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इतिहास वाया अक्षय कुमार

जम्बूद्वीपे भारतखंडे कलियुगे… शताब्दि 2000 मद्धे फ़िल्मकार के चोले में अवतरित अक्षय कुमार जी ने हाल में बताया कि भारत की नई पीढ़ी को मुग़लकालीन इतिहास के अध्याय विस्तार पूर्वक पढ़ाये जाते हैं पर हिन्दू राजाओं की वीर गाथाओं के बारे में बहुत कम पढ़ाया जाता है, बस दो-चार लाइन. ठीक, क़िताब बनाने वाले नोट कर चुके.
(Umesh Tewari Vishwas 2022 Satire)

आइए हम जानते हैं उनके बारे में जिन्होंने अपने विशद अध्ययन और अपने देश (कनाडा?) की संस्कृति, सभ्यता और अपने अनुभवों के आधार पर भारत के इतिहासकारों, शिक्षाविदों, शैक्षिक परिषदों को बहुमूल्य दृष्टिकोण से अभिसिंचित किया. क्या उनके ज्ञान के परिप्रेक्ष्य में इतिहासकारों के ब्लंडर को रेखांकित करना समीचीन न होगा? होगा जी होगा.

आप पूछेंगे इस पक्षपातपूर्ण रवैये की ओर उनका ध्यान तब क्यों नहीं गया जब वो अध्यनरत रहे? नहीं गया तो नहीं गया, पास होने को तो कुंजी काफ़ी रहती हैगी. अक्षय को बाद विच समझ आया कि कहानी तो लंबी है, टैक्स फ़्री एलिमेंट्स युक्त है, तो वो बन गया पृथ्वीराज! किरदार जिसकी व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी से प्राप्त इनपुट और उसके बरक्स मुग़लई आउटपुट के साथ कहानी ये रही.
(Umesh Tewari Vishwas 2022 Satire)

जैसा कि सभी चराचर प्राणियों के केस में होता /माना जाता है; पशु, पक्षी, चींटी, पतंगा, कृमि जैसे लख चौरासी योनि भुगत कर मानुष देह मिलती है. इस चक्र को पूरा कर उसका जन्म राजा सोम और महारानी कमल के पुत्र रूप में सन 1149 में होता है. इस प्रकार अपने इस जनम में वह जात से राजपूत रहे.

उसने 12 वर्ष की कच्ची उम्र में बिना किसी हथियार के खूंखार जंगली शेर के मुँह में हाथ डाल कर जबड़ा फाड्डाला. इतिहास में इसका वर्णन नहीं मिलेगा जबकि 18 वर्ष के शेखू का हाथी की पीठ पर बैठकर शेर का शिकार खेलने का विवरण उपलब्ध हैगा.

उसने मात्र 16 वर्ष की आयु में ही महाबली नाहरराय को युद्ध में हराकर माड़वकर पर विजय प्राप्त करी हैगी. इस उम्र में मुगलों के बच्चे कंचे खेला करते थे. नहीं?

उन्होंने तलवार के एक ही वार से जंगली हाथी का सिर धड़ से अलग कर दिया. सुना, सलीम ढंग से मुर्ग़े तक हलाल नहीं कर पाता था.

उनकी तलवार का वज़न 84 किलो (सुविधा हेतु मन-सेर से परिवर्तित) था, जिसे वह एक हाथ से चलाते थे. मगर इतिहास मुगल शासकों द्वारा चलाई जाने वाली वज़नी तोपों के विवरण से भरा हैगा जिनको खच्चर खींचकर रणभूमि में ले जाते थे.

उनके पशु-पक्षियों के साथ बातें करने की कला रही. जे वाली छमता के बाबत बच्चों को पढ़ाया जा रहा इतिहास मौन हैगा. जबकि मुग़लों द्वारा (मात्र) कबूतरों के पैर पर चिट्ठी बांधकर संदेश भेजे जाने पे फ़िल्मी डायलॉग और गीतों की भरमार हैगी.

राजा जी पूर्ण रूप से मर्द बताए जाते हैं, अर्थात उनकी छाती पर स्तन नहीं थे बल. मुगलकालीन पेंटिंग देखने से पता चलता है कि मुस्लिम शासकों के स्तन थे अतः वो पूरे मर्द नहीं रहे. जे बात बहुत ग़ौर करने की है.

वह 1166 ई. में अजमेर की गद्दी पर बैठे और तीन वर्ष के बाद यानि 1169 में दिल्ली के सिंहासन पर बैठकर हिन्दुस्तान पर राज किया. मात्र 3 वर्षों के भीतर दिल्ली विजय का कीर्तिमान उनके नाम है पर लिखा नहीं. नवाबों को बीस साबित करने की कवायद के तहत राजधानी दिल्ली से दौलताबाद ले जाने और चमड़े के सिक्के चलाने वाले तुग़लक़ को ग्लोरीफाई करने कू नाटक तक लिख मारा गया. अफ़सोस गिनीज़ बुक ऑफ रेकॉर्ड्स तब नहीं रही वरना आज यूँ सिलेबस न बदलना पड़ता, जो है.

उनकी तेरह पत्नियां थी. जिनमें सबसे प्रसिद्ध संयोगिता ठैरी जिसने ख़ुद उन्हें स्वयंवर में वरण किया. दर्ज़नों बेग़में रखने वाले आक्रांता संयोगिता के अपहरण और और और दर्ज़न भर रानियाँ रखने के लिए राजा जी को बदनाम करने का प्रयास किये, पर इतिहास में इस दुष्प्रचार पर कोई फुटनोट तक नहीं रहा.

वो 16 बार गोरी को युद्ध में परास्त किये परंतु हर बार ये दुस्साहस आगे न करने को कुरान की कसम खिलाने के बाद उसे जीवनदान दे दिये. इतिहासकार ऐसे मुद्दों पर चंदबरदाई या आल्हा-ऊदल के मत का क़तई संज्ञान नहीं लेते दिखें और सुनी-सुनाई बातों पर निबंध सा लिख देवें.

बतावें कि सम्राट को गोरी ने आखिरकार धोखे से बंदी बनाकर बहुत प्रताड़ित किया, कई माह तक भूखा रखा और दोनों आंखें फोड़ दी. उत्पीड़न की जे कहानी जो इतिहास में सही दर्ज़ रही होती तो इसने कश्मीर पाइल्स के अग्निहोत्री का ध्यान पैले खेंच लिया होता और चंद्र प्रकाश द्विवेदी की बेइज़्ज़ती ख़राब न होत्ती.

उनकी सबसे बड़ी विशेषता जे थी कि उन्हें जन्म से ही शब्द भेदी बाण की कला ज्ञात रही. उनसे पूर्व इस कला के मर्मज्ञ केवल अयोध्या नरेश राजा दशरथ ही रहे. उनका दोस्त चंदबरदाई जानता था पर गोरी के प्रेम में गिरे इतिहासकारों को भला इसका पता कैसे चलता?

आख़िरकार उन्होंने गोरी को उसी के दरबार में शब्द भेदी बाण से मारा. इधर चंदबरदाई ने अपनी कविता पढ़ी “चार बाँस चौबीस गज अंगुल अष्ट प्रमान, ता ऊपर सुल्तान है मत चूके चौहान.” उधर चौहान जी ने निशाने पर बाण चला कर गोरी को धराशायी कर दिया. दुर्भाग्य से इसमें भी इतिहासकार एक मत नहीं हैं. अमरिक्की मानें कि टारगेट की दूरी-ऊँचाई के हिसाब से अचूक तीर चलाने वाले को ट्रिग्नोमेट्री का जानकार होना चाहिए, शब्दभेदी कलावंत नहीं. वो तर्क देवें कि यदि बाण शब्दभेदी था तो उसे चंदबरदाई को छेदना चाहिये था क्योंकि वह काव्यपाठ कर रहा था. सुल्तान और दरबारी तो मंत्रमुग्ध होकर सुनते होंगे. कुछ रेशनलिस्ट मानें कि राज द्रोह का बंदी होने के नाते राजदरबार में चौहान की सशस्त्र उपस्थिति का कोई तर्कपूर्ण आधार नहीं ठैरा.

जबकि रूसी पिरभाव वाले परंपरावादी इतिहासकार मानें कि गोरी के मुख से ‘वाह-वाह’ निकलने पर ही चौहान ने शर-संधान किया जिससे फाइनली गोरी मारी गई.

गोरी को मारने के बाद भी वह दुश्मन के हाथों नहीं मरे बताए जावें; अपने मित्र चन्दबरदाई के हाथों मरे, दोनों ने एक दूसरे को कटार घोंप कर मार लिया. चूंकि मुगल इतिहास डिटेल में लिखा जाना था और हिंदू राजाओं का संक्षिप्त, तो 1192 के आसपास के इतिहासकारों के पास उनकी वीरगति दर्ज़ करने का और कोई कॉन्विनसिंग विकल्प नहीं बचा था.

वर्तमान में इतिहास लिखने में संलिप्त पन्थ निरपेक्ष स्वयंसेवक ‘गोरी तेरा गाँव बड़ा प्यारा, मैं तो गया मारा’ की थ्योरी को स्वीकारते हुए अक्षय कुमार के बॉक्स ऑफिस पर खेत रहने की बात स्वीकार करते हैं. वैसे गोरी पर उनका हिट ‘चुरा के दिल मेरा गोरिया चली..’ है परंतु इस संदर्भ में वो ज़बरदस्ती भी फिट नहीं होता जैसे पिच्चर में पृथ्वीराज की नकली मूँछ. असल या यक्ष प्रश्न यह है कि जो ख़ुद इतिहास को नहीं मालूम वह अक्षय को कैसे पता है…?

दरअस्ल अक्षय कुमार ही पूर्वजन्म में सम्राट पृथ्वीराज या राय पिथोरा रहे. हालाँकि अपने पूर्वजन्म में उनके मसखरे होने के कोई प्रमाण नहीं मिलते न ही मीडिया पर्सन होने के.
(Umesh Tewari Vishwas 2022 Satire)

उमेश तिवारी व्यंग्यकार, रंगकर्मी और मान्यताप्राप्त स्वतंत्र पत्रकार हैं. अपनी शर्तों पर जीने के ख़तरे उठाते हुए उन्होंने रंगकर्म, पत्रकारिता, लेखन, अध्यापन, राजनीति से होकर गुज़रती ज़िंदगी के रोमांच को जिया है. रंगकर्म के लेखे-जोखे पर 2019 में ‘थिएटर इन नैनीताल’ नाम से किताब छप चुकी है. काफल ट्री के शुरुआती साथी हैं.

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