मोदी पूरी तरह सुरक्षित हैं, एसपीजी में गुजारे बारह वर्षों के आधार पर यह कह सकता हूँ. प्रधानमन्त्री की सुरक्षा को लेकर एसपीजी से चौकस व्यवस्था हो ही नहीं सकती| लेकिन उनका झूठ सुरक्षित नहीं है. क्योंकि सुधा और अन्य सक्रिय मानवाधिकार कर्मियों पर उनकी हत्या के षड्यंत्र के आरोप को एसपीजी के ही टेस्ट से आँका जाना भी मुश्किल नहीं.
छह सितम्बर को सुप्रीम कोर्ट के सामने संविधान के शरीर की रक्षा का नहीं उसकी आत्मा को बचाने का सवाल होगा. कोर्ट के सामने हमेशा ही दो पक्ष होते हैं जिनमें एक सही साबित होता है. लेकिन इस बार जो दो पक्ष हैं उनमें एक संविधान की आत्मा का हनन करने वाला है. मुझे तनिक भी शक नहीं कि वह कौन सा पक्ष है!
एसपीजी के इतिहास में किसी प्रधानमन्त्री की हत्या की साजिश का पहला मामला दर्ज होने का सेहरा भी नरेंद्र मोदी के सर ही बंधना था. नरेंद्र मोदी के नाम तमाम तरह के रिकॉर्ड हैं. बतौर मुख्यमंत्री गुजरात भी उनकी हत्या की साजिश के मुक़दमे बनाये गये. अब बतौर प्रधानमन्त्री उनकी हत्या की साजिश का मुक़दमा दर्ज हो गया.
श्रीमती इंदिरा गांधी की प्रधानमन्त्री रहते हत्या हुयी थी लेकिन तब एसपीजी अस्तित्व में नहीं होती थी. राजीव गाँधी की जब साजिशन हत्या हुयी, वे भूतपूर्व प्रधानमन्त्री हो चुके थे और तत्कालीन नियमों के अनुसार उनकी सुरक्षा में एसपीजी नहीं थी. भूतपूर्व प्रधानमन्त्री के रूप में चंद्रशेखर के समय में एसपीजी पर सुरक्षा का दायित्व आ चुका था. एक बार उन पर ट्रेन यात्रा के दौरान हमले की गंभीर स्थिति पैदा हो गयी थी पर वह आकस्मिक विवाद से बनी न कि किसी साजिश के तहत.
मोदी की हत्या के षड्यंत्र में आरोपित इन साजिशकर्ताओं की उम्र साठ से अस्सी के दशक में चल रही है. उनकी गिरफ्तारियां कैसे संपन्न हुयी हैं; सभी अपने-अपने घर में बैठे थे कि महाराष्ट्र पुलिस आये और उन्हें पकड़ ले. दरअसल, कहना पड़ेगा कि गत जून से ही महाराष्ट्र पुलिस उनसे यह इन्तजार करवा रही होगी. पुलिस के अपने दावों के अनुसार, तब से उनका नाम पुलिस के पास आ चुका था.
सोचिये, दुनिया में भी ऐसा कभी नहीं हुआ होगा कि देश के प्रधानमन्त्री की हत्या की साजिश का मुक़दमा दर्ज हुआ हो और साजिशकर्ताओं को गिरफ्तारी के बाद पुलिस द्वारा ले जाने पर देश की सुप्रीम कोर्ट ने ही रोक लगा दी हो|
कहीं आपको हँसी तो नहीं आ रही यह सब पढ़ कर. क्या महाराष्ट्र पुलिस ऐसे ही स्वयंसिद्ध फर्जी मामले बनाती है और वह भी प्रधानमन्त्री का नाम लेकर. नहीं, पुलिस कैसी भी गयी गुजरी हो, ऐसी हास्यास्पद कहानी नहीं बनायेगी.
यह आईबी की स्क्रिप्ट लगती है जो रिपोर्ट गढ़ने में तो मास्टर है पर केस बांधने में फिसड्डी!
कुछ बातें बिलकुल भी मेल नहीं खातीं. चलन को देखें तो माओवादी अपनी मांद से बाहर आकर राजनीतिक शिकार नहीं करते, और मोदी का किसी माओवादी मांद में जाने का कार्यक्रम कभी बना नहीं. यदि जून के महीने से ही मोदी की हत्या के आतंकी षड्यंत्र का आभास महाराष्ट्र पुलिस को लग गया था तो इस बेहद गंभीर मामले की आगे की छान-बीन, नियमानुसार एनआईए को क्यों नहीं सौंपी गयी?
हुआ यह कि कलबुर्गी और गौरी लंकेश की हत्या की कोर्ट निर्देशित सीबीआई जांच में हिन्दू संगठन के भावी हत्याओं की योजना के राज खुल गये और महाराष्ट्र पुलिस को उनके लोगों की गिरफ्तारी करनी पड़ी. हिंदुत्व की राजनीति पर यह चोट और वह भी अपनी ही पुलिस की मार्फत कहाँ बर्दाश्त होनी थी. तो उसी पुलिस से अब मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को लपेटे में लेने को कहा गया. यानी संतुलन बैठाने में बुरी तरह असंतुलित हो गयी पुलिस की कार्यवाही.
जाहिर है, महाराष्ट्र पुलिस अपनी कहानी के समर्थन में तरह-तरह के बयान और दस्तावेज सुप्रीम कोर्ट में पेश करेगी. प्रेस कांफ्रेंस में उसने अपने तरकश के कुछ तीर दिखाये भी हैं. बयान, पुलिस को लिखने होते हैं, वह जो चाहे लिख ले. साइबर युग में फर्जी मेल बनानी भी क्या मुश्किल हैं. तब भी कोई अदालत इन साक्ष्यों को प्रथम दृष्टा अस्वीकार नहीं कर सकती. सुप्रीम कोर्ट भी हद से हद आगे और जांच का आदेश दे सकती है|
तो क्या छह सितम्बर को संविधान की आत्मा की हत्या होने दी जायेगी? अब मैं उस एसपीजी टेस्ट पर आता हूँ जिसका जिक्र इस आलेख के शुरू में किया गया है. एसपीजी की कार्य संस्कृति के आयाम रहे हैं- फूल प्रूफ और फेल प्रूफ सिक्यूरिटी. इसे हासिल करने में इंटेलिजेंस इनपुट की अहम भूमिका रहती है. यह इनपुट सभी सम्बंधित सुरक्षा और पुलिस एजेंसीज से वांछित कार्यवाही के लिए साझा किया जाता है.
सत्रह दिसंबर की अटल बिहारी वाजपेयी की शव यात्रा में मोदी का चार किलोमीटर पैदल चलना, मीडिया या आम जन को बेशक चौंका गया हो, एसपीजी और आईबी को निश्चित ही इसकी पूर्व जानकारी होगी. तदनुसार आईबी ने इंटेलिजेंस इनपुट भी एसपीजी समेत सभी सम्बंधित को भेजा होगा. जाहिर है, उसमें मौजूदा मामले में आरोपित षड्यंत्रकारियों का भी विशेष जिक्र रहा होगा.
आरोपियों में सुधा और नवलखा तो दिल्ली के निवासी ही हुये. दिल्ली पुलिस की ओर से उनकी निगरानी की विस्तृत व्यवस्था जरूर की गयी होगी. इसी तरह अन्य आरोपियों की समुचित निगरानी की व्यवस्था के बंदोबस्त सम्बंधित राज्य पुलिस ने किये होंगे. हालाँकि, उस दौरान इन आरोपियों में से किसी की भी गतिविधि पर रोक लगने के संकेत नहीं हैं. दिलचस्प होगा, यदि सुप्रीम कोर्ट की स्क्रूटिनी के लिए ये इंटेलिजेंस इनपुट और निगरानी कवायदें तलब हों.
क्या इन्हें नए सिरे से गढ़ा नहीं जा सकता? क्यों नहीं! लेकिन, पुलिस मित्रो, जितना गढ़ोगे उतना फंसोगे!
-विकास नारायण राय
(अवकाश प्राप्त आईपीएस विकास नारायण राय, हरियाणा के डीजीपी और नेशनल पुलिस अकादमी, हैदराबाद के निदेशक रह चुके हैं. यह आलेख उन्हीं की फेसबुक वॉल से लिया गया है.)
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