Ramashankar Yadav Vidrohi

स्पार्टाकस की प्रतिज्ञाओं के साथ जीता हूं : विद्रोही की कवितास्पार्टाकस की प्रतिज्ञाओं के साथ जीता हूं : विद्रोही की कविता

स्पार्टाकस की प्रतिज्ञाओं के साथ जीता हूं : विद्रोही की कविता

मोहनजोदड़ो की आखिरी सीढ़ी से -रमाशंकर यादव ‘विद्रोही’ मैं साइमन न्याय के कटघरे में खड़ा हूं प्रकृति और मनुष्य मेरी…

7 years ago
तब मेरी जेब में एक नहीं दो बाघ होते हैं : विद्रोही की कवितातब मेरी जेब में एक नहीं दो बाघ होते हैं : विद्रोही की कविता

तब मेरी जेब में एक नहीं दो बाघ होते हैं : विद्रोही की कविता

दो बाघों की कथा -रमाशंकर यादव ‘विद्रोही’ मैं तुम्हें बताऊंगा नहीं बताऊंगा तो तुम डर जाओगे कि मेरी सामने वाली…

7 years ago

आसमान में धान बो रहा हूँ: विद्रोही की कविता

नई खेती -रमाशंकर यादव 'विद्रोही' मैं किसान हूँ आसमान में धान बो रहा हूँ कुछ लोग कह रहे हैं कि…

7 years ago
मेरी नानी हिमालय पर मूंग दल रही हैमेरी नानी हिमालय पर मूंग दल रही है

मेरी नानी हिमालय पर मूंग दल रही है

रमाशंकर यादव 'विद्रोही' (3 दिसम्बर 1957 - 8 दिसंबर 2015) हिंदी के लोकप्रिय जनकवि हैं. वे स्नातकोत्तर छात्र के रूप…

7 years ago