जंगल

त्रिशूल का पिशाच : जिम कॉर्बेट

हिमालय के ऊपरी इलाकों में कभी भी न रहे लोगों के लिए यह कल्पना भी कर पाना मुश्किल है कि वहां दूर-दूर बसी छोटी बसासतों में रहने वाले लोग किस तरह अंधविश्वास के घुटन भरे माहौल में रहते हैं. ऊंचे पहाड़ों में रहने वाले अनपढ़ ग्रामीणों के अंधविश्वासों और कम ऊंचाई वाले निचले मैदानी इलाकों में रहने वाले सभ्य, शिक्षित लोगों की मान्यताओं को अलग करने वाली रेखा भी इतनी बारीक है कि यह निश्चित करना मुश्किल होता है कि एक कहां पर ख़त्म होती है और दूसरी कहाँ से शुरू. इसलिए अगर आप मेरी इस कहानी के पात्रों के भोलेपन पर हँसना चाहेंगे, जिनके बारे में मैं अब बताने जा रहा हूं, तो मैं कहूंगा कि एक पल को रुकें. फिर मैं आपसे अपनी कहानी में कहे गए अंधविश्वास और जिन आस्थाओं और विश्वास के बीच आपका लालन-पालन हुआ है उसके बीच फर्क करने को कहुंगा. (The Temple Tiger and More Man-eaters of Kumaon)

कैसर (प्रथम विश्व युद्ध) की लड़ाई के बाद रॉबर्ट ब्लेयर और मैं कुमाऊं के भीतरी इलाके में शिकार खेलने के लिए निकले. सितम्बर की किसी शाम हमने त्रिशूल की तलहटी पर अपना पड़ाव डाला. हमें जानकारी दी गयी कि ‘त्रिशूल के पिशाच’ को हर साल 800 बकरों की बलि चढ़ाई जाती है. हमारे साथ 15 जोशीले और हंसमुख पहाड़ी आदमी थे, जिनके साथ मैं हमेशा ही शिकार पर जाया करता था. इन्हीं में से एक था बाला सिंह. वह गढ़वाली था और कई सालों से मेरे साथ कई अभियानों का हिस्सा रहा था. शिकार के लिए निकलते समय सबसे भारी सामान को लादकर भी अन्य आदमियों से आगे चलने में उसे गौरव की अनुभूति होती थी. चलते हुए उसके द्वारा गाये गए गीत के टुकड़े रास्ते को जिंदा बना देते थे. रात को सोने से पहले सभी अलाव के चरों ओर बैठकर गीत गाते. उस रात त्रिशूल के तल पर गाने का यह कार्यक्रम सामान्य के मुकाबले बहुत देर तक चलता रहा. साथ में तालियां पीटते हुए शोर मचाया जा रहा था और कनस्तर भी बजाए जा रहे थे.

हमारी चाहत थी कि इस जगह पर पड़ाव डालकर चरों तरफ भरल और थार ढूंढेंगे. लेकिन अगली सुबह नाश्ता करते हुए मैंने अपने आदमियों को तम्बू उखाड़ते हुए पाया. पूछने पर जवाब पाया कि यह जगह रहने लायक नहीं है, क्योंकि यहां बहुत नमी है, पीने के लिए पानी भी खराब है और ईंधन मिलना भी कठिन है. अच्छी बात यह कि इस जगह से सिर्फ 2 मील की दूरी पर एक बढ़िया जगह है.  

मेरे साथ सामान ढोने के लिए कुल 6 लोग थे. मैंने देखा कि सामान की 5 पोटलियां बांधी जा रही थीं और बाला सिंह कंधे और सर तक कम्बल ढंके अलाव के पास ही अलग बैठा था. नाश्ता करने के बाद मैं बाला सिंह के पास गया. मैंने पाया कि सभी आदमियों ने काम करना बंद कर दिया है और वे मुझे गौर से देख रहे हैं. बाला सिंह ने मुझे आते देखकर भी मेरा अभिवादन करने की कोशिश नहीं की जो कतई स्वाभाविक नहीं था. मेरे सभी सवालों का उसने सिर्फ यही जवाब दिया कि वह बीमार नहीं है. उस दिन 2 मील की यह यात्रा हमने ख़ामोशी से पूरी की. इस दौरान बाला सिंह सबसे पीछे इस तरह चलता रहा जैसे वह नींद में या फिर नशे में हो.

अब यह भी साफ़ हो गया था कि बाला सिंह के साथ जो कुछ भी घटित हुआ है वह सभी 14 आदमियों को प्रभावित कर रहा है. क्योंकि सभी लोग अपने काम को स्वाभाविक उत्साह के साथ नहीं कर रहे थे और सभी के चेहरे पर भय और तनाव का भाव पसरा था.

जब वह 18 किलो का तम्बू ताना जा रहा था, जिसमें मैं और और रॉबर्ट ब्लेयर रहते थे, मैं अपने गढ़वाली कारिंदे मोथीसिंह को अलग ले गया और उससे पूछा कि बाला सिंह के साथ क्या घटा है? मोथीसिंह मेरे साथ पिछले 25 बरस से था. कई बहकाने वाले टालू जवाबों के बाद मैंने मोथीसिंह से अंततः वह संक्षिप्त और सीधी बात जान ही ली — पिछले रात जब हम अलाव के चारों ओर बैठे गा रहे थे तभी त्रिशूल का पिशाच बाला सिंह के मुंह में घुस गया और उसने उसे निगल लिया. मोथीसिंह ने आगे बताया कि उन सभी ने बाला सिंह के भीतर से पिशाच को बाहर खदेड़ने के लिए खूब शोर मचाया और टिन के डब्बे पीटे. लेकिन वे नाकामयाब रहे और अब इसका कुछ नहीं किया जा सकता.

बाला सिंह अभी भी सर को कम्बल से ढंके सबसे अलग बैठा हुआ था. उतनी दूरी से वह दूसरे लोगों को नहीं सुन सकता था. अतः मैं उसके पास गया और पिछली रात के बारे में उससे पूछा. व्यथित आँखों से देर तक मुझे देखते रहने के बाद बाला सिंह बोला. उसने कहा कि ‘अब इस बात का कोई फायदा नहीं है कि मैं आपको बताऊँ कि कल रात क्या घटा था? क्योंकि आप मुझ पर भरोसा नहीं करेंगे.’

‘क्या मैंने कभी तुम पर अविश्वास किया?’

‘लेकिन ये एक ऐसा मामला है, जिसे आप नहीं समझ सकेंगे.’

मैंने कहा मैं समझूं या नहीं मैं चाहता हूं कि तुम मुझे बात के बारे में ठीक-ठीक बताओ. लम्बी ख़ामोशी के बाद बाला बोला ठीक है साहब मैं आपको बताता हूं कि क्या हुआ था.

आप जानते हैं कि हमारे पहाड़ी गीतों की शैली है कि एक आदमी गाने की एक लाइन गाता है और मौजूद लोग उसे दोहराते हैं. जब पिछली रात मैं एक गाने की लाइन गा रहा था तो त्रिशूल का पिशाच मेरे मुंह में कूद पड़ा. मैंने उसे बाहर निकालकार फेंकने की बहुत कोशिश की लेकिन वह मेरे गले से फिसलकर पेट में पहुंच गया. अन्य लोगों ने पिशाच के साथ मेरे संघर्ष को देख शोर मचाकर और कनस्तर बजाकर उसे भागने की बहुत कोशिश की लेकिन पिशाच नहीं भागा, उसने सुबकते हुए कहा. मेरे यह पूछने पर कि अब वह पिशाच कहां है उसने नाभि पर हाथ रखते हुए उसने बताया कि वह यहां है और मैं उसे हिलते-डुलते महसूस कर सकता हूं.

रॉबर्ट ने वह दिन हमारे शिविर के पश्चिमी इलाके का निरीक्षण करते हुए बताया और एक थार का शिकार भी किया. रात का भोजन निपटाकर हम देर रात तक बैठकर इस घटनाक्रम पर विचार करते रहे. हमने इस शिकार की योजना महीनों पहले बनाकर बहुत व्यग्रता के साथ इसकी प्रतीक्षा की थी. शिकारगाह में पहुँचने के लिए रॉबर्ट को 7 और मुझे 10 दिन की दुरूह पैदल यात्रा करनी पड़ी थी. अब जब हम यहां पहुंचे ही थे कि बाला सिंह ने त्रिशूल के पिशाच को निगल लिया था. इस विषय पर हमारे व्यक्तिगत विचारों से कोई फर्क नहीं पड़ता था, फर्क पड़ता था तो इस बात से कि पड़ाव के हर आदमी को बाला सिंह के पेट में पिशाच के होने का विश्वास था और वे इससे भयभीत भी थे. इस स्थिति में एक महीने तक शिकार जारी रख पाना असंभव था. मेरे सामने सिर्फ यही रास्ता था कि बाला सिंह को लेकर नैनीताल लौट जाऊं और रॉबर्ट अकेले शिकार करना चालू रखे, बहुत अनिच्छा के साथ रॉबर्ट भी मेरे इस विचार से सहमत हो चला. अगली सुबह मैंने अपना सामान समेटा और नाश्ता निपटाकर नैनीताल वापसी की अपनी 10 दिवसीय यात्रा पर चल पड़ा.

बाला सिंह 30 साल की उम्र का एक आदर्श युवा था, जिसने नैनीताल की जिंदगी को भरपूर खुशियों के साथ जीते हुए छोड़ा था. अब वह खामोश लौट रहा था, उसकी आँखों में मायूसी थी और उसके भीतर जीवन के लिए कोई आकर्षण नहीं बचा था. मेरी बहनों ने, जिसमें एक डॉक्टर थी, उसके लिए वह सब किया जो किया जा सकता था. बाला सिंह के करीबी और दूर के दोस्त उससे मिलने आते लेकिन वह चपचाप दरवाजे पर बैठा रहता. वह तब तक कुछ बोलता नहीं था जब तक उससे किसी बात का जवाब न मांगा जाए.

नैनीताल के अनुभवी डॉक्टर, सिविल सर्जन कर्नल कुक, हमारे घनिष्ठ पारिवारिक मित्र थे. वे मेरे कहने पर बाला सिंह को देखने आये. खूब अच्छे से जांच-परखकर उन्होंने बताया — बाला सिंह पूर्ण रूप से स्वस्थ है और वे उसकी उदासी का कारण नहीं बता सकते.

कुछ दिनों बाद मेरे दिमाग में बाला सिंह को नैनीताल के ही एक प्रसिद्ध भारतीय डॉक्टर को दिखाने का विचार आया. मैंने सोचा अगर मैं उस डॉक्टर से बाला सिंह की जांच करवाऊं और उनसे गुजारिश करूं कि बाला सिंह को आश्वस्त करे कि उसके पेट में कोई पिशाच नहीं है. इस तरह से एक पहाड़ी, हिंदू डॉक्टर बाला सिंह को उसके कष्टों से मुक्त कर देगा.

इसे भी पढ़ें : देखिये क्या-क्या है कालाढूंगी के जिम कॉर्बेट म्यूजियम में

मेरी उम्मीद और पूर्वानुमान गलत निकले, मेरी सूझबूझ किसी काम न आयी. जैसे ही उस डॉक्टर ने बीमार पर नजर डाली वह आशंकित हो गया. उसने बाला सिंह से कुछ विवेकपूर्ण सवाल कर उससे उसके पेट में पिशाच होने के बारे में जाना. त्रिशूल के पिशाच के बाला सिंह के पेट में होने की जानकारी मिलते ही वह हड़बड़ाकर उसके जल्दी से उसके पास से हट गया और मुझसे बोला — अपने मुझे बुलाया लेकिन खेद है कि मैं इस आदमी के लिए कुछ नहीं कर सकता.

नैनीताल में बाला सिंह के गांव के 2 आदमी रहते थे. उनको मालूम था कि बाला सिंह के साथ क्या हुआ है, क्योंकि कई दफा वे उसे देखने आ चुके थे. अगले दिन मैंने उन्हें बुलाया और मेरे अनुरोध पर वे बाला सिंह को उसके घर ले जाने पर सहमत हो गए. उसकी अगली सुबह वे तीनों मुझसे यात्रा का खर्च लेकर आठ दिनों के सफ़र पर निकल पड़े. तीन हफ्ते बाद दोनों वापस आये और मुझे बाला की खबर सुनाई.

बाला सिंह ने आसानी से अप घर तक का सफ़र पूरा किया. उसके घर पहुंचने की रात, जब उसके दोस्त, रिश्तेदार उसे घेरे हुए थे, उसने घोषित किया कि पिशाच चाहता है उसे त्रिशूल जाने के लिए आज़ाद कर दिया जाये. इसे पूरा करने का सिर्फ एक ही अपाय है कि मैं मर जाऊं. मुझे खबर देने वाले व्यक्ति ने बताया कि इतना कहकर बाला चुपचाप लेट गया और मर गया. अगली सुबह हमने उसकी अंत्येष्टि करने में मदद की.

(जिम कॉर्बेट के किताब ‘द टैम्पल टाइगर एंड मोर मैन ईटर्स ऑफ कुमाऊँ’ का एक अंश)     

इसे भी पढ़ें : ‘माइ इंडिया’ में नैनीताल का जिक्र कुछ ऐसे किया है जिम कॉर्बेट ने

हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online 

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Sudhir Kumar

Recent Posts

बहुत कठिन है डगर पनघट की

पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…

4 hours ago

गढ़वाल-कुमाऊं के रिश्तों में मिठास घोलती उत्तराखंडी फिल्म ‘गढ़-कुमौं’

आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…

5 hours ago

गढ़वाल और प्रथम विश्वयुद्ध: संवेदना से भरपूर शौर्यगाथा

“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…

5 days ago

साधो ! देखो ये जग बौराना

पिछली कड़ी : उसके इशारे मुझको यहां ले आये मोहन निवास में अपने कागजातों के…

1 week ago

कफ़न चोर: धर्मवीर भारती की लघुकथा

सकीना की बुख़ार से जलती हुई पलकों पर एक आंसू चू पड़ा. (Kafan Chor Hindi Story…

1 week ago

कहानी : फर्क

राकेश ने बस स्टेशन पहुँच कर टिकट काउंटर से टिकट लिया, हालाँकि टिकट लेने में…

1 week ago