंडीज के जीतने पर किसी को भी आश्चर्य नहीं हुआ.

फिलहाल 1979 के विश्वकप के इस फाइनल में वेस्ट इंडीज के सामने मेजबान इंग्लैण्ड की टीम थी. मालूम हो कि इस के बावजूद कि सीमित ओवरों वाले क्रिकेट का यह दूसरा विश्वकप था, इस क्रिकेट को अभी भी बहुत कम खेला जाता था और दिग्गज कोग टेस्ट क्रिकेट को ही असल खेल मानते थे. यही वजह थी कि वन-डे क्रिकेट खेलने की कोई विशेष तकनीक भी तब तक विक्सित नहीं हो सकी थी. हालांकि इस क्रिकेट को वन डे कहना भी एक तरह की विडम्बना कहा जाएगा क्योंकि इसी विश्व कप में भारत और श्रीलंका का मैच तीन दिन चला. बीच का एक दिन रेस्ट डे था. (Vivian Richards World Cup 1979)

वेस्ट इंडीज की पेस चौकड़ी – रोबर्ट्स, होल्डिंग, क्रॉफ्ट और गार्नर

बताता चलूँ कि यह मैच इत्तफाकन पहला ऐसा मैच था जिसमें किसी नॉन-टेस्ट टीम ने टेस्ट टीम को परास्त किया हो. यानी श्रीलंका ने भारत को हराया.

फिलहाल बात फाइनल की हो रही है. जैसा कि उन दिनों प्रचलन में था, टेस्ट टीम में खेलने वाले खिलाड़ी ही सीमित ओवर्स वाले मैच भी खेलते थे, इंग्लैण्ड ने भी यही गलती दोहराई और बतौर ओपनर माइक ब्रेयरली और जेफरी बॉयकाट को टीम में जगह दी. इस बात के लिए कुछ विशेषज्ञों ने चयनकर्ताओं की आलोचना भी की थी. बेहद धीमी गति से खेलने वाले इन दो खिलाड़ियों ने फाइनल में अलबत्ता अर्द्धशतक जमाये पर उनकी रफ़्तार इतनी धीमी थी कि उनके आउट होने के बाद टीम ढह गयी.

ब्रेयरली और बायकाट

वेस्ट इंडीज ने पहले बैटिंग की और किंग रिचर्ड्स की धुआंधार बल्लेबाली देखने को मिली. उन्होंने 138 रनों की यादगार पारी खेली जिसे आज भी अनेक खेल समीक्षक विश्वकप इतिहास की सबसे अच्छी पारी मानते हैं. उनका साथ दिया कॉलिस किंग ने और 66 गेंदों पर 86 रन बनाए. वेस्ट इंडीज ने 60 ओवरों में 289 का टार्गेट दिया.

सर विवियन रिचर्ड्स

कॉलिस किंग

जवाब में इंग्लैण्ड ने माइक ब्रेयरली और जेफरी बॉयकाट की मदद से पहले विकेट के लिए 129 रनों की साझेदारी की लेकिन दोनों ने मिलकर करीब चालीस ओवर खपा दिए. उनके जाने के बाद डेरेक रैंडल और ग्राहम गूच ने कुछ तेजी दिखाई लेकिन जब स्कोर 183 हुआ, गूच आउट हो गए.

जोएल गार्नर

इसके बाद जो हुआ उसकी कल्पना तक किसी ने नहीं की थी. बिग बर्ड के नाम से जाने जाने वाले छः फुट आठ इंच लम्बे जोएल गार्नर ने अगली ग्यारह गेंदों में पांच विकेट लिए और इंग्लैण्ड की टीम 194 पर धराशाई हो गयी.

23 जून 1979 वेस्ट इंडीज दूसरी बार विश्व विजेता

1979 के विश्वकप का फाइनल विव रिचर्ड्स, कॉलिस किंग और जोएल गार्नर के कारनामों के लिए हमेशा याद किया जाएगा.

कल हम आपको इस टूर्नामेंट से सम्बंधित कुछ दिलचस्प बातें बतलाएंगे.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

अंग्रेजों के जमाने में नैनीताल की गर्मियाँ और हल्द्वानी की सर्दियाँ

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…

2 days ago

पिथौरागढ़ के कर्नल रजनीश जोशी ने हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान, दार्जिलिंग के प्राचार्य का कार्यभार संभाला

उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…

2 days ago

1886 की गर्मियों में बरेली से नैनीताल की यात्रा: खेतों से स्वर्ग तक

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…

3 days ago

बहुत कठिन है डगर पनघट की

पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…

4 days ago

गढ़वाल-कुमाऊं के रिश्तों में मिठास घोलती उत्तराखंडी फिल्म ‘गढ़-कुमौं’

आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…

4 days ago

गढ़वाल और प्रथम विश्वयुद्ध: संवेदना से भरपूर शौर्यगाथा

“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…

1 week ago