भारत के इतिहास में यह भी दिलचस्प रहेगा कि किसी राज्य ने 20 साल में 10 बार मुख्यमंत्री देखे होंगे. बीते चार साल से उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ‘नट’ की तरह जिस पतली रस्सी पर चल रहे थे आखिर में वह टूट ही गयी. त्रिवेंद्र सिंह रावत इस रस्सी पर चुने जाने के दिन भी अकेले थे और आखिर में आज भी अकेले ही दिखे.
(Trivendra Singh Rawat)
यह त्रिवेंद्र सिंह रावत के नेतृत्व की बड़ी कमी रही कि वह कभी अपने साथ किसी को खड़ा नहीं कर पाये. यह उनका स्वभाव है या न जाने क्या पर राजनीतिक तिकड़मबाजी में वह हमेशा पिछड़े ही रहे.
उत्तराखंड में जब प्रचंड बहुमत से सरकार बनी तो लोगों को उम्मीद थी कि शायद कुछ बड़े बदलाव राज्य में होंगे. इस प्रचंड बहुमत का भी उत्तराखंड की जनता को कोई फायदा नहीं हुआ. सरकार लगातार आम जनता से दूर रही. मुख्यमंत्री की अलोकप्रियता इस स्तर तक बड़ गयी कि पार्टी को चुनाव के एक साल पहले नये मुख्यमंत्री के चयन जैसा मुश्किल फैसला लेना पड़ा है.
(Trivendra Singh Rawat)
सूत्रों के मुताबिक भारतीय जनता पार्टी के आलाकमान की पहली पंसद कभी त्रिवेंद्र सिंह रावत थे ही नहीं. माना जाता है कि संघ के दबाव के चलते त्रिवेंद्र सिंह रावत को उत्तराखंड का नेतृत्व संभालने को दिया गया. यही कारण है कि त्रिवेंद्र सिंह रावत के मुख्यमंत्री चुने जाने के दिन से ही उत्तराखंड भाजपा में उन्हें गिराने के लिये गुटबाजी हमेशा जोरों पर रही.
इस प्रचंड बहुमत वाली सरकार में भी मुख्यमंत्री का पांच साल पूरा न कर पाना दिखाता है कि उत्तराखंड में कांग्रेस और भाजपा के नेताओं के बीच सत्ता की लूट किस स्तर तक पहुंच गयी है. खैर जाते-जाते त्रिवेंद्र सिंह रावत एन.डी. तिवारी का नाम जरुर कर गये गये हैं अगले 6 सालों तक एक बार फिर एन.डी. तिवारी ही एकमात्र ऐसे मुख्यमंत्री रहेंगे जिन्होंने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के रूप में पांच साल का कार्यकाल पूरा किया है.
(Trivendra Singh Rawat)
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