सुनील दत्त (6 जून 1929-25 मई 2005)
हिंदी सिनेमा के रुपहले पर्दे पर सुनील दत्त के नाम से पहचाने जाने वाले बलराज दत्त 1963 में बनी हिंदी फिल्म गुमराह की शूटिंग के सिलसिले में नैनीताल आये थे. गुमराह का निर्माण व निर्देशन बी. आर. चोपड़ा ने किया था जिनका उत्तराखण्ड किसी से छिपा नहीं है. गुमराह का अच्छा ख़ासा हिस्सा भी नैनीताल में ही शूट किया गया.
गुमराह का सर्वकालिक कर्णप्रिय गीत ‘इन हवाओं में इन फिजाओं में…’ सुनील दत्त और माला सिन्हा के साथ नैनीताल में ही फिल्माया गया. इस गीत का अधिकांश हिस्सा चाइना पीक में नैनीझील और हिमालय के नयनाभिराम बैकग्राउंड के साथ फिल्माया गया और आखिरी हिस्से में नैनीझील का अप्रतिम सौन्दर्य दिखाई देता है.
खैर यहाँ बात हो रही है सुनील दत्त की. हिंदी सिनेमा के जाने माने निर्माता, निर्देशक और अभिनेता सुनील दत्त ने गिनी-चुनी पंजाबी फिल्मों में भी अभिनय किया था.
ब्रिटिश भारत में पंजाब के झेलम प्रांत के खुर्दी गाँव (अब पाकिस्तान का हिस्सा) में जन्मे सुनील दत्त ने संघर्ष के दिनों में बस कंडक्टरी तक की. एशिया के सबसे पुराने रेडियो स्टेशन रेडियो सीलोन में उद्घोषक के रूप में नौकरी करने के बाद दत्त फिल्मों में किस्मत आजमाने मुंबई आ गए. फिल्म रेलवे स्टेशन से अपना फ़िल्मी करियर शुरू करने वाले दत्त 1957 में आयी फिल्म मदर इंडिया से मुम्बइया फिल्मों के स्टार बन गए.
कई सुपरहिट फिल्में देने वाले सुनील दत्त को बेहतरीन अभिनय के लिए कई अवार्ड भी मिले और वे सरकार द्वारा पद्मश्री से भी नवाजे गए.
1981 में पत्नी नरगिस की कैंसर से हुई असमय मृत्यु के बाद उन्होंने जीवन का ख़ासा हिस्सा ‘नरगिस दत्त मेमोरियल कैंसर फाउंडेशन’ संस्था बनाकर लोककल्याण के लिए लगाया. इससे पहले भी वे नरगिस के साथ मिलकर सामाजिक कामों में भागीदारी किया करते थे.
उन्होंने अपनी राजनीतिक पारी में लगातार पांच बार मुम्बई उत्तर-पश्चिम लोकसभा सीट से चुनाव जीतकर एक मिसाल कायम की.
नरगिस की मौत के अलावा बेटे संजय दत्त ने उनकी जिंदगी को उथल-पुथल से भर दिया. वे हर चुनौती से और ज्यादा मजबूत होकर निकले. अपनी मृत्यु तक वे फिल्मों के साथ-साथ राजनीति व लोककल्याण के कामों के लिए समर्पित रहे.
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