Featured

कुटी गाँव का महाभारत के साथ सम्बन्ध

कुटी से ज्योलिंगकांग करीब 13 किमी का रास्ता शांत और धीरे-धीरे ऊंचाई लिए है. कुटी गांव की सीमा पर पानी के दो धारे दिखाई दिए. एक को पीने का पानी भरने और दूसरे को नहाने और कपड़े धोने के लिए लिहाज से इस्तेमाल किया जाता था. कचरे के लिए बाहर बकायदा एक कूड़ादान बना दिखा. गांव वालों की सफाई के प्रति जागरूकता देख अच्छा लगा. (Sin La Pass Trek 15)

कुटी गांव के किस्से-कहानियों में डूबा हुवा चुपचाप मैं गांव के नीचे पांडव निवास बताये जा रहे खंडहरों को निहार रहा था. आगे एक उफनते हुए गधेरे के किनारे घराट में गेहूं की पिसाई चल रही थी. अंदर गया तो एक बुजुर्ग मिले. उन्होंने मुस्कुराते हुए पूछा, ‘आज ज्योलिंग जा रहे हो.’ मेरे हां कहने पर उन्होंने पूछा, ‘कुटी में कहां रहे.. नीचे ‘खर’ में पांडवों की जगह भी देखी क्या..’ मैंने बताया कि कल देर हो गई थी, आज ज्योलिंगकांग जाना है तो पांडवों की स्थली जाने में देर हो जाती.

मैंने उनसे पांडव स्थली के बारे में पूछा तो उन्होंने भी अपने पूरखों से सुना किस्सा बताया. कुटी में पांडवों के आवास को आज भी खर नाम से जाना जाता है. इसी स्थान पर पांडव निवास करते थे. खर के निकट ही एक नमक की खान है जिसे ‘छका’ के नाम से जाना जाता है. इसके कुछ दूर पर शालीमार जगह है जहां छोटे-छोटे पत्थरों की खान है. इन पत्थरों को निकालने पर विभिन्न आकृति के पत्थर निकलते हैं. जिन पर लोग श्रद्धा रखते हैं.

उनकी बातों का ये सार निकला कि, द्वापर युग में जब पांडव अपने अंतिम समय में स्वर्गारोहण को गए तो वो कुटी गांव में भी कुछ समय रूके. उनके रूकने के अवशेष अब खंडहर के रूप में आज भी बचे हैं.

लोककथा है कि पांडवों की मां कुंती को कुटी जगह काफी पसंद आया था. यहां पर पांडवों ने जिस स्थान पर अपना निवास बनाया वह समतल मैदान से लगभग पांच मीटर ऊंचा है. इस जगह पर पांडवों के बैठने के लिए बिछाए गए पत्थर आज भी इस लोककथा को सच जैसा साबित करती है.

कहते हैं कि बाद में कुंती के नाम से गांव का नाम कुटी पड़ गया. कुटी में सामने के पहाड़ों को पांडव पर्वत कहते हैं. इसमें पांच चोटियां हैं जिन्हें पांच पांडवों का प्रतीक माना जाता है. (Sin La Pass Trek 15)

बूबू से विदा ले आगे रास्ते को पकड़ लिया. गांव पीछे छूट गया था और आगे हिमालय की विस्तृत घाटी में कंदराएं बांहें फैलाकर जैसे हमें पुकार रही थीं. पंकज, महेशदा और पूरन काफी आगे निकल गए थे. मैं और संजय साथ-साथ चल रहे थे. संजय को इस बात की शर्मिंदगी हो रही थी कि उसके रकसेक की वजह से मुझे परेशानी उठानी पड़ रही है. हांलाकि मैंने ऐसा कतई जताया नहीं था.

आगे दूर हमारे तीनों साथी चीटियों की तरह रेंगते हुए दिखाई दे रहे थे. सर्पिल घाटी के पार वे हाथ से इशारा कर हमें जल्दी आने को कह रहे थे लेकिन हम रफ़्तार बढ़ाने की स्थिति में नहीं थे. यह जगह हुड़का धार थी. हमारे वहां पहुंचने पर पंकज ने हमें जूस पिला तृप्त किया तो थोड़ी राहत मिली. सामने आईटीबीपी के हट दिखाई दे रहे थे.

निर्खुचा नाला पार कर ऊपर एक छोटे से बुग्याल में पहुंचे तो बांई ओर एक हिमपर्वत को देख हम सबने उसे ही छोटा कैलाश मान दंडवत किया और फोटो खींचकर तृप्त हो लिए. बाद में पता चला कि छोटा कैलाश तो आगे है, यह तो निर्खुच पर्वत था जिसे यहां के वासिंदे निकरचुरामा कहते हैं. पंकज, महेशदा और पूरन ने फिर रफ़्तार पकड़ ली. आईटीबीपी का कैंप दिखने लगा था. तभी दूर नजर पड़ी पंकज दौड़ता हुआ वापस आ रहा था. पास आकर उसने जबरन मेरा रकसेक ले लिया. अतिरिक्त बोझ से राहत मिलने पर अब मेरी चाल भी तेज हो गई थी. कुछ ही पलों में हम ज्योलिंगकांग में थे. आईटीबीपी में अपनी आमद दर्ज कराकर आगे टीआरसी में रुकने का फैसला किया. (Sin La Pass Trek 15)

आज मैं काफी चिड़चिड़ा हो गया था. इसकी दो वजहें थीं- एक तो उंचाई और दूसरा पंकज के फैसले लेने से दल में बाकी तीन साथी उहापोह की स्थिति में थे कि किसकी सुनें. उनकी नजर में हम दोनों ही पर्वतारोही थे. उम्र में बड़ा होने की वजह से मैंने खुद को स्वघोषित टीमलीडर मान लिया था. इस अभियान के लिए जानकारी जुटाने में मैंने मेहनत भी काफी की थी. पंकज के फैसले लेने से गूंजी से ही मुझे चिड़चिड़ाहट होने लगी थी पर मैं शांत बना रहा.

टीआरसी की एक बैरक में कुछ फौजियों के साथ हमें भी जगह मिल गई तो अपना सामान वहीं रख हम आगे पार्वती ताल देखने चले गए. कुछ दूर आगे जाने पर बाईं ओर बादलों के बीच छोटा कैलाश के दर्शन हुए तो जैसे सारी थकान काफूर हो गई. सचमुच यह बिल्कुल कैलाश पर्वत की तरह दिख रहा था!

‘जल्दी करो आगे पार्वतीताल देखकर लौटना भी है, सांझ हो रही है.’ पंकज की आवाज से हम सभी चौंक पड़े. खाली हाथ थे तो चाल में तेजी भी थी.

‘अरे! यह क्या है?’ पूरन चिल्लाया तो हम उसकी ओर देखने लगे. जमीन में बने एक बिल में ‘फिया’ की न जाने कैसे मौत हुई थी. हिमालयी क्षेत्रों में रहने वाले ‘फिया’ खरगोश की तरह बिल बनाकर रहते हैं. उसे देखकर लगा कि किसी ने इसे पत्थर से घायल कर दिया हो और अपने घर के दरवाजे में पहुंचने पर इसने दम तोड़ दिया. मन अजीब सा हो उठा.

तिरछी चढ़ाई पार कर आगे पहुंचे तो पार्वतीताल का अदृभुद सौंदर्य देख कदमों की रफ़्तार थम गई. छोटा कैलाश का प्रतिबिंब उसकी लहरों में हिलोरे ले रहा था. (Sin La Pass Trek 15)

जारी…

– बागेश्वर से केशव भट्ट

पिछली क़िस्त: कुटी गांव का इतिहास और उससे जुड़े रोचक किस्से

हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online

बागेश्वर में रहने वाले केशव भट्ट पहाड़ सामयिक समस्याओं को लेकर अपने सचेत लेखन के लिए अपने लिए एक ख़ास जगह बना चुके हैं. ट्रेकिंग और यात्राओं के शौक़ीन केशव की अनेक रचनाएं स्थानीय व राष्ट्रीय समाचारपत्रों-पत्रिकाओं में छपती रही हैं.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

उत्तराखंड में सेवा क्षेत्र का विकास व रणनीतियाँ

उत्तराखंड की भौगोलिक, सांस्कृतिक व पर्यावरणीय विशेषताएं इसे पारम्परिक व आधुनिक दोनों प्रकार की सेवाओं…

18 hours ago

जब रुद्रचंद ने अकेले द्वन्द युद्ध जीतकर मुगलों को तराई से भगाया

अल्मोड़ा गजेटियर किताब के अनुसार, कुमाऊँ के एक नये राजा के शासनारंभ के समय सबसे…

5 days ago

कैसे बसी पाटलिपुत्र नगरी

हमारी वेबसाइट पर हम कथासरित्सागर की कहानियाँ साझा कर रहे हैं. इससे पहले आप "पुष्पदन्त…

5 days ago

पुष्पदंत बने वररुचि और सीखे वेद

आपने यह कहानी पढ़ी "पुष्पदन्त और माल्यवान को मिला श्राप". आज की कहानी में जानते…

5 days ago

चतुर कमला और उसके आलसी पति की कहानी

बहुत पुराने समय की बात है, एक पंजाबी गाँव में कमला नाम की एक स्त्री…

5 days ago

माँ! मैं बस लिख देना चाहती हूं- तुम्हारे नाम

आज दिसंबर की शुरुआत हो रही है और साल 2025 अपने आखिरी दिनों की तरफ…

5 days ago