सुनीता नेगी उत्तराखण्ड की राजधानी देहरादून में पुलिस मुख्यालय के यातायात निदेशालय में महिला कांस्टेबल के रूप में तैनात हैं. पुलिस के चुनौतीपूर्ण काम को निभाने के साथ वे शानदार पेंटिंग भी बनाती हैं. प्रस्तुत हैं ‘काफल ट्री’ के लिए सुनीता नेगी से उनके कलात्मक सफर के बारे में सुधीर कुमार की बातचीत का सार (Sunita Negi Art Uttarakhand)
पुलिस का नाम जहन में आते ही दिलो-दिमाग में एक छवि बनती है. मजबूत जिस्म में कैद एक कठोर दिल जहां भावनाओं के लिए जरा भी जगह नहीं. सख्त हाथों की खुरदरी हथेलियाँ, जो हरदम जोर-आजमाइश के लिए मचलती हैं. इस आभासी छवि के पीछे अक्सर ही नर्म दिल छिपे रहते हैं. कम ही सही ऐसी कहानियां भी सामने से गुजरती हैं जो हजार तहों में छिपी मुलायमियत को सतह पर ले आती है. इन्हीं कहानियों में से है उत्तराखण्ड पुलिस की कांस्टेबल सुनीता नेगी की कहानी.
सुनीता की स्कूली पढ़ाई-लिखाई देहरादून में ही हुई उनके पिता श्री आनन्द प्रकाश सर्वे ऑफ़ इण्डिया के देहरादून कार्यालय में सेवारत थे, जो कि कुछेक साल पहले सेवामुक्त हो चुके हैं. बचपन में ही न जाने कब सुनीता को चित्रकारी का चस्का ठीक-ठीक कब लगा ये उन्हें भी याद नहीं. जब से होश संभाला खुद को पेंसिल से आसपास की आकृतियों को कागज में हुबहू उतारने की लत में पाया. माता-पिता की नजरें हटते ही वे पाठ्यपुस्तकों पर छपे चित्रों की नक़ल में व्यस्त हो जातीं. जैसे वे बनी ही थीं चित्रकारी करने के लिए. सुनीता का फेसबुक पेज : Sunita Negi Art
जैसे-जैसे उम्र बढ़ती गयी कागज-पेंसिल से उनकी मोहब्बत परवान चढ़ती गयी और वे शानदार स्केच बनाने लगीं. इंसान की शक्ल को कागज में फोटो की तरह उतार देने में महारत हासिल करने के बाद सुनीता धड़ल्ले से स्केच बनाने लगीं. लम्बे समय तक उनके स्केच का विषय मुम्बइया फिल्म इंडस्ट्री के कलाकार ही रहे.
जल्द ही वे पुलिस में भर्ती हुईं. काम करते हुए ही उन्होंने कॉलेज की पढ़ाई भी पूरी की. इस दौरान भी चित्रकारी के जुनून ने उनका साथ नहीं छोड़ा. नौकरी और पढ़ाई के साथ सुनीता के स्केच और ज्यादा सुघड़ होते गए. अब उन्हें यह भी समझ आने लगा कि अपनी कला को सामाजिक विषयों से जोड़ा जाना भी जरूरी है.
दशकों से चले आ रहे सुनीता के इस कलात्मक सफर में कभी भी उन्हें इसके औपचारिक प्रशिक्षण का मौका नहीं मिला. उनमें यह प्रतिभा नैसर्गिक रूप से है. वे अभ्यास से इसमें और ज्यादा पारंगत होती गयीं. जीवन के किसी भी मोड़ पर चित्रकारी में उनकी दिलचस्पी जरा भी कम नहीं हुई. आज भी पुलिस की चुनौतीपूर्ण नौकरी और पारिवारिक जिम्मेदारियों का निर्वाह करते हुए भी वे अपने ड्राइंग, पेंटिंग के जूनून के लिए समर्पित रहती हैं. सुनीता देर रात जागकर भी लगातार स्केच और पेंटिंग्स बनती रहती हैं.
हाल ही के वर्षों में सुनीता ने ब्लैक एंड व्हाइट स्केच की दुनिया में रंग भरने का निश्चय किया. पहले रंगीन पेंसिल और फिर वाटर कलर तक का सफर भी उन्होंने बगैर किसी ट्रेनिंग के ही पूरा किया. आज उनके पास 500 से ज्यादा चित्रों का संग्रह तैयार हो चुका है.
उनकी पेंटिंग्स के विषयों में — कोरोना वारियर्स, महिला सशक्तिकरण, पहाड़ की नारी, बाल भिक्षावृत्ति, बाल श्रम, एसिड अटैक, सड़क हादसे, यातायात नियमों का पालन, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, पहाड़ी क्षेत्रों में पलायन, पहाड़ का आम जन-जीवन, यौन हिंसा, जल संरक्षण, नशा मुक्ति आदि विविध विषयों का अद्भुत समावेश दिखाई देता है. सुनीता अपनी इस यात्रा में मीडिया और पुलिस महकमे का महत्वपूर्ण योगदान मानती हैं, जिन्होंने इस यात्रा के लिए उन्हें लगातार प्रेरित किया है.
उत्तराखण्डी लोकसंस्कृति की अलख बनते और नयी उम्मीद जगाते युवा
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