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मिस्त्री की दिहाड़ी से कम है अतिथि राष्ट्रनिर्माताओं की तनख्वाह

पिछले एक सप्ताह से उत्तराखंड राज्य सरकार स्कूलों में गेस्ट टीचरों की नियुक्ति को लेकर अपनी पीठ थपथपा रही है. उत्तराखंड में शिक्षा विभाग सरकारी कर्मचारियों वाला सबसे बड़ा विभाग है. जाहिर है कि इस महकमे में काम करने वाले कर्मियों पर सरकार सबसे ज्यादा खर्च भी करना पड़ता है. इस खर्चे से बचने का एक उपाय उत्तराखण्ड समेत पूरे देश भर में चलता है वह है गेस्ट टीचर का. जहाँ एक तरफ घरों में पुताई-मजदूरी वगैरह का काम करने वाला एक मिस्त्री छः से सात सौ रुपये दिन से कम की दिहाड़ी नहीं लेता है वहीं उत्तराखण्ड सरकार ने गेस्ट टीचर के लिये पंद्रह हजार प्रतिमाह का वेतन तय किया है मतलब हमारे बच्चों की जिंदगी में रंग भरने वाले का वेतन हमारी दीवारों को रंगने वाले से भी कम है.

खैर. अगस्त 2018 के महीने में अल्मोड़ा जिले के मासी गांव के निवासी गोपाल दत्त ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी. इसमें कहा गया था कि प्रदेश की सरकारी स्कूल कालेजों में शिक्षकों की खासी कमी चल रही है. जिसके कारण शिक्षा व्यवस्था चरमरा गई है. कई स्कूलों में विषय के अध्यापक नहीं होने से अभिभावक बच्चों को घर से बाहर अन्य स्थानों को भेजने के लिए मजबूर हो रहे हैं. मामले पर तुरंत कार्रवाई करते हुये हाईकोर्ट ने सरकार को शिक्षा सत्र शुरू होने के चार महीने बाद भी शिक्षकों की व्यवस्था न करने के कारण फटकार लगाई और 8 सप्ताह के भीतर गेस्ट टीचरों की नियुक्ति करने को कहा गया. वहीं इस बीच चल रही भर्ती प्रक्रिया को शीघ्र पूरा करने के भी निर्देश भी दिए. कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजीव शर्मा और न्यायमूर्ति आलोक सिंह की संयुक्त खंडपीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए रिक्त पदों पर पूरी तरह स्थायी नियुक्त के लिए मई 2019 तक का समय दिया था.

फोटो schooleducation.uk.gov.in से साभार

आज जनवरी 2019 है. जो बात बच्चों के सत्र शुरू होने के चार महीने बाद शुरू हुई थी वह अभी तक वहीं और वैसे ही हाल में है जबकि बच्चों के सत्र के केवल तीन महीने बचे हैं. सरकार एक पखवाड़े में नियुक्ति का दावा कर रही है. मतलब एक महीना और चला गया. अब बचे दो महीनों में गेस्ट टीचर वह पूरा करेंगे जो उन्हें बारह महीने में करना था. वे यह कैसे करेंगे इसका जवाब किसी सरकार के पास नही है. अब उत्तराखंड के शिक्षा मंत्री द्वारा इस ख़बर की जानकारी अपने आफ़िशियल फेसबुक पेज पर जारी किये जाने पर लोगों की प्रतिक्रिया देखिये.

अधिकांश लोग मंत्री अरविन्द पांडे के फैसले से नाराज हो रहे हैं. इस प्रक्रिया में आरोप लग रहा है कि यह सरकार भी पिछली सरकार के ढर्रे पर चल रही है. सरकार एक वर्ष के लिये गेस्ट टीचरों की नियुक्ति करती है. अगले साल फिर से  नई भर्ती की जाती है. भर्ती के लिए सभी जिलों में आवेदकों के हाईस्कूल, इंटर, ग्रेजुएशन,पोस्ट ग्रेजुएशन, बीएड आदि में औसत नंबरों के आधार पर एक मेरिट सूची जारी की जाती है. इस वर्ष सरकार ने नियम में परिवर्तन कर प[पहले तो  पिछले साल के गेस्ट टीचरों को अनुभव के आधार पर कुछ एक्स्ट्रा नंबर दिये हैं. दूसरे अब कोई भी आवेदक पूरे उत्तराखण्ड में कहीं भी आवेदन कर सकता है. यह पूरी प्रक्रिया अब ऑनलाइन कर दी गयी है.

सरकार द्वारा किये इन परिवर्तनों का पहला प्रभाव यह हुआ है कि नये आवेदकों के मेरिट में आने का मौका अपने आप कम हो गया है क्योंकि प्रतियोगिता एक समान पंक्ति से शुरू नहीं की गयी है. दूसरा प्रभाव यह होगा कि लगातार गेस्ट टीचर के रूप में अधिक वर्षों तक काम करने से सरकार की नैतिक जिम्मेदारी बन जायेगी कि इन्हें स्थायी किया जाय और आज सरकार में मौजूद लोग विपक्ष में जाते ही इन गेस्ट टीचरों को स्थायी करने की मांग का समर्थन करने लगेंगे जैसा कि वर्तमान में उपनल के कर्मचारियों के संबंध में हो रहा है.

सरकार ने दावा किया है कि जनवरी महीने के पहले पखवाड़े में सरकारी माध्यमिक विद्यालयों को 4910 गेस्ट टीचर मिल जाएंगे. प्रवक्ता के 4076 और एलटी के 834 पदों के लिए विभाग को कुल 67283 ऑनलाइन आवेदन पत्र मिले हैं. जिलों की वरीयता के आधार पर मेरिट के मुताबिक जिलेवार विषयवार और संवर्गवार अभ्यर्थियों की सूचियां विभागीय वेबसाइट पर जारी की गई हैं.

वर्तमान में उत्तराखण्ड में प्रवक्ता संवर्ग में कुल 4506 पद रिक्त हैं. इनमें प्रति 4076 पदों पर गेस्ट टीचरों की तैनाती की कार्रवाई चल रही है. प्रवक्ता के सीधी भर्ती के 917 रिक्त पदों पर राज्य लोक सेवा आयोग से चयन की प्रक्रिया पिछले एक साल से गतिमान है. एलटी के 3089 रिक्त पदों के सापेक्ष 834 पदों पर गेस्ट टीचर की तैनाती होनी है. उत्तराखंड अधीनस्थ चयन आयोग से 1214 पदों के प्रति चयन की कार्यवाही की गई है. जिन पर भी नियुक्ति की कार्यवाही सालों से गतिमान है. शिक्षामंत्री अरविंद पांडे ने एक बैठक में बताया कि प्रवक्ता पदों के लिए 46513 और एलटी पदों के लिए 20770 ऑनलाइन आवेदन पत्र मिले.

उत्तराखण्ड शिक्षा मंत्रालय की वेबसाईट http://www.schooleducation.uk.gov.in से साभार

उत्तराखण्ड में शिक्षा की हालत कैसी है इसके दर्शन शिक्षा विभाग की वेबसाइट पर हो जाते हैं. वेबसाइट के डिजायन और उसकी गुणवत्ता को देखकर मालूम पड़ता है कि बावजूद  1 जनवरी 2019 को इसके अपने अपडेट किये जाने के दावे के, यह बाबा आदम के ज़माने में अटकी हुई है. यह इस पर राज्य में शिक्षा कार्यक्रम से संबंधित फोटो गैलरी में जो फोटो दी गयी हैं वो बेहद पुरानी और धुंधली हैं. फोटो गैलरी में जिस बात पर सबसे ज्यादा जोर दिखता है वह मध्यान्ह भोजन योजना है. शायद सरकारी स्कूल शिक्षा से ज्यादा एक वक्त के भोजन दिये जाने के लिये खोले गये हों. वेबसाइट में मौजूद कई तस्वीरों में एक तस्वीर में साल 2004 का वर्ष नज़र आता है. शायद 2004 के बाद से सरकार के पास दिखाने को कुछ न हो.

इसके अलावा अपने राज्य प्रतिनिधित्व करती जिन दर्ज़न भर निम्नस्तरीय फोटोग्राफ्स को इसकी गैलरी में जगह मिली हैं उनमें से कुछ के कैप्शन बड़े मजेदार हैं – पहली फोटो में केम्पटी फॉल की स्पेलिंग काम्प्टी फॉल (kamptyfall) लिखी हुई है, दूसरी में सुन्दरढूंगा की स्पेलिंग गलत है, तीसरी और चौथी के बड़े आकर्षक टाइटल हैं: नेचुरल व्यू, सातवीं फोटो में चिड़िया की फोटो का टाइटल ‘यू. टी. बर्ड’ है (यहाँ यू.टी. से अभिप्राय उत्तराखण्ड से है)  ताकि उसे उतराखंड की चिड़िया के अलावा कुछ और न समझ लिया जाए, ग्यारहवीं फोटो का टाइटल है – GHATHDR (बहुत माथापच्ची के बाद समझ में आया कि यह घाट, हरिद्वार का शॉर्ट फॉर्म है). बारहवीं फोटो देहरादून के दून स्कूल की है. हमें नहीं मालूम आज के सूचना-तकनीकी के समय में अपनी वेबसाइट पर शिक्षा विभाग कितने पैसे खर्च करता है. लेकिन अगर उसका कोई बजट है तो वेबसाइट बनाने और उसका प्रबंधन करने वाली कम्पनियों से बहुत सारे सवाल पूछे ही जाने चाहिए.

उत्तराखण्ड शिक्षा मंत्रालय की वेबसाईट http://www.schooleducation.uk.gov.in से साभार

इसी वेबसाईट में विभाग के उद्देश्य (ऑब्जेटिवस) वाला पन्ना खाली है. वेबसाइट पर शिक्षा से संबंधित 2014-15 के बाद के आंकड़े मौजूद नहीं हैं. स्कूलों में कम्प्यूटर शिक्षा के लिये आरोही योजना के तहत हर स्कूल में पांच से छः कम्प्यूटर लगाये गये हैं. स्कूलों में लगने वाले कम्प्यूटर का एक उद्देश्य बच्चों को इंटरनेट के माध्यम से ऑनलाइन शिक्षा भी बताया गया है. हालांकि स्कूल में लगे कम्प्यूटर की जो फोटो वेबसाइट में लगीं हैं वह इस बात पर संदेह पैदा कराती है कि बच्चों को किसी भी प्रकार की ऑनलाइन शिक्षा दी जा रही होगी.

उत्तराखण्ड शिक्षा मंत्रालय की वेबसाईट http://www.schooleducation.uk.gov.in से साभार

इस वेबसाइट में फी-स्ट्रक्चर नाम के एक कालम में बेहद रोचक जानकारी है. इसमें कक्षा एक में खेल के नाम पर जो फीस ली जा रही है वह दस पैसा है. कक्षा दो से डेवलपमेंट फी के नाम पर एक रुपया फीस में लिखा गया है. कक्षा एक चार से पांच में खेल का शुल्क बीस पैसा हो जाता है जो छठी में जाते ही एक रुपया हो जाता है और नवीं से बारहवीं तक यह यह दो रुपया है. इसी तरह डेवलपमेंट फ़ीस छठी में दो रुपया, नवीं में पांच और ग्यारहवीं-बारहवीं में आठ रुपया हो जाती है. रिफ्रेशमेंट के नाम पर भी दो रुपया लिखा गया है. नवीं के बाद सरकार ट्यूशन फीस भी लेती है.

इस तरह का फ़ी स्ट्रक्चर शायद ही आपको कोई प्राइवेट स्कूल देता हो

– गिरीश लोहनी

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Girish Lohani

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