काठियावाड़ के पोरबंदर नगर में जन्मीं कस्तूरबा गांधी Kasturba Gandhi (11 अप्रैल 1869 – 22 फरवरी 1944) का विवाह मोहनदास करमचंद गांधी के साथ तब हुआ था जब उनकी आयु तेरह वर्ष की थी और वे गांधी से छः माह बड़ी थीं. उन्होंने नागरिक अधिकारों और भारतीय स्वाधीनता के पक्ष में अपने पति के साथ कंधे से कंधा मिला कर अंग्रेजों से लड़ाई लड़ी.
आज उनका जन्मदिन है. प्रस्तुत हैं उनके जीवन से जुड़े कुछ दिलचस्प तथ्य –
1. विवाह से पहले कस्तूरबा का नाम कस्तूर कपाड़िया था. उनके पिता गोकुलदास मकनजी कपाड़िया साधारण व्यापारी थे. कस्तूरबा उनकी तीसरी संतान थीं. कस्तूरबा बचपन में निरक्षर थीं और सात साल की अवस्था में छह साल के मोहनदास के
साथ उनकी सगाई कर दी गई. उनके प्रारम्भिक जीवन के बारे में बहुत अधिक जानकारी नहीं मिलती.
2. उनका विवाह मई 1883 में हुआ था. अपने विवाह को याद करते हुए गांधी ने लिखा था – “हमारे लिए शादी का मतलब केवल नए कपड़े पहनना, मिठाइयां खाना और रिश्तेदारों के साथ खेलना भर था.”
3. घरेलू कामों के दबाव के कारण कस्तूरबा लिखना पढ़ना नहीं सीख सकीं. यह बात में जाहिर हुआ कि उन्हें ऐसा करने में कोई विशेष दिलचस्पी थी नहीं थी.
4. जब महात्मा गांधी पढ़ने के लिए इंग्लैण्ड गए तो कस्तूरबा ने भारत में रह कर अपने नवजात पुत्र हरिलाल की देखरेख का जिम्मा सम्हाला.
5. उनके तीन बेटे और हुए – मणिलाल, रामदास और देवदास.
6. वर्ष 1906 में कस्तूरबा ने ब्रहमचर्य का व्रत ले लिया था.
7. उन्होंने अपने पति के साथ काम करते हुए भारत की आजादी की लड़ाई में बढ़-चढ़ कर भाग लिया था.
8. वर्ष 1904 से वर्ष 1914 तक वे दक्षिण अफ्रीका के डरबन शहर के निकट फीनिक्स सैटलमेंट में अपने पति के साथ रहीं.
9. कस्तूरबा महिलाओं को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लेने के लिए उत्साहित करती रहती थीं और पति के जेल जाने की सूरत में उनका स्थान ले लिया करती थीं.
10. भारतीयों के जीवन की दशा सुधारने हेतु किये गए विरोध प्रदर्शन में हिस्सेदारी करने के आरोप में उन्हें तीन महीने के लिए जेल भी भेजा गया था.
11. जब 1915 में गांधी नील की खेती करने वाले किसानों के सहयोग के लिए भारत लौटे तो उनके साथ कस्तूरबा भी थीं. उन्होंने वहां रहने वाली महिलाओं को स्वास्थ्य, साफ़-सफाई और लिखने-पढ़ने की शिक्षा दी थी.
12. जनवरी 1944 में कस्तूरबा को दो बार दिल के दौरे पड़े. इसके बाद वे शैय्याग्रस्त रहीं. उसी वर्ष 22 फरवरी को उनका देहावसान हुआ.
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