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तालेश्वर धाम : काली नदी घाटी का सबसे पवित्र धार्मिक तीर्थस्थल

पिथौरागढ़ जिले के झूलाघाट कस्बे से पांच किमी की दूरी पर स्थित है तालेश्वर धाम. तालेश्वर धाम झूलाघाट से जौलजीबी को जाने वाले पैदल रास्ते पर नेपाल से आने वाली चमलिया और काली नदी के संगम पर स्थित है.

Taleshwar Mahadev Jhulaghat PithoragarhTaleshwar Mahadev Jhulaghat Pithoragarh

फोटो : ऋत्विक साह ( इन्सटाग्राम )

पिछले दशक तक तालेश्वर धाम तक पैदल मार्ग ही था लेकिन अब यहां मंदिर तक सड़क जाती है. पेड़ों की सघन छाया से घिरे तालेश्वर धाम की स्थानीय मान्यता बहुत है. कहा जाता है कि जो लोग काशी हरिद्वार जाने में सक्षम नहीं होते हैं वे तालेश्वर धाम की यात्रा कर पुण्यलाभ पाते हैं.

पेड़ों के बीच स्थित तालेश्वर मंदिर में तालेश्वर महाराज विराजमान हैं. तालेश्वर महाराज को स्थानीय देवता कटारमल या कठकणिया का ही रूप माना जाता है. कटारमल देवता को शिव का साक्षात रूप माना जाता है.

इस मंदिर के पास में ही रतौडया और समैजी देवी का मंदिर भी है. समैजी देवी को कटारमल की बहिन माना जाता है वहीं रतौडया को कटारमल देवता का प्रहरी माना जाता है.

झूलाघाट कस्बे के आसपास के बहुत से गांव के लोग तालेश्वर महाराज को अपना संरक्षक देवता मानते हैं. तालेश्वर मंदिर में भटेड़ी गांव के लोग पुजारी का कार्य करते हैं.

Taleshwar Mahadev Jhulaghat PithoragarhTaleshwar Mahadev Jhulaghat Pithoragarh

फोटो : राहुल सिंह गोबाड़ी

यहां लोग हवन करते हैं यज्ञोपवीत संस्कार करते हैं. पूर्णिमा, संक्रान्ति आदि के अवसरों पर स्थानीय लोग यहां आकर पूजापाठ भी करते हैं.

तालेश्वर नाम इस मंदिर के समीप स्थित ताल के कारण मिला था. वर्तमान में लातेश्वर लघु जल विद्युत परियोजना के कारण इस ताल का मूल स्वरूप मौजूद नहीं हैं. माना यह जाता था कि इसी ताल में देवता का निवास स्थान है.

मकर संक्रांति के दिन यहां स्नान का विशेष महत्त्व है. इस दिन यहां तड़के से ही स्न्नान प्रारंभ हो जाता है. नेपाल, पिथौरागढ़ और चम्पावत से लोग यहां आते हैं. इस दिन नदी के तट पर रेत से शिवलिंग का निर्माण किया जाता है फिर इसकी पूजा अर्चना की जाती है.

फोटो : राहुल सिंह गोबाड़ी

– काफल ट्री डेस्क

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Girish Lohani

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