शेरदा अनपढ़, उत्तराखण्ड के एक ऐसे कवि जिसे काव्यकर्म के लिए किसी पढ़ाई-लिखाई की जरूरत न थी. फिर भी समाज और परिवेश को पढ़ने में वो नम्बर वन थे. लोग उनकी पढ़ाई-लिखाई पर सवाल उठाएँ इससे पहले ही शेरदा ने खुद को अनपढ़ घोषित कर दिया. अपने नाम में ही अनपढ़ जोड़ कर. यह एक तरह से चुनौती भी थी कि भाई लोगो या तो डिग्रियां देख लो या फिर कविताएँ.
(Sherda Remembered by Devesh Joshi)
जितनी सहजता और निरंतरता से किसी पहाड़ी सोते से पानी निकलता रहता है उतना ही सहज और निरंतर काव्य-प्रवाह शेरदा की कलम और कंठ से भी होता रहा. अपनी नायिका से शेरदा अपने दिल की बात कितने मौलिक और मनोहारी तरीके से कहते हैं-
ऊ देई फुलदेई है जैं
जो देई तू हिटी.
उर्दू की तरह प्रेमिका से गुफ्तग़ू में कोई बनावटीपन और नाटकीयता भी नहीं है. सीधी-सच्ची बात करते हैं ठेठ पहाड़ी अंदाज़ में-
पूषैकि पालंङ जसि
ओ खड्यूणि को छै तू?
शेरदा के काव्यकर्म का विस्तृत मूल्यांकन अभी होना शेष है. कवि अनपढ़ पर जब किसी को सर्वोच्च शोध उपाधि प्राप्त होगी तो देखना रोचक होगा कि शोधकर्ता इस अनपढ़ कवि को कितना पढ़ पाए हैं.
शेरदा मंचों के भी प्रिय कवि थे, श्रोताओं से उनको बहुत प्यार मिलता था. श्रोताओं की मांग के अनुरूप वे खुद को ढालने में निपुण भी थे. पर इस सबसे उनकी छवि अनजाने में एक हास्य कवि की भी बनती जा रही थी. उनकी व्यंग्य-दृष्टि और वक्रोक्ति, व्यंजना, उलटबाँसी की निपुणता भी हास्य के भाव ही गिनी जाने लगी थी. बावजूद इसके शेरदा के कवि का कद बहुत बड़ा है और जितना उनको पढ़ो उतना ही वो और बड़ा होता जाता है तो महज इसलिए कि उन्होंने निरंतर लिखा, बहुत सारा लिखा और मौलिक लिखा.
(Sherda Remembered by Devesh Joshi)
उनके काव्य में अर्थगौरव चकित करता है, उपमाओं में ताज़गी है और लय-प्रवाह पर अद्भुत पकड़ है. समाज में आते परिवर्तन हों या व्यक्ति के व्यवहार में कुछ भी उनकी नज़र से अनदेखा न रहा.
शेरदा अनपढ़ पहाड़ में हर आम-ओ-ख़ास के कवि हैं. उन पर लिखने या बोलने से कई गुना अधिक आनंद उनकी कविता को पढ़ने-सुनने में आता है. मंचीय कविता में भरपूर प्रतिभागिता के बावजूद वो अपने अंदर के असली कवि को कुशलतापूर्वक बचा गए.
शेरदा आप पर कुछ लिखते हुए अनपढ़ होने का अहसास होता है. कुछ बहुत अच्छे आलेख अग्रज ताराचंद्र त्रिपाठी, नवीन जोशी और पत्रकार मित्र जगमोहन रौतेला, सुधीर कुमार आदि ने लिखे हैं. इन सब से गुजर कर ही शेरदा जैसे कवि के काव्यकर्म का मर्म समझा जा सकता है. आज पुण्यतिथि के अवसर पर शेरदा को मेरी बाडुली पहुँचे.
(Sherda Remembered by Devesh Joshi)
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1 अगस्त 1967 को जन्मे देवेश जोशी अंगरेजी में परास्नातक हैं. उनकी प्रकाशित पुस्तकें है: जिंदा रहेंगी यात्राएँ (संपादन, पहाड़ नैनीताल से प्रकाशित), उत्तरांचल स्वप्निल पर्वत प्रदेश (संपादन, गोपेश्वर से प्रकाशित) और घुघती ना बास (लेख संग्रह विनसर देहरादून से प्रकाशित). उनके दो कविता संग्रह – घाम-बरखा-छैल, गाणि गिणी गीणि धरीं भी छपे हैं. वे एक दर्जन से अधिक विभागीय पत्रिकाओं में लेखन-सम्पादन और आकाशवाणी नजीबाबाद से गीत-कविता का प्रसारण कर चुके हैं. फिलहाल राजकीय इण्टरमीडिएट काॅलेज में प्रवक्ता हैं.
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