टनकपुर-बागेश्वर रेल मार्ग संघर्ष समिति के बैनर तले तहसील परिसर में अनिश्चितकालीन क्रमिक अनशन के बाद भी रेल मार्ग की उम्मीद एक बार फिर टूटती दिख रही है. 15 अगस्त से शुरू हुए इस आन्दोलन से दशकों पुरानी लड़ाई को एक आस मिली थी लेकिन अभी तक नीति नियंताओं के खोखले वादों के सिवाय इस मसले पर कुछ संभव होता नजर नहीं आ रहा है. विगत सप्ताह केन्द्रीय राज्य मंत्री अजय टम्टा के अनशनकारियों से मिलने के बाद भी कोई स्थायी हल निकलता नजर नहीं आ रहा है.
गौरतलब है कि यह लड़ाई सौ साल पुरानी है. आज तक जनता को इस महत्वपूर्ण रेल मार्ग निर्माण का ‘जुमला’ ही थमाया गया है. सत्ता के दोनों पक्षों ने जनता को बारे-बारी से गुमराह किया है. यह लड़ाई एक शताब्दी पुरानी है. अंग्रेजी शासनकाल में टनकपुर-बागेश्वर रेलवे लाइन की प्रथम विश्व युद्ध से पूर्व 1888 में पहल की गई थी. बागेश्वर रेलवे लाइन के लिए सन् 1911-12 में अंग्रेज शासकों द्वारा तिब्बत व नेपाल से सटे इस भू-भाग में सामरिक महत्व व सैनिकों के आवागमन तथा वन संपदा के दोहन के लिये टनकपुर-बागेश्वर रेलवे लाइन का सर्वेक्षण शुरू किया गया था. लेकिन प्रथम विश्व युद्ध के कारण उपजी दीर्घ समस्याओं के चलते यह योजना ठंडे बस्ते में चली गयी.
टनकपुर बागेश्वर रेललाइन का सर्वे सन् 1912 में ही हो चुका था. पुन: सन् 2006 में इस मार्ग का पुनः सर्वे करवाया गया है. टनकपुर से बागेश्वर तक की इस प्रस्तावित योजना में कुल 137 किलोमीटर लम्बी रेल लाइन बिछाई जानी है. जिसमें से 67 किमी लाइन अंतराष्ट्रीय सीमा (भारत-नेपाल) के समानान्तर बननी है. रेलवे के अनुसार 2007 में इस पुरे प्रोजेक्ट पर अनुमानित खर्च 2337 करोंड़ थी, तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने बारहवीं पंचवर्षीय योजना के अंतर्गत इसके बजट आवंटन का दावा किया लेकिन असल में यह प्रोजेक्ट आज भी कोई गति प्राप्त नहीं कर पाया.
वर्ष 1980 में बागेश्वर आई इंदिरा गांधी को इस मामले में ज्ञापन भी दिया गया. सन् 1984 में भी इस लाइन के सर्वे की चर्चा हुई लेकिन इस पर कार्य नही हो पाया. इस पर कई बार घोषणाएं भी हुई. लेकिन निराश जनता ने बागेश्वर में रेल मार्ग निर्माण संघर्ष समिति का भी गठन किया गया. इस समिति द्वारा टनकपुर-बागेश्वर सहित ऋषिकेश-कर्णप्रयाग व रामनगर-चैखुटिया रेल मार्गों के सर्वे की मांग को लेकर अपना संघर्ष जारी रखा. 2008 से 2010 तक आन्दोलन चले. आज फिर एक नए सिरे से इस लड़ाई को लड़ने के लिए बागेश्वर तहसील परिसर में नीमा दौफौटी के नेतृत्व में सामाजिक संगठन एवं विपक्षी पार्टियां एकजुट हैं.
टनकपुर-बागेश्वर रेलवे लाइन भी सामरिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है. रेल लाइन पिथौरागढ़ की नैनी-सैनी हवाई पट्टी से केवल 30 किमी दूर होगी. 21वीं सदी की युद्ध नीति में इसका बहुआयामी उपयोग किया जा सकता है. धौलीगंगा व अन्य परियोजनाओं के लिएभी महत्वपूर्ण साबित होगी. इस रेल लाइन से पर्यटन, बागवानी, खनिज उत्पादन, धार्मिक पर्यटन आदि में बहुउपयोगी लाभ मिल सकता था. इन सबके अतिरिक्त इस रेल लाइन से अल्मोड़ा, बागेश्वर, पिथौरागढ़, चम्पावत व चमोली जनपद के सघन बसाव क्षेत्र की 25 लाख से अधिक की जनसंख्या को सरल व महत्वपूर्ण परिवहन तंत्र की सुविधा मिल सकती है.
वर्तमान में राज्य से पांचों सांसद बीजेपी के होने के बावजूद पिछले सत्तर सालों की तमाम सरकारों की तरह केंद्र की मोदी सरकार इस मांग पर जनता को गुमराह कर रही है. डबल इंजन की सरकार के बाद भी कुमांऊ के किसी भी नेता या सांसद ने अभी तक इस मसले पर हल के लिए कोई गंभीर प्रयास नही किया. राज्य और केंद्र में बीजेपी सरकार होने के बाद लोगों को बंधी उम्मीद अब टूटती नजर आ रही है.
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