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50 सालों में देशभर से बाघों का अस्तित्व खत्म हो जायेगा !

भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआइआइ) के ताजा अध्ययन में देश के 50 टाइगर रिजर्व में से 38 में बाघों का अस्तित्व 50 या अधिकतम 100 साल ही रहने के आसार हैं. संस्थान में आयोजित 32वीं वार्षिक शोध संगोष्ठी में इस अध्ययन को साझा भी किया गया.

यह चौंकाने वाला खुलासा कि इन टाइगर रिजर्व में बाघिनों की संख्या (ब्रीडिंग यूनिट) 20 से भी कम है. वैज्ञानिको ने कहा कि बाघों के संरक्षण के लिए प्रत्येक टाइगर रिजर्व में 20 बाघिनों का होना जरूरी है. मौजूदा तस्वीर पर गौर करें तो बाघिनों की मौजूदगी महज 35 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल पर है, जबकि बाघों का दायरा 89 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल तक है.

अभी कार्बेट, कान्हा, रणथंबौर, सुंदरवन, पिंच, बांधवगढ़, कांजीरंगा, तडोबा समेत मदुमलई, सत्यमंगलम, नागरहोले, बांदीपुर आदि टाइगर रिजर्व में ही 20 से अधिक बाघिन है. देश में कुल बाघों की संख्या 2200 है. इनमें एक बाघ पर डेढ़ बाघिन हैं. हालांकि इनका दायरा सीमित टाइगर रिजर्व तक ही है. इसके चलते ऐसे टाइगर रिजर्व में बाघों की संख्या भी सिमटी हुई है.

देश में अनियोजित विकास से बाघों के कॉरीडोर सिमट रहे हैं या उनमें दखल बढ़ गया है. इसके चलते भी बाघ अन्य क्षेत्रों में विचरण नहीं कर रहे। यह भी बड़ी वजह है कि ज्यादातर टाइगर रिजर्व में बाघिन के साथ बाघों की संख्या भी कम है.

साथ ही बाघों के रहने लायक वासस्थलों की व्यवस्था पर यह दायरा तीन लाख वर्ग किलोमीटर तक फैला है. लिहाजा, देश के वनों में बाघों के फूलने-फलने लायक पूरा माहौल है. सिर्फ इस क्षेत्रफल को संरक्षित रखने व हस्तक्षेप से बचाए जाने की जरूरत है। इसके लिए केंद्र सरकार को कुछ संस्तुतियां जारी की गई हैं, ताकि बाघों के अस्तित्व पर बढ़ रहे संकट को दूर किया जा सके.

वहीं कार्बेट और उसके आसपास के क्षेत्रों में पिछले 20 माह की अवधि में 15 से अधिक बाघों की मौत हुई. इनमें सबसे अधिक नौ मौतें कार्बेट में हुई. सूरतेहाल प्रश्न उठने लगा है कि जिस हिसाब से कार्बेट में बाघों की संख्या में इजाफा हुआ है.

वर्ष 1936 में अस्तित्व में आए कार्बेट नेशनल पार्क को देश का पहला नेशनल पार्क है. वर्ष 1973-74 में प्रोजेक्ट टाइगर प्रारंभ होने के बाद यहां बाघ संरक्षण के प्रयासों में तेजी आई और इसके बेहतर नतीजे भी आए. बाघों के घनत्व के मामले में कार्बेट आज भी देश में अव्वल है. यही नहीं, बाघों की संख्या के लिहाज से 361 बाघों के साथ उत्तराखंड देश में दूसरे स्थान पर है,लेकिन लगातार बाघों की मौत के बाद कई सवाल उठ रहें है.

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