Featured

क्या इस बार भी उत्तराखंड के सांसद बस टेबल पीटते नज़र आयेंगे

जब कभी किसी राष्ट्रीय चैनल पर उत्तराखंड का कोई नेता दिखता है तो खुशी तो बहुत होती है. उत्तराखंड एक छोटा सा राज्य है इसलिये यहां से चुने जाने वाले अधिकांश लोकसभा सदस्य जमीनी नेता ही होते हैं.

पिछले लोकसभा चुनाव में चुने गये उत्तराखंड के पांच सांसदों में निशंक राष्ट्रीय चैनल पर एक बार दिखे बाकि कोई सांसद पांच साल में एकबार भी दिखा हो मुझे याद नहीं. 18 सालों में मुझे अब तक कोई ऐसा सांसद याद नहीं जो उत्तराखंड के मामले को लेकर संसद की वेल पर आ खड़ा हो. मुझे नहीं याद कि प्रश्नकाल में उत्तराखंड के किसी सांसद ने खड़े होकर अपने क्षेत्र की जनता की समस्या संसद पटल पर रखी हो.

न ही मुझे ऐसा कोई संसद याद आता है जिसने पहाड़ को लेकर कोई ऐसा भाषण दिया हो जिसे याद किया जा सके. मेरी याद में संसद में उत्तराखंड की जब भी बात हुई है यहां की आपदा के बाद शोक मनाने के लिये हुई है.

उत्तराखंड राज्य बनने के बाद अब तक चार लोकसभा चुनाव हो चुके हैं. इस बार चौथी बार यहां के लोगों ने अपने जनप्रतिनिधियों को चुना है जो आज संसद में शपथ ले रहे हैं. इन जनप्रतिनिधियों से उम्मीद की जाती है कि ये हमारी आवाज बनकर संसद में गुजेंगे. लेकिन 18 साल तक हमारे चुने जनप्रतिनिधियों ने दर्शक बनकर ही संसद की शोभा बड़ाई है.

पिछली लोकसभा को ही ले लीजिये नैनीताल सीट से चुनकर लोकसभा में गये भगत सिंह कोश्यारी. भगत सिंह कोश्यारी ख़ुद को जमीनी नेता मानते हैं आपको आये दिन हल्द्वानी रेलवे स्टेशन पर शाम की ट्रेन से दिल्ली में संसद में भाग लेने जाते दिख जायेंगे. इससे उनकी जमीनी नेता वाली छवि और अधिक मजबूत भी होती है लेकिन पिछली लोकसभा में पांच सालों में कोश्यारी ने संसद में कुल 13 सवाल पूछे और कुल 11 बहसों में का हिस्सा बने.

इन पांच सालों में उत्तराखंड के इन पांच सांसदों ने कुल 28 प्राइवेट मेम्बर बिल सदन में रखे. जिनमें 23 अकेले रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ ने और 5 प्राइवेट मेम्बर बिल भुवन चन्द्र खंडूरी ने रखे. पिछली लोकसभा में निशंक उत्तराखंड से संसद में सबसे एक्टिव सांसद रहे.

क्या उत्तराखंड के लोग संसद में अपने जनप्रतिनिधियों को इसलिये भेजते हैं कि वे संसद की टेबल पीट सकें. इस वर्ष चुने गये लोकसभा सांसदों से उत्तराखंड के लोगों से जुड़े मुद्दे उठायेंगे उत्तराखंड की बात देश के सामने रखेंगे.

– गिरीश लोहनी

वाट्सएप में पोस्ट पाने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online

बागेश्वर के बाघनाथ मंदिर की कथा

जब नन्दा देवी ने बागनाथ देव को मछली पकड़ने वाले जाल में पानी लाने को कहा

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Girish Lohani

Recent Posts

अंग्रेजों के जमाने में नैनीताल की गर्मियाँ और हल्द्वानी की सर्दियाँ

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…

2 days ago

पिथौरागढ़ के कर्नल रजनीश जोशी ने हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान, दार्जिलिंग के प्राचार्य का कार्यभार संभाला

उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…

2 days ago

1886 की गर्मियों में बरेली से नैनीताल की यात्रा: खेतों से स्वर्ग तक

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…

3 days ago

बहुत कठिन है डगर पनघट की

पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…

4 days ago

गढ़वाल-कुमाऊं के रिश्तों में मिठास घोलती उत्तराखंडी फिल्म ‘गढ़-कुमौं’

आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…

4 days ago

गढ़वाल और प्रथम विश्वयुद्ध: संवेदना से भरपूर शौर्यगाथा

“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…

1 week ago