पिथौरागढ़ जिला मुख्यालय से करीब तीस किमी की दूरी पर एक क़स्बा है देवलथल. यहां से करीब 5-6 किमी की दूरी पर एक बेहद सुंदर सा गांव है चौपाता. इसी गांव के बीच में स्थित है एक सूर्य का अत्यंत प्राचीन और कलात्मक मंदिर. Sun Temple in Pithoragarh
चन्द्र सिंह चौहान ने पहाड़ पत्रिका के एक अंक में इस मंदिर का जिक्र करते हुए लिखा है कि ऐसा लगता होता है कि मंदिर में सूर्य की प्रतिमा कहीं बाहर से लाकर रखी गयी है इसलिये प्रतिमा के आधार पर इसे सूर्य मंदिर कहा जाना संभव नहीं है. Sun Temple in Pithoragarh
इस मंदिर का गर्भगृह वर्गाकार है. मंदिर का प्रवेश द्वार पूर्व की ओर है. मंदिर के भीतर 71 X 45 से.मी. की एक शानदार सूर्य की मूर्ति है. नागर शैली का बना यह मंदिर 11वीं सदी का लगता है.
वर्तमान में मंदिर परिसर मूर्ति समेत बेहद खराब हालत में है. मंदिर के विषय में अगर आप देवलथल में पूछेंगे तो बहुत कम ऐसे लोग हैं जिनको मंदिर के विषय में जानकारी है.
स्थानीय लोगों का मानना कहना है कि इस मंदिर में जो भी पूजा करता है उसका बुरा होता है इसलिये कोई भी व्यक्ति इस मंदिर में पूजा नहीं करता है. मंदिर के भीतर भी पूजा किये जाने जैसे कोई साक्ष्य देखने को नहीं मिलते हैं. मंदिर के पास में रहने वाले एक परिवार ने मंदिर के परिसर में कुछ फूल जरुर लगाये हैं. Sun Temple in Pithoragarh
मंदिर के भीतर सूर्य की जो प्रतिमा रखी गयी है वह टूटी हुई. मंदिर परिसर की दीवार से लगा हुआ एक टॉयलेट और बाथरूम है. वर्तमान में बिना इस टायलेट बाथरूम के आप मंदिर की तस्वीर नहीं ले सकते.
स्थानीय लोगों का कहना है कि बहुत से लोग यहां आते हैं मंदिर संरक्षण की बात भी करते हैं, तस्वीरें खींच कर ले जाते हैं लेकिन मंदिर के लिये कोई कुछ नहीं करता है.
पिथौरागढ़ मुख्यालय से कुल 35 किमी दूरी पर स्थित इस पुरातन मंदिर के हाल जब ऐसे हैं तो हमारी सरकारें दूरस्थ मंदिरों की क्या दुर्गत करती होगी इसका अंदाजा लगाया जा सकता है.
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मूलरूप से पिथौरागढ़ के रहने वाले नरेन्द्र सिंह परिहार वर्तमान में जी. बी. पन्त नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ हिमालयन एनवायरमेंट एंड सस्टेनबल डेवलपमेंट में रिसर्चर हैं.
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