कला साहित्य

स्वाति मेलकानी की कहानी ‘नेपाल में सब ठीक है’

“आपका स्कूल भी बंद है मैडम जी?” खिमदा ने मुझे देखते ही पूछा. जवाब भी उसने खुद ही दे दिया, “इस बार तो बहुत नुकसान हो गया. हमारे मालिक साहब का स्कूल भी कई दिनों से बंद है. बच्चों के मां-बाप लोग फीस भी नहीं दे रहे हैं. यह कोरोना तो पहले कभी न सुना, न देखा. परसों जो वर्मा जी की घरवाली मरी है ना; लोग बता रहे थे कि वह भी कोरोना से मरी है बल. खाली बुखार है बोलकर उन्होंने बात छुपा दी. बड़ी खतरनाक बीमारी है मैडम जी. आप घर पर रहोगे तो बच भी सकते हो. हमारे मालिक साहब लोग भी सब घर में ही हैं. बाजार से साग सब्जी लाने का काम मैं ही करता हूं. मालिक साहब ने मास्क दे दिया है उसे लगा कर जाता हूं.”
(Story by Swati Melkani)

“अपना भी ध्यान रखना खिमदा. कोरोना से खतरा तो सबको बराबर है.” मैंने कहा. 

“हम नेपाली आदमी मजबूत होते हैं, मैडम जी. यह जो लोग ज्यादा नाजुक होते हैं ना; उनको ही कोरोना ज्यादा हो रहा है बल. मालिक साहब बता रहे थे कि इंग्लैंड और इटली में बहुत लोग मर रहे हैं. हमारे नेपाल में तो अभी तक कोई नहीं मरा. मैंने अपने भाई को फोन किया था. वह उधर ही गांव में रहता है. वह बता रहा था कि गांव में तो किसी को कोरोना के बारे में पता तक नहीं है.”

खिमदा शायद और कुछ बोलता पर उसे याद आ गया कि वह स्कूल के टैंक में पानी भरने आया था. मैं कमरे में लौट आई. खिमदा की ऊर्जा देखकर विस्मय होता है. पिछले तीन सालों में मैंने कभी इस आदमी को बीमार या थका हुआ नहीं देखा. खिमदा पिथौरागढ़ के नामी प्राइवेट स्कूल मालिक के यहां काम करता है. मैंने भी उन्हीं के यहां किराए का कमरा लिया है. यानी मेरे मकान मालिक, खिमदा के मालिक साहब हैं. सोचती हूं कि खुद को मालिक साहब कहलाने में उन्हें कैसा लगता होगा. शायद कुछ-कुछ राजा होने के अहसास जैसा. खिमदा पिछले बीस सालों से उनके यहां काम करता है. कुछ नेपाली मजदूरों के साथ वह भारत आया था. इन्हीं मालिक साहब के स्कूल की नई बिल्डिंग में उसने ईंटें ढोने का काम किया. गोरा और फुर्तीला खिमदा मालिक साहब को भा गया. खिमदा दो वक्त के खाने और महीने की बंधी तनख्वाह के बदले वहीं रह गया. अब तो खिमदा उनका दाहिना हाथ बन चुका है. स्कूल में ही उसे एक चारपाई लगाने को कमरा दिया गया है. मालिक साहब की पुरानी कमीज पैंट खिमदा बड़े चाव से पहनता है. मैंने खिमदा को हमेशा साफ-सुथरे पैंट शर्ट के साथ बेल्ट लगाए देखा है. मालिक साहब लोग चार भाई हैं और खिमदा सभी के ख़ास काम का आदमी है.

खिमदा के कामों का सिलसिला सुबह पांच बजे से शुरू हो जाता है. पांच बजे वह डॉग हाउस खोलकर मालिक साहब के सेंट बर्नार्ड कुत्ते को घुमाने ले जाता है. कुत्ते को वापस बांध कर आंगन में झाड़ू लगाता है. स्कूल के आसपास भी सफाई कर देता है. पिछवाड़े में गौशाला है, हल्की धूप आने पर वह गायों को बाहर बांध कर गोबर साफ करता है. उन्हें घास देकर वह बाहर लगे चूल्हे में गायों के लिए चोकड़ उबालने रख देता है. इसके बाद मालकिन दूध दुहने गौशाला आती हैं. थोड़ी देर बाद उन्हीं की रसोई की सीढ़ियों में बैठकर खिमदा स्टील के गिलास में चाय सुड़कता दिखता है. गिलास धोने के बाद उसे दीवार में उल्टा रखकर खिमदा स्कूल की तरफ चल देता है. स्कूल में जरूरत के हिसाब से कुर्सी मेज अंदर बाहर रखता है. प्रार्थना के लिए माइक और हारमोनियम मंच पर रखता है. स्कूल का सब काम सेट करने के बाद खिमदा  कुत्ते को खाना देने फिर डॉग हाउस जाता है. इसी बीच उसे भी नाश्ता मिलता है.

मालिक साहब पुराने दिनों के जमींदार हैं. स्कूल के बड़े मैदान के ऊपर ही उनका घर है. घर के आसपास सुंदर फूलों की क्यारियां, सब्जियों की खेत और कई विदेशी पौधे गमलों में लगे हुए हैं. इस सारी खेती बागवानी का दारोमदार खिमदा के ऊपर है. कभी खिमदा गोभी बोता है तो कभी आलू गोड़ता है. कभी गमलों की मिट्टी बदलता है तो कभी अंगूर की बेल के लिए सहारे की लकड़ी लगाता है. इस बीच उसने स्ट्रौबेरी को गमलों से हटाकर नई क्यारी में लगाया है. क्यारी में गोबर सारते हुए वह कोई नेपाली गाना गुनगुनाता हुआ चलता है. नीचे के बड़े खेत में उसने गेहूं भी बोए हैं. इन तमाम कामों के बीच वह स्कूल का नियमित चपरासी और रात्रि चौकीदार भी है.
(Story by Swati Melkani)

शुरू में खिमदा बैंक और पोस्ट ऑफिस के काम नहीं कर पाता था. पर अब वह सब सीख गया है. गाड़ियों के लिए स्कूल का बड़ा गेट खोलने और बंद करने का काम भी उसी का है. पिछली बरसात में उसने स्कूल के मैदान में दूब घास लगाई थी. मैदान में मिट्टी खोदता खिमदा बता रहा था,”मैडम जी, मैदान की मिट्टी बह जाती है. यह जो किनारे के पाइप दिख रहे हैं ना, यह सब पहले मिट्टी में दबे थे. हर साल बारिश में इतनी मिट्टी बह गई कि अब यह पाइप जमीन से ऊपर दिखाई देते हैं. हमारे मालिक साहब तो छोटी-मोटी चीजों पर ध्यान नहीं देते पर हमको तो देखना चाहिए ना कि कहां कितना नुकसान हो रहा है. साहब लोग पैसे वाले आदमी ठहरे. अच्छी-अच्छी सरकारी नौकरियों से रिटायर हुए ठहरे. बीच वाले साहब का लड़का तो अमेरिका में है. उनको वहां से डॉलर भेजता है बल. डॉलर तो रुपये से महंगा होता है ना, मैडम जी.”

” हां, महंगा तो होता है ” मैंने जवाब दिया. 

घास की जड़ों को मिट्टी से ढकते हुए खिमदा बोला, “उनके पास पैसे की क्या कमी है? बेटा डॉलर ना भी भेजे तो क्या फर्क पड़ेगा? बेटे को तो अभी वे ही पाल सकते हैं. यहां से ज्यादा जमीन जायदाद तो इनकी गांव में है. गांव का घर तो इस घर से भी काफी बड़ा है, पर अब वहां सब बंजर पड़ा है. मैं हर साल वहां से एक ट्रॉली भर कर घास लाता हूं. टूटा हुआ घर है ना तो वहीं आसपास के लोग इनकी जमीन से कमा खाते हैं… आपने अपना मकान कहाँ बनाया है ,मैडम जी?”

“अभी कहीं नहीं बनाया है खिमदा. जहां-जहां नौकरी लगी वहां किराए में घर लेते गए.” मैंने बताया.

“अच्छा है मैडम जी, आप तो सरकारी नौकरी में ठहरे… जब चाहो तब मकान लगा लोगे. मेरी तो इतनी औकात कहां हुई. यह तो मालिक साहब ने मेरे लिए बनबसा में जमीन खरीद दी. फिर थोड़ा बहुत करके छोटा सा मकान भी बना दिया. मेरा बड़ा लड़का वहीं रहता है. मेरी बहू वहां खेती करती है. मालिक साहब ने मुझे भी मकान मालिक बना दिया.”

“तो आप वहां जाते नहीं कभी?” मैंने पूछा.

“जाता हूं ना मैडम जी. चार पांच बार गया हूं. अब जाड़ों की छुट्टियों में स्कूल बंद होगा तो पहले नेपाल जाऊंगा. मेरी घरवाली और छोटा लड़का वहां गांव में रहते हैं. लौटते समय बनबसा से होकर आऊंगा. कम ही जा पाता हूं मैडम जी. मालिक साहब का काम मेरे बिना चलता ही नहीं. सब काम मेरे ऊपर ही तो छोड़ा ठहरा. मैं चला गया तो सब कैसे चलेगा?”
(Story by Swati Melkani)

सचमुच पिछले दो सालों से खिमदा अपने घर नेपाल नहीं गया. दो साल पहले दीवाली में जाने वाला था पर स्कूल में निरीक्षण टीम आ गई. फिर पिछले डेढ़ साल से तो कोरोना अपने शबाब पर है. कोरोना के शुरुआती महीनों में जब हम सब घरों में कैद थे तो कुछ जरूरी कामों के लिए खिमदा को बाजार भेजा जाता था. पहली बार चमचमाती सैनिटाइजर की शीशी जेब में लिए खिमदा मैदान की सीढ़ियों पर मिला तो बोला,”मैडम जी, बाजार जाना है. जाने से पहले इसे एक बार हाथों में लगा लिया है मैंने. ठीक है ना, मैडम जी. ऐसे ही लगाते हैं?” सैनिटाइजर को लेकर खिमदा का उत्साह देखने लायक था.

लॉकडाउन के उन बोझिल दिनों में बाकी कामों के अलावा खिमदा का एक काम कस्बे भर की खबरें लाना भी बन गया था. “बाजार में लोग क्या कह रहे थे, किसने कोरोना की बात छुपाई, लॉकडाउन में किस दुकानदार ने चोरी से दुकान खोली थी… नाक के नीचे मास्क लगाए खिमदा ऐसी तमाम बातें जोश से बताता था. 

कोरोना बढ़ता गया और मालिक साहब ने खिमदा को और ज्यादा साफ सफाई से रहने की हिदायत दे डाली. अब वह बाजार से लौटकर दोबारा नहाता और कपड़े बदलता था. मैंने गौर किया कि कोरोना की तमाम खबरों के बीच वह बार-बार नेपाल के हाल सुनाने लगता है. “नेपाल में सब ठीक है, मैडम जी. वहां कोरोना इतना नहीं फैला है. जब नेपाली मजदूर बनबसा से महेंद्रनगर जा रहे थे तो उन्हें रास्ते में ही रोक दिया. जब उन्हें जाने ही नहीं दिया तो कोरोना फैलता कैसे. ना कोई नेपाल गया, ना वहां से आया. मैं भी तो साल भर से घर नहीं गया. वहां बहुत सख्ती है.”

शाम को स्कूल के मैदान में टहलने निकली तो मैदान के ऊपर वाले खेत में काम करता खिमदा दौड़ता हुआ आया, “मैडम जी ज्यादा घनी घास की तरफ मत चलना. यहां एक सांप का जोड़ा घूम रहा है. पहले नीचे के मोहल्ले में दिखा था. उन लोगों ने तो फोन में वीडियो भी बनाया है. वहां से भागकर अब यहां छिप गया है. पिछले महीने मैंने यहीं दो सांप मारे थे. इतने मोटे सांप थे मैडम जी, कि आप तो देख कर ही डर जाते. मैंने उन्हें नाशपाती के पेड़ की जड़ के पास दबा दिया. मरे हुए सांपों की खाद बन जाती है. जिस पेड़ की जड़ में सांप की खाद हो वह बड़े से बड़े आंधी तूफान में भी नहीं टूटते. हमारे नेपाल के खेतों में जैसे ही कोई सांप दिखता था, मेरा भाई उसे तुरंत मार कर किसी पेड़ की जड़ में दबा देता था. कल मेरे भाई का फोन आया था. बता रहा था कि नेपाल में तीन आंखों वाली एक गाय पैदा हुई है. वह तो शिव जी का अवतार हुई ना, मैडम जी. सब लोग गाय देखने जा रहे हैं. नेपाल में पशुपतिनाथ की बड़ी कृपा है. उनकी कृपा से वहां कोरोना भी नहीं फैला है.” 
(Story by Swati Melkani)

टीवी पर सभी चैनल लाशों के अंबार दिखा रहे थे. कब्रिस्तान छोटे पड़ गए थे. एक अजीब उदासी से मन भरा रहता था. इंसानी बेबसी हर दिन गहराती जा रही थी. इंसानों को इतना हारते पहले कभी देखा या सुना नहीं था. स्कूल कैंपस में रहने वाले हम सब अपनी बारी आने पर बीमार पड़े और स्वस्थ हुए. पर खिमदा ठीक रहा. वह जोर-जोर से न सिर्फ अपने बल्कि पूरे नेपाल के ठीक होने की खबरें दिया करता था.

“मैडम जी मेरी घरवाली बहुत अच्छा खाना बनाती है. वह हर सब्जी में घर का छांछ डालती है. हम तेल नहीं खाते, मैडम जी. मेरी घरवाली ने भैंसे पाली हैं, कनस्तर भरकर घी बना देती है. मैं जब भी नेपाल से लौटता था तो वह कई परतों वाली चावल की रोटी रास्ते में खाने को रख देती थी. पहले नेपाल से यहां तक पहुंचने में तीन दिन लग जाते थे, पर उस एक रोटी को खाते खाते मैं पहुंच जाता था.”

“एक रोटी को तीन दिन तक खाते थे?” मैंने आश्चर्य से पूछा. अपनी आधी हथेली दिखाकर खिमदा बोला, “एक रोटी इतनी मोटी होती है, मैडम जी. हर परत के बीच में खूब सारा घी लगाते हैं. करीब आधा पौना किलो घी एक रोटी में खप जाता होगा. मैं रास्ते में खाने पर पैसा कभी खर्च नहीं करता. कहीं से थोड़ी सी चाय ले ली और उसके साथ रोटी तोड़ कर खाली. पेट भर जाता है, मैडम जी. मेरी घरवाली को तो पता भी नहीं कि कोरोना भी कुछ होता है. उधर नेपाल में कोरोना फैला भी नहीं है. पहले ही सबको बॉर्डर में रोक दिया. नेपाल में तो मैडम जी, कोरोना घुस ही नहीं पाया.”

कोरोना की खबरें दुनिया भर से आ रही थी. खिमदा को अपने मोबाइल के रेडियो का सहारा था. एक शाम को मुझे पुकार कर बोला, “मैडम जी, मेरा फोन ठीक कर दो|”

मुझे सकुचाते देखकर बोला,”मैंने अभी-अभी हाथ धोए हैं, मैडम जी. फोन के ऊपर भी सैनिटाइजर डाला है. कल से मेरे फोन में रेडियो नहीं आ रहा है. पता नहीं क्या गड़बड़ हो गई. मैं इसमें नेपाली रेडियो सुनता हूं. वैसे तो नेपाल में सब ठीक है पर फिर भी रेडियो ठीक हो जाता तो…” खिमदा चुप हो गया. मैंने चेक किया पर फोन का रेडियो ठीक नहीं हुआ. निराश होकर खिमदा फोन वापस ले गया. कुछ दिन बाद शायद उसने किसी और से फोन ठीक करवा लिया. 

लद्दाख की गलवान घाटी में भारत और चीन की सेनाओं के बीच तनाव की खबरें चल रही थी. इस घटनाक्रम पर बाकी देशों की प्रतिक्रियाओं के बारे में भी टिप्पणी होती थी. खिमदा ने भी शायद किसी उड़ती खबर में सुना कि नेपाल का झुकाव चीन की ओर दिख रहा है. खिमदा उदास रहने लगा. एक शाम वह खेतों की गुड़ाई कर रहा था तो मुझे देखकर बोला, ” मैडम जी, वह सामने वाले पहाड़ के टॉप में आपको हरी छत वाला अकेला घर दिखाई दे रहा है ना ! वह कोई पंत जी लोगों का घर है. बहुत बड़े लोग हैं वे. एक बार बनबसा में हमारे गांव का एक छोटा लड़का मजदूरी करने आया था. वे उसे अपने घर का काम संभालने यहां ले आए. उन्होंने उसको पढ़ाया लिखाया. उनके दोनों लड़के विदेश चले गए हैं. अब वह लड़का ही यहां रहता है. यहीं की एक बढ़िया लड़की से उसकी शादी भी करवा दी. पंत जी ने लड़की वालों से कहा कि इसे मेरा तीसरा लड़का समझ कर अपनी लड़की दे दो. लड़की वाले मान गए और शादी हो गई. अब तो वह बिल्कुल उन्हीं के लड़कों की तरह रहता है. कितनी अच्छी किस्मत लेकर आया ना, मैडम जी. सब किस्मत की बात होती है. नेपाल से भारत आ गया. पढ़ लिख गया. अच्छे घर में रहने लगा… नेपाल और भारत तो बहुत पुराने दोस्त हुए. हमारे नेपाल में तो सब भारत को ही अच्छा मानते हैं. चीन को कोई अच्छा नहीं मानता. कभी अगर लड़ाई हो गई ना मैडम जी, तो नेपाल तो भारत का ही साथ देगा”
(Story by Swati Melkani)

…फिर कुछ सोचता हुआ बोला,”मैंने सुना कि कोरोना भी चीन से आया है. चीन वाले ऐसा ही करते हैं, मैडम जी. इसीलिए नेपाल तो भारत को ही अच्छा मानता है. चीन वालों ने नेपाल में कोरोना का टीका भेजा था पर उनका भेजा टीका किसी नेपाली ने नहीं लगवाया. जो दवा भारत से आई थी बस वही लगवाई. हमारा तो जो हुआ भारत ही हुआ, मैडम जी. चीन से हमारा कोई मतलब नहीं है. हमने तो भारत में कोरोना भी नहीं फैलाया. कोई नेपाली यहां कोरोना लेकर नहीं आया. नेपाल में सब ठीक है.”

सूरज डूब रहा था और खिमदा का बोलना जारी था पर शब्द जैसे खो गए थे.   सिर्फ आवाजें थी. मिली जुली आवाजें… गलवान में चल रही गोलियों की… पैंगोंग में उठती लहरों की… या शायद… कोरोना से घुटती सांसों की…
(Story by Swati Melkani)

स्वाति मेलकानी

स्वाति मेलकानी

29 अप्रैल 1984 को नैनीताल के पटवाडांगर में जन्मीं स्वाति मेलकानी उत्तराखंड के एक छोटे से कस्बे लोहाघाट के स्वामी विवेकानंद राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय में पढ़ाती हैं. भौतिकविज्ञान एवं शिक्षाशास्त्र में स्नातकोत्तर की पढ़ाई कर चुकी स्वाति का पहला कविता संग्रह ‘जब मैं जिंदा होती हूँ’ भारतीय ज्ञानपीठ की नवलेखन प्रतियोगिता में अनुशंसित अवं प्रकाशित हो चुका है. उनकी कविताएं देश की तमाम छोटी-बड़ी पत्रिकाओं में छपती रही हैं और हिन्दी कविता के पाठकों के लिए वे एक परिचित नाम हैं. 

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  • स्वाति मेलकानी द्वारा लिखी गई कहानी"नेपाल मैं सब ठीक है।" प्रासंगिक एवं रोचक बन पड़ी है। कहानीकार ने पर्वतीय अंचालिकता को ध्यान मैं रखकर कोरोना के डर का सजीव वर्णन किया है।साधुवाद।

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