Featured

एक ऊर्जा जिसे दुनिया अल्मोड़ा नाम से जानती है

कोई भी शहर मोहल्लों से जाना जाता है. और लोग शहर के अंदर के मोहल्लों से जाने जाते हैं. अल्मोड़ा शहर लोग और मोहल्लों के मामलों में बेमिसाल है.

कुमाऊँ में ही नहीं पूरे पहाड़ में बौद्धिक श्रेष्ठता के शिखर पर बैठे इस शहर में भरी पूरी आबादी वाले कई मोहल्ले हैं. ज्यादातर मोहल्लों के नाम आसपास के गांव के नाम पर हैं. मोहल्लों के नाम से कम से कम दो बातें एकदम साफ हो जाती हैं कि एक तो अमुक मोहल्ले के फलां वासी अमुक गांव के रहने वाले हैं. दूसरी मोहल्ले के वासी आधुनिकता की चपेट में आकर पलायन कर के भले ही गांव से शहर में आ गए हो किंतु नाम से, जमीन से लगाव अभी भी है.

शहर में एक मोहल्ला है तल्ला दन्या यह वही तल्ला दन्या है जिसमें शहर के एक प्रसिद्ध लेखक रहते हैं. दन्या अल्मोड़ा शहर से कोई चालीस किलोमीटर दूर एक मझोले किस्म का पहाड़ी गाँव है.

शहर में एक मोहल्ला है धारानौला तो एक मोहल्ला है मल्ला जोशी खोला एक मोहल्ला गंगोला है. हर मोहल्ले और उसके बाशिंदों का अपना-अपना इतिहास.

प्रत्येक मोहल्ला वासी दूसरे मोहल्ले वाले के प्रति अपनी अपनी एक स्पष्ट राय रखता है. यूं तो पहाड़ में स्पष्ट राय रखने वाले बहुतायत में पाए जाते हैं. पर मोहल्लों के आधार पर राय का वर्गीकरण एक असामान्य चीज है.

नगर के वासी अमूमन सभी को निजी रूप से जानते हैं. इतना ही नहीं अमुक व्यक्ति किस मोहल्ले में रहता है, और उसका गांव कहां है, इसकी भी सूचना लगभग सबके पास रहती है.

एक चीज जो अल्मोड़ा को आसपास से स्पष्ट अलग करती है वह है सुसभ्य और बौद्धिक, सांस्कृतिक, नागरिक भाव .यह नागरिक भाव अल्मोड़े को यहां के लोगों को एक श्रेष्ठता का भाव प्रधान करता है. जिसके अतिरेक के कारण कभी-कभी स्थानीयता का दायरा बौद्धिक बदहजमी तक की हद तक पहुंच जाता है.

अल्मोड़ा के निवासी के लिए जब कई किलोमीटर दूर कोशी या कई किलोमीटर दूर कपड़खान का रहने वाला अल्मोड़ा का निवासी नहीं माना जाता है तो हम जैसों की दाल कहां गलने वाली. सोमेश्वर रानीखेत क्वारब चौमू का रहने वाला भी अल्मोडिया नहीं बन पाता है. यह विशेषाधिकार तो अस्व आकृति वाले पर्वत पर बसे नागरिकों के पास सर्वाधिकार सुरक्षित है और इसमें कोई हिस्सेदारी किसी की भी मंजूर नहीं की जाती है.

अल्मोड़ा अपने आप में जितना एक शहर है उससे ज्यादा यह एक संस्कृति है. यह संस्कृति से भी ज्यादा एक नजरिया है, जो दुनिया को एक खास दृष्टिकोण से देखने का नाम है. अल्मोड़ा किसी विचार विशेष की परिभाषा में सीमित नहीं है. यह अपने आप में एक विचार है, एक नजरिया है एक सिद्धांत है.

अल्मोड़ा होने का एक ही अर्थ है अल्मोड़ा होना. अल्मोड़े में से अल्मोड़ा निकाल दिया जाए तो जो बचेगा वह अल्मोड़ा ही होगा. ठीक उल्टी तरह यदि अल्मोड़े में अल्मोड़ा जोड़ दिया जाए तो वह ऐसा नहीं कि अल्मोड़ा स्क्वायर या डबल अल्मोड़ा हो जाएगा वह रहेगा अल्मोड़ा ही.

जिंदगी ने बहुत शहर दिखाएं बहुत शहराती दिखाएं. शहरों में बसे देहाती भी खूब देखे. परंतु अल्मोड़ा जैसी स्पष्ट अवधारणा जिसका प्रभाव तन, मन, वचन, विचार से लेकर व्यवहार पर हो कहीं नहीं देखी. किसी भी चीज से अल्मोड़ा निकाल दिया जाए तो उसकी धार समाप्त हो जाती है. उसकी सांस्कृतिक विशिष्टता भी समाप्त हो जाती है.

इससे ठीक उल्टा तब समझ आता है जब आसपास के पर्वतीय शहरों के लोग अल्मोड़ा के बारे में सोचते हैं. उनकी सोच का अल्मोड़ा एक सयाना अल्मोड़ा है.

अल्मोड़ा सयाने पन के किस्से जगत प्रसिद्ध है. एक अति प्राचीन कहावत अल्मोड़ा के बारे में प्रसिद्ध है जिस का हिंदी में अनुवाद है कि मैं तुम्हारे घर आऊंगा तो क्या दोगे और जब तुम मेरे घर आओगे तो क्या लाओगे.

एकदम सतही अर्थ में यह निरा खाँटी अल्मोड़ापन लगता है. परंतु ऐसा है नहीं. यह ठीक है कि अल्मोड़ा शहर के निवासी अपनी बौद्धिक श्रेष्ठता और सांस्कृतिक विशेषता के कारण पूरी दुनिया में अपनी धाक जमा कर बैठे हैं पर ऐसा भी नहीं है कि अल्मोड़े की निवासी निपट चालाक हो.

अल्मोड़ा के संक्षिप्त प्रवास में एक से बढ़कर एक सरल, तरल और सहृदय लोगों का सानिध्य प्राप्त हुआ जो तमाम कहावतों को कोरी कहावत सिद्ध करता था. पर जो बात अल्मोड़े और अल्मोड़े के वासियों को स्पष्टत% अलग और श्रेष्ठ सिद्ध करती है वह है बौद्धिक, सांस्कृतिक और जीवन से जुड़ी अवधारणाओं और विचारों की स्पष्टता. एक अलहदा किस्म का खुलापन जो यहां कि आबोहवा और जमीन को आजाद विचारों और आजाद ख़याल को पैदा करने और बनाए रखने का वातावरण देता है, यही वातावरण अल्मोड़ा है, यही हवा, यही पानी, यही मिट्टी, यही समाज जो इस वातावरण को उत्पन्न करता है. विकसित करता है बनाकर रखता है. अल्मोड़ा है. इसके अलावा अल्मोड़ा और कुछ नहीं है.

पूरी दुनिया में इसी पर्यावरण को जो हम में चेतना और जीवंतता के नए प्रतिमान स्थापित करने की प्रेरणा बरकरार रखता है उसी का नाम अल्मोड़ा है. मूल रूप में एक ऊर्जा है, जिसे दुनिया अल्मोड़ा नाम से जानती है.

विवेक सौनकिया युवा लेखक हैं, सरकारी नौकरी करते हैं और फिलहाल कुमाऊँ के बागेश्वर नगर में तैनात हैं. विवेक इसके पहले अल्मोड़ा में थे. अल्मोड़ा शहर और उसकी अल्मोड़िया चाल का ऐसा महात्म्य बताया गया है कि वहां जाने वाले हर दिल-दिमाग वाले इंसान पर उसकी रगड़ के निशान पड़ना लाजिमी है. विवेक पर पड़े ये निशान रगड़ से कुछ ज़्यादा गिने जाने चाहिए क्योंकि अल्मोड़ा में कुछ ही माह रहकर वे तकरीबन अल्मोड़िया हो गए हैं. वे अपने अल्मोड़ा-मेमोयर्स लिख रहे हैं

वाट्सएप में काफल ट्री की पोस्ट पाने के लिये यहाँ क्लिक करें. वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Sudhir Kumar

View Comments

  • अल्मोड़ा और उसके मोहल्लों से संबंधित ऐसी सतही और हास्यास्पद जानकारी से बड़ा दुख पहुंचा। लेखक ने यदि लिखने से पूर्व अल्मोड़े के इतिहास का सरसरी तौर पर अध्ययन कर लिया होता तो इस ऐतिहासिक शहर के मोहल्लों की उत्पत्ति विभिन्न गावों से होना जैसी बचकाना बात नहीं लिखते। एक दन्या का उदाहरण देकर यह बताने की ज़रुरत नहीं समझी कि अन्य प्राचीन मोहल्लों का नाम तक नहीं लिखा। कृपया बताएं ये प्राचीन मोहल्ले - डु --टोला(राजपुर),ओड़खोला,भ्यारखोला,नकारचीटोला (नियाज़गंज ),खजांची मोहल्ला ,टमट्यूड़ा,डुबकिया ,नयालखोला,जोहरी मोहल्ला ,सलीमगढ़,कारखाना ,तल्ला/मल्ला जोशीखोला,चौघानपाटा,थपलिया,बद्रेश्वर,तिलकपुर,खोलटा,चौसार,त्यूनरा,कपिना,जाखनदेवी,गल्ली,लक्ष्मेश्वर,पोखरखाली ,चौधरीखोलाआदि मोहल्ले किन गावों से आकर किन लोगों ने बसाए ? समय-काल पर भी प्रकाश डालें।

Recent Posts

सर्दियों की दस्तक

उत्तराखंड, जिसे अक्सर "देवभूमि" के नाम से जाना जाता है, अपने पहाड़ी परिदृश्यों, घने जंगलों,…

19 hours ago

शेरवुड कॉलेज नैनीताल

शेरवुड कॉलेज, भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित किए गए पहले आवासीय विद्यालयों में से एक…

7 days ago

दीप पर्व में रंगोली

कभी गौर से देखना, दीप पर्व के ज्योत्सनालोक में सबसे सुंदर तस्वीर रंगोली बनाती हुई एक…

1 week ago

इस बार दो दिन मनाएं दीपावली

शायद यह पहला अवसर होगा जब दीपावली दो दिन मनाई जाएगी. मंगलवार 29 अक्टूबर को…

1 week ago

गुम : रजनीश की कविता

तकलीफ़ तो बहुत हुए थी... तेरे आख़िरी अलविदा के बाद। तकलीफ़ तो बहुत हुए थी,…

1 week ago

मैं जहां-जहां चलूंगा तेरा साया साथ होगा

चाणक्य! डीएसबी राजकीय स्नात्तकोत्तर महाविद्यालय नैनीताल. तल्ली ताल से फांसी गधेरे की चढ़ाई चढ़, चार…

2 weeks ago