इस बात की चर्चा अब बेकार है कि कितनी उम्मीदों के साथ रामगढ़ की महादेवी वर्मा के मीरा कुटीर को संग्रहालय बनाया गया था. चलिए, जो बीत गया, सो बात गई. रामगढ़ में ही एक और जगह है: टाइगर टॉप, जिसके ढलान पर बने एक ब्रिटिश बंगले पर बीसवीं सदी के आरंभिक वर्षों में गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर कुछ समय तक अपनी बेटी के साथ ठहरे थे. किंवदंती है कि इस बंगले में रहकर टैगोर ने ‘गीतांजलि’ के कुछ छंद लिखे थे.
(Tagore Top Ramgarh)
जैसा कि इस देश में होता आया है, यहाँ हर व्यक्ति को उसके कृतित्व से नहीं, उसकी क्षेत्रीय-जातिगत पहचान के आधार पर देखा जाता है, वही कहानी यहाँ दोहराई गई. रामगढ़ के पहाड़ी किसानों की मेहनत से बने इस इलाके को बंगाली टैगोर की स्मृतियों के साथ जोड़ दिया गया. देखते-देखते एक मिथक रचा गया कि कवि-गुरू इस जगह पर शान्तिनिकेतन की स्थापना करना चाहते थे जो उनकी साधना-स्थली में आज अधूरा पड़ा है.
टैगोर को अपनी विश्वभारती कलकत्ता के शान्तिनिकेतन में क्यों शिफ्ट करनी पड़ी, यह रहस्य तो इतिहास के गर्त में छिपा है, वास्तविकता यह है कि सुनने में आया है, कुछ समय पूर्व विश्वभारती विवि और कुमाऊँ विश्वविद्यालय के कुलपतियों के बीच एक एमओयू पर इस आशय के हस्ताक्षर हुए हैं कि टाइगर टॉप में मानव संसाधन मंत्रालय के द्वारा विश्वभारती विश्वविद्यालय की शाखा खोली जा रही है.
जाहिर है कि यह एक केन्द्रीय विश्वविद्यालय होगा, जिसका एक कुलपति होगा और दूसरे पदाधिकारी और कर्मचारी भी. एक शानदार भवन होगा और टाइगर हिल की खूबसूरत वादियों में ढेर सारे स्टाफ़ क्वार्टर बनेंगे जहाँ रहकर अध्यापक और विद्यार्थी विश्वभारती के रचनात्मक माहौल में कलाओं की तमाम विधाओं में प्रवीणता हासिल करेंगे.
(Tagore Top Ramgarh)
खैर, यह तो भविष्य की बातें है, फ़िलहाल आप फ़ोकट में बने उत्तराखंड के राज्यगीत का आनंद लीजिए, जिसे किसी ज़माने में मेरी अध्यक्षता में गठित समिति द्वारा तैयार किया गया था मगर जो सियासी खींचतान में सार्वजनिक होने से रह गया था.
देखिये, संगीत की तो कोई शर्त नहीं होतीं, उसे जब चाहे, जहाँ चाहे सुन लीजिए, वह आपको तनावमुक्त ही करेगा, कोरोना काल हो या शांति-काल. उत्तराखंड में स्थापित होने जा रहे केन्द्रीय विवि की शाखा की स्थापना की पर प्रदेश-वासियों को अग्रिम शुभकामनाओं के साथ पेश है यह संगीत-रचना:
(Tagore Top Ramgarh)
हिन्दी के जाने-माने उपन्यासकार-कहानीकार हैं. कुमाऊँ विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग के अध्यक्ष रह चुके बटरोही रामगढ़ स्थित महादेवी वर्मा सृजन पीठ के संस्थापक और भूतपूर्व निदेशक हैं. उनकी मुख्य कृतियों में ‘थोकदार किसी की नहीं सुनता’ ‘सड़क का भूगोल, ‘अनाथ मुहल्ले के ठुल दा’ और ‘महर ठाकुरों का गांव’ शामिल हैं. काफल ट्री के लिए नियमित लेखन.
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