कुमाऊँ की सबसे महत्वपूर्ण नदियों में से एक हैं कोसी (Story of Kosi River of Kumaon). पुराने विशेषज्ञों की मानें तो रामगंगा की सहायक नदियों में एक प्रमुख सहायक इस नदी है, में एक समय लगभग दो हजार के आस-पास गाड़ गधेरे मिलते थे. आज इनकी संख्या करीब डेढ़ सौ के आसपास रह गयी है. चालीस बरस पहले तक लगभग 225 किमी लम्बाई वाली कोसी (Story of Kosi River of Kumaon) अब 41 किमी में सिमट गयी है.
एक अध्ययन के आधार पर कोसी नदी का न्यूनतम वार्षिक जल प्रवाह 1992 में 790 लीटर प्रति सेकंड था जो साल दर साल घटते- घटते 2016 में मात्र 50 लीटर प्रति सेकंड रह गया है. कोसी धीरे-धीरे अपना दम तोड़ रही है.
कोसी नदी का उद्गम स्थल अल्मोड़ा जनपद के बारामंडल परगने की बोरारौ पट्टी के अंतर्गत भटकोट -बूढ़ा पिननाथ (पीनाथ) शिखर के दक्षिण पश्चिम भाग में है. अल्मोड़ा-नैनीताल से होते हुए उत्तर प्रदेश में रामगंगा से मिलाने वाली कोसी कुमाऊं प्रदेश में बहुत घाटियों का निर्माण करती है. कुमाउंनी भाषा में नदी के द्वारा सिंचित इस तरह की घाटियों के बड़े मैदान को सेरा कहा जाता है. बेतालघाट, सोमेश्वर में कोसी नदी से बने सेरे कुमाऊं के सबसे बड़े सेरों में गिने जाते हैं. सोमेश्वर से तल्ला स्यूनरा होती हुई कोसी हवालबाग में पहुंचती है.
लोक मान्यताओं में कोसी को शापित नदी माना जाता है. कहा जाता है कि कोसी समेत रामगंगा, सरयू, भागीरथी, काली, गोरी, यमुना नदियां कुल सात बहिनें थी. सभी बहनों में कोसी कुछ गुसैल मिजाज की थी. एक बार सातों बहनों में एक साथ चलने की बात हुई. बाकीं बहिनें जब समय पर नहीं पहुंची तब कोसी गुस्से में अकेली चल दी. बाकि बहिनों ने जब कोसी को न देखा तो उसे श्राप दिया कि तू हमसे अलग-थलग बहेगी और तुझे कभी पवित्र नदी नहीं माना जायेगा.
कोसी नदी का उल्लेख स्कन्दपुराण में भी हुआ है. स्कन्दपुराण में कोसी को कौशिकी कहा गया है. वाल्मीकि रामायण में कोसी को ऋचीक ऋषि की पत्नी व महर्षि विश्वामित्र की बहिन माना गया है. कहा जाता है कि कोसी सशरीर स्वर्ग गयी थी फिर परोपकार के लिये नदी रूप में पृथ्वी पर पुनः अवतरित हुई. कुश के वंशज विश्वामित्र जैसे कौशिक खे गये उसी तरह इस नदी को कौशिकी कहा गया जिसका पूर्व जन्म में नाम सत्यवती था.
धारापानी ने निकलने के बाद कोसी दक्षिण दिशा को बहती है. पहले इसमें रुद्रधारा मिलती है. आगे चलकर चोपड़ा/ चौंसिला नामक स्थान पर सुयालगाड़ आकर मिलती है. सुयाल और कोसी नदी के संगम पर शिव का मंदिर स्थित है इस मंदिर का महत्त्व मानसखंड में बताया गया है. यहां से यह पश्चिम दिशा की ओर बहने लगती है.
सल्ट पहुंचने पर यह एक तीखा मोड़ लेती है और दक्षिण पश्चिम दिशा की ओर मुड़ जाती है. सल्ट से मोहान के बीच इसकी दिशा उत्तर पश्चिम तक रहती है. मोहान से रामनगर के बीच कोसी का पाट काफी चौड़ा है.अल्मोड़ा की सीमा के अंतर्गत इसके बाए ओर खीराकोट, माला, सुपकोट, गणनाथ, सत्राली, कटारमल आदि प्राचीन गांव हैं.
इसके बाद कोसी काकड़ीघाट उतरती है. माना जाता है कि काकड़ीघाट में पीपल के पेड़ के नीचे विवेकानंद को आत्मिक ज्ञान की प्राप्ति हुई थी. फिर कोसी खैरना, गरमपानी, कैंची धाम होते हुए आगे बढ़ती है. खैरना पर दक्षिण पश्चिम की ओर मुड़कर आगे उलावगाड़ और कुचगाड़ के पानी में समेटती हुई फल्दाकोट क्षेत्र में स्थित भुजाण की ओर निकल जाती है.
कोसी अल्मोड़ा और नैनीताल जिले को आपस में विभाजित करती है. खैरना पुल के पास यह अल्मोड़ा से आकर नैनीताल जिले में प्रवेश करती है.
कोसी ढिकुली के बाद मैदानी भागों में प्रवेश करती है. ढिकुली के पास कोसी नदी के बीच में स्थित गार्जिया मंदिर बना है. रामनगर के मैदानी भागों में कोसी 70 मील का सफ़र तय करती है. कोसी जिम कार्बेट पार्क के बीच से होकर बहती है.
रामनगर के बाद कोसी उत्तर प्रदेश में प्रवेश करती है. उत्तर प्रदेश में सुल्तान पट्टी में चमरौली के पास यह रामगंगा में मिल जाती है.
-काफल ट्री डेस्क
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कोसी नदी खैरना क्रॉस करने के बाद सल्ट क्षेत्र मै प्रवेश करती है और रामपुर (ऊप्र)में शाहाबाद कस्बे के पास रामगंगा मै मिलती है,