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जागेश्वर में बानर का स्वांग करने वाले लड़के से सुनिये युवा पहाड़ियों की कहानी

हाँ, सौंणन में खूब रेलमपेल रहने वाली ठेरी फीर. वो मंदिर से यहाँ कुबेर जी के मंदिर तक दिनमान भर नब्बे-सौ चक्कर लग ही जाने वाले हूए  मेरे. दनिया-पनुएनौला की रामलीला में भी  ऐसे ही कभी बानर, कभी राक्षश बन जाने वाला हुआ.

इस्कूल भी जाता हूँ पर यहाँ से बाहर जा के भी कोई अल्मोड़े में भान घिस रहा कोई नैनिताल, भीमताल में होटल में आओसाब-आओसाब कह हज़ार दुइ हज़ार कमा रा. कितने लौंडे तो दिल्ली-हिल्ली गए.

हिमतुआ तो मरी गया. पता नैं क्या खापीमरा किसी सेठ के यहाँ. कोठी के सारे काम करने बाला ठेरा. पिछले टैम जन्यो पुण्यो में आया था. बैंनी को मोबाइल दे गया था. उशि में आये थी खबर. ऊष्कि मीम्साब ने बताया दिनमान भर तो ठीक था. रात जो हुआ होगा. उसके बाबू गए दूसरे दिन. तब तक फुकी भी गया था बल.

अब उसकी बैणि को बुला लिया है साब लोगों ने. ठीक ही हुआ. यहाँ झाकरी फैला जूं  बिनती रीति थी. 

अब अमलपानी तो करने बाला ठे रा हिमतुबा. उसका नानशैब तो नाक् से पूडर खिन्छ डांश  मा रता था. उसका बचाखुचा शब्ब हिम्मातुए शाले ने भकोसना हुआ. उसके दिए लुकुड़े, गूगुल पैन मोबाइल पे नंन्गोल दिखाता था. भेल में घुटने में फटी जीन्स पैरता था. उसस्के बाबू कहने वाले भी हुए, की साले मुर्दे के फाड़ देते है ऐसे लुकुड़े. वहां तो सब ऐसे ही छोटे छोटे लुंटुरे लटकाते हैं,बताने वाला हुआ. गरम्म हुआ फिर दिल्ली जैस्सा होता होगा. अब जितने भी गए वापस कहाँ फरक रहे. पूजा-हूजा में भी नि आते.

अब मी तो सौंण में बानर हनुमान बन जाता हूँ. न-न बीड़ी तमख गुटक गटक कुछ नैं. जरा जोकरोली कर दो. लोग बाग खुस्स भी हो जाने वाले ठेरे.

वो परसूँ -नरसु तो एक भगत पाँचसो दे गया. अब ख़ालि मुलि भेट के पकास लगा कुड़बुद्धि पाथने से तो अच्छा ही हुआ. छोटे चार भाई बहिन ठहरे सब इस्कूल भी जा रे. बाबू को बाई पड़ गई अब हाथ में बसूला पकड़ा नहिं जाता आ री चलती नहिं कील ठोकने में भी हाथ कॉम्प जाते हैं. इजु दिनमानभर लगी रेती है अब क्या करो सेरभर दूध देने वाली ठेरी गाए, घा पात के चक्कर दिनमान भर लौकी मुली सब बानर उज्जड देने वाले ठे रे.

अब मुज्झे तो बानर फल गया. ये फोटूक मुझे भी दे देना हो मोबाइल तो ठेरा नहीं मेरे पास. इतने डबल खरच कर खालिमुली क्या क्वीड पाथनी?     

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जीवन भर उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के कुल महाविद्यालयों में अर्थशास्त्र की प्राध्यापकी करते रहे प्रोफेसर मृगेश पाण्डे फिलहाल सेवानिवृत्ति के उपरान्त हल्द्वानी में रहते हैं. अर्थशास्त्र के अतिरिक्त फोटोग्राफी, साहसिक पर्यटन, भाषा-साहित्य, रंगमंच, सिनेमा, इतिहास और लोक पर विषदअधिकार रखने वाले मृगेश पाण्डे काफल ट्री के लिए नियमित लेखन करेंगे.

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Girish Lohani

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