घुघुतिया पहाड़ियों का सबसे प्रिय त्यौहार है. बिरला ही ऐसा कोई होगा जिसके भीतर घुघितिया की भीनी याद न होगी. देशभर में मकर संक्रांति के नाम से मनाया जाने वाला त्यौहार उत्तराखंड में घुघुतिया त्यार नाम से मनाया जाता है. धार्मिक महत्व के अतिरिक्त घुघुतिया त्यार के ऐसा त्यौहार है जिससे हर पहाड़ी के बचपन की याद जुड़ी हुई है.
(Traditional Food in Makar Sankranti Uttarakhand)
आंगन में खड़े होकर ‘का कौवा का का, पूसे की रोटी माघे खा’ या काले कौआ काले, घुघुते की माला खा ले, की वो आवाज आज हर पहाड़ी में मन में एक रोमांच पैदा कर देती है. उसे डुबा देती है कभी न भूलने वाले यादों के एक खुबसूरत संसार में. जहां उसके गले में मोतियों की माला से भी अधिक अनमोल घुघुते की माला है.
अपने पकवानों के जिक्र बिना घुघुतिया का त्यार अधूरा है. पूस के महीने की आखिरी रात को पहाड़ियों के घरों में बनते हैं उनके अपने पारंपरिक पकवान. गुड़ के पानी में भीगो कर उसके पानी के साथ आटे, घी, दूध और पानी के साथ गूंदा जाता है. इसके बाद बनते हैं घुघते.
पुराने समय में इतने बड़े परिवार में सबके हिस्से के घुघते बनते थे. जो परिवार से दूर हो उसे किसी के हाथ भेजने का प्रबंध होता या उसके इंतजार में घर में ही कहीं माला बनाकर रख दिये जाते. घुघते के अलावा बच्चों के लिये अनार के फूल, जातर (आटा पीसने वाली चक्की) तलवार और डमरू भी खूब बनते.
घुघते के अलावा आज बड़ा बनता है पूरी बनती है हरी सब्जी बनती है. अधिकांश क्षेत्रों में अगली सुबह कौवे को पांच चीजें अवश्य दी जाती हैं: घुघते, बड़ा, पूरी, घी और हरी सब्जी.
(Traditional Food in Makar Sankranti Uttarakhand)
कड़ाके की ठण्ड के बाजूदद अगली सुबह बच्चे सुबह सुबह नहा लेते और बुलाते अपने कौवों को. कहते हैं कि आज के दिन कौवे भी गंगा नहाकर आते है. कोई इस डाने से कौवे को बुलाता हुआ कहता है काले कौआ काले, घुघुते की माला खा ले तो कोई उस डाने से उसे लालच देकर कहता है- ले कौआ बड़, मेंकैं दी जा सुनुक घ्वड़. इन सबके अतिरिक्त एक बात यह भी है कि सरयू के दक्षिण वाले भाग में संक्रांति को त्यार मनाकर दो गते माघ की सुबह काले काले घुघता खाले की पुकार लगती है.
(Traditional Food in Makar Sankranti Uttarakhand)
Support Kafal Tree
.
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…
उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…
(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…
पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…
आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…
“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…