15 अगस्त 2008 को जन्मे दस साल के तथागत आनंद श्रीवास्तव देहरादून में रहते हैं. देहरादून निवासी डॉ. आनंद श्रीवास्तव और श्रीमती डॉ. रमा (ऋतु) श्रीवास्तव के इस होनहार बच्चे कविताओं की पहली किताब छप कर आई है. (Tathagat Srivastava Poetry Book Impressions)
`इम्प्रेशंस’ शीर्षक कविताओं की तथागत की यह किताब तमाम ऑनलाइन साइट्स पर खूब बिक रही है और उसका देश भर में चर्चा हो रहा है. देहरादून की सेंट जोसेफ्स एकेडमी में कक्षा 6 में पढ़ने वाले तथागत की इस किताब में विविध विषयों पर लिखा गया है.(Tathagat Srivastava Poetry Book Impressions)
इस पुस्तक के बारे में हमारे अभिन्न साथी अमित श्रीवास्तव ने यह टिप्पणी लिखी है –
जब बड़ों के लिए बड़े कविताएं लिख सकते हैं तो बच्चों के लिए बच्चे क्यों नहीं लिख सकते? ये वो पहली बात है जो मेरे ज़ेहन में उभरी जब मैंने पहली दफा इस किताब पर उँगलियाँ फिराईं. ये वो निष्कर्ष भी है जो मेरे मन में बैठ गया जब मैंने आख़िरी कविता `टाइम’ खत्म कर किताब रक्खी.
एक दस बरस के बच्चे के मन में बहुत शुरुआती और बुनियादी सवाल होते हैं. वो रूप-रंग-गन्ध को महसूस कर रहा होता है. उसकी दुनिया आगे की ओर खूब फैलाव लिए खुल रही होती है. उसका माज़ी भी स्मृतियों से ज्यादा प्रश्नों से जूझता है. सबसे ज़रूरी और ठोस बात ये है कि ये बच्चा, सुंदर-असुंदर, अच्छे-बुरे, होना चाहिए-नहीं होना चाहिए के स्थापित दुनियावी प्रतिमानों से स्वतंत्र होता है, किसी भी तरह के पूर्वाग्रहों से मुक्त होता है. दरअसल किसी भी रचना का सरलतम, सघनतम, शुद्धतम स्वरूप अगर कभी हो सकता है, तो वो एक बच्चे के मन में ही हो सकता है. लेकिन हाँ, उसपर माता-पिता-परिवार-स्कूल आदि के प्रतिमान ज़्यादा हावी न हो रहे हों.
इस किताब के लेखक तथागत दस बरस की उम्र में रच रहे हैं. एक-दो कविताएं नहीं, तीस कविताओं की एन्थोल्जी है `इम्प्रेशंस.’ उनके पास चीजों, लोगों और घटनाओं को देखने समझने की उत्सुक दृष्टि के साथ-साथ विषयों तक पहुँचने की भी एक बड़ी रेंज है. अमूमन इस उम्र के बच्चे प्रकृति से विज्ञान और रहस्य लोक की तरफ जाते हैं, खूब कल्पनाशील होते हैं. लेकिन अक्सर ऐसा होता है कि हमारी सिखलाई की कमियाँ उनकी कल्पना में फंदे डाल देती है. जो बच्चे इस फंदे को तोड़ सकने में सफल हो जाते हैं उनका कद बड़ा हो जाता है.
इस किताब के लेखक तथागत दस बरस की उम्र में रच रहे हैं. एक-दो कविताएं नहीं, तीस कविताओं की एन्थोल्जी है `इम्प्रेशंस.’ उनके पास चीजों, लोगों और घटनाओं को देखने-समझने की उत्सुक दृष्टि के साथ-साथ विषयों तक पहुँचने की एक जानदार ललक है. उनके पास विषयों की एक बड़ी रेंज है. अमूमन इस उम्र के बच्चे प्रकृति से विज्ञान और रहस्य लोक की तरफ जाते हैं, खूब कल्पनाशील होते हैं. लेकिन अक्सर ऐसा होता है कि हमारी सिखलाई की कमियाँ उनकी कल्पना में फंदे डाल देती है. जो बच्चे इस फंदे को तोड़ सकने में सफल हो जाते हैं उनका कद बड़ा हो जाता है. तथागत बड़े कद के हैं. (Tathagat Srivastava Poetry Book Impressions)
तथागत की कल्पनाशीलता अपने परिवार, पास-पड़ोस, स्कूल के दायरों से छूटकर देश, समाज और प्रकृति तक घूम-टहल आती है. अच्छी बात ये है कि इस टहलाई में तथागत ने चले हुए रास्ते पर चलते हुए भी कहीं भी एक बच्चे की प्रश्नाकूलता को नहीं छोड़ा है. मेरे लिए यही सबसे खुशी की बात है कि तथागत अपनी ही उम्र के हैं. अक्सर ये सम्भावना रहती है कि रचनारत बच्चा अपनी उम्र लांघ जाता है. ये अतिक्रमण अच्छा नहीं है. उन्होंने बस इतना भर लांघा है कि एक-एक कर कई कविताएं लिखने के बाद उन्हें पुस्तकाकार छपवाने का साहस जुटाया है. (Tathagat Srivastava Poetry Book Impressions)
मैं इन कविताओं की समीक्षा नहीं कर सकता. आप कह सकते हैं कि अब, जबकि ये कविताएं एक बच्चे की डायरी से निकलकर प्रकाशित हो चुकी हैं और वृहद्तर समाज में कुछ मायनों के साथ उपस्थित हो चुकी हैं तो इन्हें कविता के मानदंडों पर भी कसा जाना चाहिए. लेकिन मेरी समझ का आग्रह मुझे रोकता है. दरअसल मैं उस उड़ान की कल्पना नहीं कर सकता जो इन्हें रचते वक्त तथागत के मष्तिष्क ने भरी होगी, क्योंकि इस उम्र से गुजरने के बाद भी, आप निश्चित तौर पर नहीं कह सकते कि आपका भी वही रास्ता रहा होगा, जो तथागत ने अपनाया होगा. वैसे भी मेरे पास बाल कविता और बालक द्वारा लिखी गयी कविता के लिए निश्चित मानदंड नहीं हैं. मैं समालोचना की नज़र से इतना भर देख सका हूँ कि कवि को पता है कि कविता में क्या होना चाहिए. दो भागों में बंटे इस संग्रह में जिन कविताओं को कवि `सिंपल’ कह रहा है, वो इतनी सिंपल भी नहीं है. जैसे एक कविता `माई ड्रीम वर्ल्ड’ है जिसमें कवि, चिड़ियों के गाने से लेकर दूसरे के मन को पढ़ पाने की कला तक को होने का सपना देख रहा है, या `फेयरीज़’ कविता है जिसमें सपनों से वास्तविकता की खूबसूरत आवाजाही है. ये साधारण बाते नहीं हैं. उसी तरह से वे कवितायेँ, जिनमें कवि अपने आत्मकथ्य में सन्देश देने की बात कह रहा है, कथ्य की दृष्टि से एक बड़े आयाम को पकड़ने की कोशिश में दिखती हैं. `सेव फारेस्ट सेव इनवॉयरमेंट, `इफ थिंग्स कुड टॉक’, `द युनिवर्स’, `लाइफ गोज़ ऑन’ जैसी कवितायेँ उनके कवि-रूप में आश्वस्ति जगाती हैं. `आई एम् एन ओल्ड स्कूल गाई’ मुझे लगता है तथागत की प्रतिनिधि कविता है और उनका हमउम्र बच्चों के लिए सन्देश भी.
इस सुंदर सी किताब में कविता को अर्थ देते और कल्पना को थोड़ा और उड़ने की शक्ति देते हुए हर कविता के बाजू में रंगीन चित्र हैं, साथ ही कवर पृष्ठ पर किताब के नाम को एक शक्ल देती हुई और किसी सुखद भविष्य की और पुरजोर इशारा करती हुई, तथागत की हथेलियों की छाप है.
आज के इस तकनीकी से सहमे, ठिठके ठहरे साहित्य समय में तथागत की आमद उम्मीद और आश्वस्ति जगाती है. शुभकामनाओं के साथ तथागत को मैं सिर्फ ये सुझाव दे सकता हूँ, क्योंकि बड़ा हूँ उम्र में और हमारे यहाँ बड़ा होना सुझाव देने का सबसे सुरक्षित ठीहा है, कि खूब पढ़ो! अपने देश का, प्रांतर का, भाषा-बोली का साहित्य और साथ ही विदेशों का भी. खूब रचो!
मैसर्स बिशन सिंह महेंद्र पाल सिंह द्वारा प्रकाशित इस किताब को इस लिंक से मंगाया जा सकता है – इम्प्रेशंस Tathagat Srivastava Poetry Book Impressions
हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online
अमित श्रीवास्तव. उत्तराखण्ड के पुलिस महकमे में काम करने वाले वाले अमित श्रीवास्तव फिलहाल हल्द्वानी में पुलिस अधीक्षक के पद पर तैनात हैं. 6 जुलाई 1978 को जौनपुर में जन्मे अमित के गद्य की शैली की रवानगी बेहद आधुनिक और प्रयोगधर्मी है. उनकी तीन किताबें प्रकाशित हैं – बाहर मैं … मैं अन्दर (कविता) और पहला दखल (संस्मरण) और गहन है यह अन्धकारा (उपन्यास).
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
उत्तराखंड, जिसे अक्सर "देवभूमि" के नाम से जाना जाता है, अपने पहाड़ी परिदृश्यों, घने जंगलों,…
शेरवुड कॉलेज, भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित किए गए पहले आवासीय विद्यालयों में से एक…
कभी गौर से देखना, दीप पर्व के ज्योत्सनालोक में सबसे सुंदर तस्वीर रंगोली बनाती हुई एक…
शायद यह पहला अवसर होगा जब दीपावली दो दिन मनाई जाएगी. मंगलवार 29 अक्टूबर को…
तकलीफ़ तो बहुत हुए थी... तेरे आख़िरी अलविदा के बाद। तकलीफ़ तो बहुत हुए थी,…
चाणक्य! डीएसबी राजकीय स्नात्तकोत्तर महाविद्यालय नैनीताल. तल्ली ताल से फांसी गधेरे की चढ़ाई चढ़, चार…