राज्य गठन के बाद भले ही उत्तराखंड में पेशावर कांड के नायक वीर चंद्र सिंह गढ़वाली के नाम पर कई योजनाएं चल रही हो. लेकिन हकीकत यह है कि गढ़वाली के ही परिजनों को ही इस योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है. उत्तराखंड में वीर चंद्र सिंह गढ़वाली पर्यटन स्वरोजगार योजना के अंतर्गत कई प्रकार के स्वरोजगार संबंधी कार्यों हेतु सरकार की ओर से ऋण दिया जाता है. जिससे लोग अपना स्वरोजगार कर सके. लेकिन वीर चंद्र सिंह गढ़वाली के परिजन इस योजना के अंतर्गत ऋण नहीं ले सकते.
वीर चंद्र सिंह गढ़वाली का पैतृक गांव पौड़ी गढ़वाल, थलीसैंण का पीटसैण मासौ है. एक अक्तूबर 1979 को गढ़वाली के निधन के बाद उनके दोनों बेटे आंनद सिंह और कुशलचंद कोटद्वार भाबर क्षेत्र में आ गए थे. यूपी सरकार की ओर से उन्हें 10 एकड़ जमीन कोटद्वार भाभर क्षेत्र के हल्दूखाता में लीज पर दी गई थी. कुछ समय बाद आनंद सिंह और कुशलचंद का भी निधन हो गया. उसके बाद उनके परिजन वहीं रहते हैं. राज्य गठन के बाद सड़क के उस पार का हिस्सा यूपी में चला गया है. जिसमें गढ़वाली के परिजन भी यूपी क्षेत्र में आ गए.
राज्य गठन के बाद गढ़वाली के परिजनों की किसी ने सुध नहीं ली. 23 अप्रैल को पेशावर कांड के रूप में गढ़वाली को याद किया जा रहा है. लेकिन गढ़वाली के परिजन मूल भूत सुविधाओं के लिए जूझ रहे हैं. यूपी की सीमा से लगे होने के कारण उनका घर बिजनौर वन प्रभाग के अन्तर्गत आता है. गढ़वाली के परिजनों को बार-बार लीज की जमीन के नवीनीकरण के लिए भी परेशानी होती है.
परिजनों का कहना है कि घर के पास ही जंगली जानवरों का खतरा भी बना रहता है. कोटद्वार में होकर भी हम कोटद्वार और उत्तराखंड की सुविधाओं को नहीं ले पा रहे हैं. उन्होंने कई बार यूपी और उत्तराखंड सरकार से मदद की गुहार लगाई. वीर चंद्र सिंह गढ़वाली के नाती देशबंधु गढ़वाली ने बताया कि उनके पास लीज की जमीन है. जिसमें वह स्थाई आवास नहीं बना सकते हैं. लीज की जमीन के प्रावधान के अनुसार जमीन पर स्थाई घर न बनने से उन्हें झोपड़ी में ही दिन काटने पड़ रहे हैं. अभी लीज की जमीन का नवीनीकरण भी नहीं हुआ है. बिजनौर वन प्रभाग के अंतर्गत होने के कारण उन्हें सभी कामों के लिए यूपी जाना पड़ता है. जबकि उनका घर कोटद्वार भाबर में है.
राज्य गठन के बाद उनकी जमीन यूपी में चली गई. गढ़वाली के परिजनों की जमीन यूपी में होने के कारण उन्हें वीर चंद्र सिंह गढ़वाली के नाम पर चल रहा योजनाओं का कोई लाभ नहीं मिल पाता है.
हम आज भी हम गढ़वाली के परिजनों को उत्तराखंड में पहचान नहीं दिला पाए.
वरिष्ठ पत्रकार विजय भट्ट देहरादून में रहते हैं. इतिहास में गहरी दिलचस्पी के साथ घुमक्कड़ी का उनका शौक उनकी रिपोर्ट में ताजगी भरता है.
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