समाज

पुरुषों के वर्चस्व वाले परम्परागत पेशे को अपनाने वाली सोमेश्वर की ‘गीता’ की कहानी

हम अक्सर बात करते हैं कि महिलायें आज पुरुषों से कम नहीं हैं. आज महिलाओं ने हर जगह अपनी पैठ बना ली है चाहे वह अभियांत्रिकी का क्षेत्र हो, चिकित्सा का या फिर राजनीति, सेना या शिक्षा. पर हम कभी परम्परागत रूप से चले आ रहे पेशों में महिलाओं की भागीदारी की बात नहीं करते. इन पेशों को अपनाने वालों के नाम तक पुरुषवाचक ही होते हैं मसलन लुहार,बढ़ई,मोची आदि. लेकिन सोमेश्वर में पुरुषों की एकाधिकार वाली इस दुनिया में भी एक महिला अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज करा रही हैं.
(Story of Geeta Someshwar)

सोमेश्वर की गीता, गीता सोमेश्वर बाजार के चौराहे पर अपनी छोटी सी दुकान में बैठ कर जूता सिलती हैं. बात एक साल पहले की है जब सोमेश्वर महाविद्यालय में मेरी पोस्टिंग हुई. नया कस्बा, नए लोग. आँखें अभी नई जगह में सामंजस्य बैठाने की कोशिश कर रही थी कि मेरा ध्यान कोने की दुकान पर बैठकर जूता सिल रही महिला पर गया. सिनेमा से लेकर आम जीवन तक मैंने कभी भी किसी महिला को जूते सिलने का काम करते नहीं देखा था जाहिर सी बात है मुझे आश्चर्य हुआ. मैंने उससे बात करने का निश्चय किया लेकिन मुझे लगा कि गीता से यूँ ही बात करना उसके वक़्त को बरबाद करना है इसलिए मैंने मरम्मत की बाँट जोह रहे अपने जूट के थैले को निकाला और उसे ठीक करने के बहाने गीता के पास गयी.

मैंने गीता से थैला सिलने के बारे में पूछा और फिर उससे बात करने लगी. मैंने उससे पूछा कब से करती हो यह काम? तो उसने जवाब दिया कि ज्यादा दिनों से नहीं पिछले लॉकडाउन में पति दिल्ली में फँस गया था सो पेट पालने की खातिर यह काम करने लगी. मैंने उससे पूछा कि क्या मैं उसकी कहानी और तस्वीर लोगों के साथ साझा कर सकती हूँ? तो उसने कहा नहीं दीदी लोग मजाक बनायेंगे. मैंने कहा ठीक है तुम्हारी मर्जी के बिना तुम्हारी कहानी साझा नहीं होगी.

इस एक साल में गीता और मेरे बीच दुआ-सलाम का रिश्ता बना रहा और कई बार मैंने कहानी साझा करने के बाबत उससे पूछा लेकिन वह तैयार नहीं हुई. एक दिन अचानक बातों ही बातों में गीता तैयार हुई. अपने पिछले दिनों को याद करते हुए गीता बताती है कि उसका जन्म शादाबाद उत्तर प्रदेश में हुआ था. उसकी माँ उसे बचपन में ही छोड़कर चली गई तो उसे दादी ने पाला. दादी की मौत के बाद उसे दिल्ली के किसी हॉस्टल में डाला गया जहाँ से उसने क़क्षा पाँच तक की पढाई की. हास्टल में सभी सुविधाएं मुफ्त में मिलती थी. बहुत याद करने पर भी गीता उस हॉस्टल का नाम नहीं बता पाई. कक्षा पाँच के बाद गीता फिर से गाँव आ गयी और कुछ साल गाँव में रहने के बाद उसकी शादी हो गयी और गीता अपने पति के साथ दिल्ली आ गयी.

दिल्ली में पति का एक घर था जो कि कुछ सालों बाद अतिक्रमण हटाओ की भेट चढ़ गया. अब गीता बेघर थी. इसी बीच उसकी तीन बेटियाँ हुई और दुर्भाग्यवश तीनों ही नहीं बची. बेघर गीता और उसका पति जगह-जगह छोटे मोटे काम करते हुए घूमने लगे. गीता बताती है कि वह कई साल हल्द्वानी में भी रहे. उसके बाद सोमेश्वर आये तो यही के होकर रह गए.
(Story of Geeta Someshwar)

गीता के बीस और इक्कीस साल के दो लड़के हैं दोनों ही छोटा-मोटा काम करते हैं. गीता ने अपने पति को देख-देख कर जूते सिलने का काम सीखा और आज गीता पति का हाथ बटाती है. गीता इक्तालीस बरस की है और शरमाते हुए बताती है कि यह साल उसकी शादी की पच्चीसवी सालगिरह का साल है. गीता के दोनों लड़कों ने सातवीं-आठवीं से ज्यादा नहीं पढ़ा लेकिन गीता अपने साथ रहने वाले अपने देवर के दो साल के बेटे को खूब  पढ़ाने की तमन्ना रखती है.

आंखिर में गीता कहती है दीदी मेरी कहानी फोन पर तो नहीं आएगी न. तस्वीर न साझा करने को भी कहती है. मैं उसे आशवस्त करती हूँ कि फोन पर तो आएगी पर उसकी कहानी उन लोगों तक पहुँचेगी जो कि उसके श्रम का सम्मान करते हैं और पुरुषों के वर्चस्व वाले इस परम्परागत पेशे को अपनाने और वर्जनाओं को तोड़ने के लिए उसके साहस की प्रसंशा करते हैं.
(Story of Geeta Someshwar)

अपर्णा सिंह

इतिहास विषय पर गहरी पकड़ रखने वाली अपर्णा सिंह वर्तमान में सोमेश्वर महाविद्यालय में इतिहास विषय ही पढ़ाती भी हैं. महाविद्यालय में पढ़ाने के अतिरिक्त अपर्णा को रंगमंच पर अभिनय करते देखना भी एक सुखद अनुभव है.

इसे भी पढ़ें: गरुड़-सोमेश्वर वाले रहमान चचा और कुमाऊनी-गढ़वाली भाषा

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