यदि राजनैतिक इच्छाशक्ति हो और नीयत साफ़ तो सरकार और नौकरशाही का गठबंधन बेहतरीन काम करने में भी सक्षम है. इसकी एक मिसाल हाल ही में पौड़ी में हुई राज्य सरकार की कैबिनेट मीटिंग में लिया गया एक महत्वपूर्ण फैसला है.
उत्तराखण्ड कृषि उत्पादन विपणन बोर्ड (UKAPMB) जिसे राज्य मंडी परिषद भी कहा जाता है, ने पिछले हालिया वर्षों में अनेक बेहतरीन काम किये हैं.
राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले किसानों के बारे में उनकी विशिष्ट भौगोलिक परिस्थितियों को देखते हुए एक अलग कार्यनीति की आवश्यकता की लम्बे समय से महसूस की जा रही थी. इस के मद्देनजर बोर्ड के पूर्व प्रबंध निदेशक ने राज्य सरकार से सिफारिश की थी कि राज्य के पर्वतीय कृषकों की उपज को मंडी परिषद द्वारा सीधे खरीदने के लिए दस करोड़ रुपये का रिवॉल्विंग फंड तैयार किया जाय.
उनका सुझाव था कि इस फंड को मंडी परिषद ने अपने प्रयासों से विकसित कर पर्वतीय किसानों की उपजों जैसे मडुवा, भट, गहत, राजमा, झिंगोरा और चुआ को सीधे खरीदना चाहिए. पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर उन्होंने इसे पिछले साल कुमाऊँ और गढ़वाल के एक-एक स्थान पर लागू किया जिसके परिणामस्वरूप इस स्थानों के पर्वतीय किसानों को उनकी उपज का लगभग डेढ़ से दो गुना दाम हासिल हुआ.
उल्लेखनीय है कि बाजार में हाल के कुछ वर्षों में पहाड़ी उत्पादों की मांग बढ़ी है. आर्गेनिक उत्पादों का बाजार जिस तेजी से बढ़ा है, उसे देखते हुए यह तथ्य बहुत अचरज पैदा नहीं करता. स्वाद और स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत उच्च स्तर के इन पहाड़ी उत्पादों को उचित प्रोत्साहन नहीं मिला है जिस कारण किसानों ने इन्हें उगाना बहुत कम कर दिया है.
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उत्तराखण्ड के पर्वतीय जिलों की मुख्य फसलों में मिलेट्स, फलीदार फसलें और कम जानी जाने वाली अन्य फसलें जैसे मडुवा, झिंगोरा, चुवा, कोटू इत्यादि हैं. इस फसलों के लिए कोई नियत राजकीय नीति न होने के कारण इनकी अधिकतर अनदेखी होती आई थी. उत्पादन से फसल के बाद तक की सारी प्रक्रिया प्रमुख राजकीय हस्तक्षेपों के दायरे में आने से छूटी रही थी. यह केवल पृथक उत्तराखण्ड राज्य बनने के बाद ही संभव हो सका कि बीज और उत्पादनोत्तर कार्यों हेतु मशीनों के विकास के क्षेत्र में कुछ कार्य हुआ है. ये मिलेट्स पोषक तत्वों से अति-संपन्न होने के कारण जानी जाती रही हैं. आज ये फसलें स्वास्थ्य, ऑर्गनिक फ़ूड और प्रोसेसिंग क्षेत्र में सुपर फूड्स के तौर पर काफी महत्वपूर्ण हो गयी हैं. दो लाख हैक्टेयर के वृहद क्षेत्रफल में उत्पादित किये जाने के बावजूद ये फसलें सप्लाई-चेन से उल्लेखनीय रूप से दूर होने के कारण सामान्य उपभोक्ता की पहुँच से भी परे हैं. (Uttarakhand Government to Buy Hill Produce)
इक्का-दुक्का बड़ी कम्पनियां इन उत्पादों को आकर्षक पैकिंग में बेच तो रही हैं लेकिन बाजार की मांग को देखते हुए उनकी सप्लाई नगण्य के बराबर है. एक लिहाज से देखा जाय तो पहाड़ी आर्गेनिक उत्पादों का बाजार अब भी एक खुला हुआ प्लेटफार्म है जिसमें बहुत कुछ किये जा सकने की गुंजाइश है. (Uttarakhand Government to Buy Hill Produce)
उत्तराखण्ड कृषि उत्पादन विपणन बोर्ड की एक और बड़ी उपलब्धि यह रही है कि उसने साढ़े सत्रह करोड़ रुपये की लागत से रुद्रपुर में एक अत्याधुनिक प्रसंस्करण प्लांट स्थापित किया है जिसमें पर्वतीय किसानों की उपज को खरीदने के बाद उनके भंडारण, सफाई, ग्रेडिंग और ब्रांडिंग तक की पूरी व्यवस्था है. मंडी परिषद की योजना है कि इस खरीद के लिए खरीद केंद्र बनाए जाएंगे और एक निश्चित समय सीमा के भीतर उक्त रिवॉल्विंग फंड को सौ करोड़ रुपये तक पहुंचाया जाएगा. गेहूँ-धान और गन्ने की तर्ज पर मडुवा और पहाड़ी अनाज व दालों का न्यूनतम खरीद मूल्य भी तय किया जाएगा.
यदि उत्तराखंड सरकार की यह पहल अमली जामा पहन सकी तो प्रदेश के पहाड़ी इलाकों में कृषि के क्षेत्र में काफी सुधार होने की संभावना है. यह नूतन पहल पहाड़ों से पलायन पर एक हद तक लगाम लगाने में तो कामयाब होगी ही, ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के बड़े अवसर भी खुलेंगे.
-काफल ट्री डेस्क
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देश के सीमान्त जनपद पिथौरागढ़ की शान्त वादियों में पढ़ने वाले हमारे छात्र बंधुओं की तथ्यात्मक मांग कि ,उनको विद्यालय स्तर पर यथोचित पुस्तकालय उपलब्ध कराया जाय, पर किसी सरकारी अमले चाहे राज्य सरकार हो या केन्द्र सरकार, ने गौर नहीं फरमाया ।
छात्रों के समूह द्वारा राज्य की शान्त वादियों की तरह आन्दोलन भी अत्यन्त शान्त और शालीन तरीके से उठाया गया है जो कि प्रशंशनीयहै।
हमें ऐसा लगता है कि सरकारों को उनके मंत्रियों की तरह आचरण करने पर ही सुनने की आदत सी हो गयी है।इससे पहले कि छात्र अपनी दिशा बदलें हम सभी शांतिप्रिय प्रदेशवासियों से अनुरोध करते हैं कि छात्रों की जायज मांग के समर्थन में मुखर होकर सहयोग करें ।
जनपद स्तर के जनप्रतिनिधियों का भी ये दायित्व बनता है कि वे रचनात्मक भूमिका अदा करें ।
वैसे भी जिला स्तर पर यथोचित पुस्तकालय होना ही चाहिये ।