खेल

कोरोना के इन दिनों एक छोटा सा प्रयोग

खब्बू बल्लेबाजों ने दुनिया के सुंदरतम कोणों पर एक चांद लगाया है. लेकिन मेरी नज़र से अगर देखें तो हर कोण से खिंची रेखाओं की काट पर, बीचों-बीच, सबसे चमकीला चांद टांका है दाहिने हाथ के बल्लेबाज रिचर्ड्स ने. सर विवियन रिचर्ड्स. शेर! कम ही देख सके हम उनकी लाइव टेलीकास्ट. तेज़ गेंदबाजों को बिना हेलमेट खेलने वाले. दुनिया की शातिर से शातिर गेंदबाज़ी लाइन की भुस भर देने वाले. अपनी रौ में आने के बाद उनके ख़िलाफ़ खेलने वाले प्रोफेशनल्स के साथ किसी घेलुआ टीम के बाल खिलाड़ी लगने लगते थे. Viv Richards

जाने कौन सा था वो मैच, किसके ख़िलाफ़. बॉलर के रनअप के आखिरी दो सेकेंड में रिचर्ड्स अपनी ही धुरी पर घूमने लगे. रिचर्ड्स के चेहरे पर दुनिया भर की लापरवाही पसरी हुई थी, जैसी वो चुइंग गम चबाते अमूमन रहते थे. गुडलेंथ बॉल थी. टप्पा पड़ने के बाद समय नहीं देती.

टप्पा पड़ने तक रिचर्ड्स लेग स्टम्प के समानांतर और शार्ट लेग के प्लेयर से मुखातिब दिखे और इसके बाद सेकेंड के दसवें हिस्से के वक्फे में रिचर्ड्स विकेट कीपर की आंखों में आंखे डाल कर देख रहे थे. उनका बल्ला अपना काम करके वापस आ चुका था. बॉल विकेट कीपर के ठीक सिर के ऊपर से छह रनों के लिए पठाई जा चुकी थी. कोई बताए न कौन सा मैच था.

विवियन रिचर्ड्स को ज़्यादा लाइव नहीं देखा हमने लेकिन हरी जर्सी वाले अकरम को खूब देखा है. नाखून चबा-चबा कर. वसीम अकरम जब बॉल लेकर रन अप पर होता था तो जैसे पलकें झपकने से मना कर देती थीं. हमारे बचपने की दबी-कुचली इच्छाओं में ये भी था कि काश भारत-पाक बंटवारा न हुआ होता और वसीम जैसा गेंदबाज हमारी साइड से खेलता तो ऑस्ट्रेलिया की दुम में रॉकेट लगा देते. मैं जानता हूँ कि मेरी हमउम्र सहेलियों-बहनों-माताओं की बरसों से दबी हुई सिसकारी निकल गई होगी. इस्स!

बैंहत्था था वसीम. हम कोशिश करके भी बाएं हाथ से गिट्टी-फोड़ भी न कर सके. कभी अति उत्साह में कोशिश की भी तो इतने हौले से निकलती थी हाथ से गेंद कि अंडा-बच्चा-गुड़ुप!

इन कोरोना से काट खाए दिनों में मुझे ये क्यों याद आ रहे हैं? दरअसल एक छोटा सा प्रयोग करने का आइडिया दिया है किसी ने. चूंकि इस वायरस से इन्फेक्ट होने का एक तरीका ये भी है कि ये हमारे ही हाथों से हमारे मुंह या नाक के रस्ते शरीर में प्रवेश करता है तो क्यों न इस हाथ-मुंह के सम्पर्क को ज़रा सा बदल दें.

ये छोटी सी कोशिश की जा सकती है. अपने शरीर के लिए एक हाथ और दूसरी पोटेंशियल इन्फेक्टेड चीज़ों को छूने के लिए दूसरा. चिट्किनी, डोर-नॉब, ड्रॉर, गाड़ी का लॉक, दूध की थैली, डोर बेल, अख़बार, कूड़े का डब्बा, खरीदा गया सामान, शॉपिंग साइट से डिलीवर सामान, रुपए-पैसे जैसी अनेक चीजें हैं जिन्हें बार-बार छूने की मजबूरी है. इन्हें उस हाथ से छूने की आदत डाली जाए जो आपका सामान्य इस्तेमाल का हाथ नहीं है. मतलब अगर अमिताच्च्न को ये सलाह देता मैं तो कहता कि इन्हें छूने के लिए आप दाहिना हाथ इस्तेमाल करें.

ये खुद को गच्चा देने की बात है? हाँ है! क्या कहा? परफेक्शन नहीं आएगा? हाँ बिल्कुल. अगर सर रिचर्ड्स को ब्रायन लारा का स्टांस लेने को कहें तो छक्का क्या दुक्के का तुक्का भी न लगे शायद. लेकिन साहब यहाँ मामला परफेक्शन का नहीं सर्वाइवल का है. ये ‘फिज़िकल डेक्सटेरिटी ड्यूरिंग सोशल डिस्टेन्सिंग’ हासिल करने की कवायद खुद को संक्रमण से बचा ले जाने की जुगत है. विकेट तो नहीं ही गिरेगा सर रिचर्ड्स का.

यकीन जानिए मुश्किल बहुत है पर मुमकिन है. रवि शास्त्री. अपने भुस्कैट हो चुके लॉन्ग ऑन शॉट अर्थात ‘दो कदम आगे बढ़कर छक्का लगाने का हवाई प्रयास और स्टम्प’ के पहले रवि दाहिने हाथ से बैटिंग और बाएं हाथ से बॉलिंग करने वाले शानदार और ख़तरनाक ऑल राउंडर माने जाते थे.

और हाँ अपने लिटिल मास्टर. जिस मैच में गावस्कर गुरु ने दस हज़ार रन पूरे किए थे उसकी याद है आपको. पूरे होते ही सर गावस्कर बाएं हाथ से बैटिंग करने लगे थे. गावस्कर ने किसी मैच में एक बॉलर के लिए बाएं हाथ और बाकियों को खेलने के लिए दाहिने हाथ के इस्तेमाल का भी कमाल किया था. कोई बताए न कौन सा मैच था.

तो फिलहाल घर बैठे न्यूज़ चैनल से उपजने वाले अवसाद से बचते हुए सोशल डिस्टेंसिंग को पूरी श्रद्धा और ईमान से निभाया जाए और कुछ समय के लिए ही सही पोस्ट कोरोना ज़िंदा लोगों की टीम में जगह बनाने के लिए एम्बीडेक्सट्रस होने का जुगाड़ सीखा जाए. अरे अपना विकेट बचाया जाए विकेट.

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अमित श्रीवास्तव. उत्तराखण्ड के पुलिस महकमे में काम करने वाले वाले अमित श्रीवास्तव फिलहाल हल्द्वानी में पुलिस अधीक्षक के पद पर तैनात हैं.  6 जुलाई 1978 को जौनपुर में जन्मे अमित के गद्य की शैली की रवानगी बेहद आधुनिक और प्रयोगधर्मी है. उनकी तीन किताबें प्रकाशित हैं – बाहर मैं … मैं अन्दर (कविता) और पहला दखल (संस्मरण) और गहन है यह अन्धकारा (उपन्यास). 

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