प्रिय अभिषेक

अपने देश में शायरों के जो किस्से चलते हैं उनसे लगता है कि वे पढ़ते-लिखते नहीं थे

कुछ दिनों पहले एक बड़े शायर की संक्षिप्त जीवनी और उनकी रचनाएँ पढ़ने का अवसर मिला. उनकी जीवनी कुछ इस तरह थी-
वह (शायर) धीरे-धीरे शराब के नशे में डूबने लगा. जन्मदिनांक, जन्मस्थान के बाद जीवनीकार सीधे यहीं आता है. शराब उसे पीने लगी, वो शराब को पीने लगा. वह सुबह से शाम तक शराब पीता. लोग उसे घर ले जाते, शराब पिलाते. वह लोगों को घर बुलाता, शराब पिलाता. जब तक पैसे रहते, शराब पीता. पैसे ख़त्म हो जाते, उधार लेकर शराब पीता. खुद सस्ती शराब पीता, कोई पिलाता, तो महँगी शराब पी लेता. इतनी शराब पी कि अस्पताल पहुँच गया. वहाँ से लौटा तो फिर शराब पीने लगा. इस तरह की कुछ और बातें पढ़ कर मैं उनकी रचनाओं की ओर बढ़ा.
(Satire by Priy Abhishek)

मैं चकित था कि कोई व्यक्ति बिना-पढ़े लिखे इतना अच्छा कैसे लिख सकता है. न बीए, न एमए. जीवनी में इसका कोई हवाला नहीं था. अजी शायर क्या, उन्हें दूसरा कबीर कहा जाना चाहिये. जैसे कबीरदास जी के लिये हमें बताया गया कि वे अनपढ़ थे, वैसे ही इन शायर साहब के लिये भी यही कहा जाना चाहिये. न उर्दू पढ़ी, न फ़ारसी. न हिंदी पढ़ी, न सँस्कृत. न किसी का दीवान पढ़ा, न मसनवी. न कोई महाकाव्य, न खण्डकाव्य. उसके बाद भी इतना बेहतरीन लिख गए. हो सकता है वे भी अपनी किसी रचना में ‘मसि कागद छुयो नहीं कलम गही नहिं हाथ’ जैसी कोई घोषणा कर गए हों. पर उनकी रचनाओं में ऐसा कुछ दिखा नहीं.

अपने देश में शायरों के जो किस्से चलते हैं उनसे लगता है कि वे पढ़ते-लिखते नहीं थे, नॉलिज उन पर नाज़िल होती थी. आज का युवा अगर उन शायरों के वे किस्से पढ़े, तो वह उर्दू भले ही न सीखे, दारू पीना ज़रूर सीख जाएगा. काफ़िया-रदीफ़ पहचाने या न पहचाने, देसी-अंग्रेजी ज़रूर पहचानने लगेगा. बहर बना पाए या न बना पाए, पैग ज़रूर बनाने लगेगा. खुद मेरा भी उनकी जीवनी पढ़ते-पढ़ते मूड बन गया. जीवनी पढ़ कर मुझे आज-कल के सोशल-मीडिया कवियों-लेखकों की याद आ गई. उनका प्रताप भी कुछ कम नहीं है.

वे सदैव ऑन-लाइन दिखते हैं. लम्बी-लम्बी प्रतिक्रियाएं लिखते हैं. किसी दिन हमें किसी अंग्रेज़ी अभिनेत्री के प्रताप से परिचित कराते हैं, फिर दूसरे दिन विष्णु-पुराण का विश्लेषण करते हैं. रात दो बजे तक अर्थव्यवस्था के किसी बिंदु पर किसी को पछींटते हैं. अपने ज्ञान के तेज से पन्द्रह-बीस को हप्प-हप्प करते हैं. फिर इस ट्रोला-ट्रोली के बीच यूँ ही किसी दिन घोषणा करते हैं- मेरा नया कविता संग्रह शीघ्र आपके हाथों में होगा. ऐसी ही एक घोषणा पढ़ कर मैं चकित रह गया कि इस शख़्स ने कविताएँ कब लिख डालीं? और यह सोच कर तो मूर्छित होते-होते बचा कि उपरोक्त गतिविधियों के अलावा, यह शख़्स एक नौकरी भी करता है, वो भी प्राइवेट. यह तभी सम्भव है जब यह कविताएँ लिखे नहीं, कविताएँ इस पर नाज़िल हों. फिर एक दिन वो कविता-संग्रह मेरे हाथों में आ पहुँचा.
(Satire by Priy Abhishek)

कविताएँ पढ़ के मैं आश्वस्त हो गया कि ये कविताएँ वास्तव में लिखी नहीं जा सकतीं. कोई माई का लाल ऐसी कविताएँ नहीं लिख सकता. मुझे आबे-ग़ुम के मियाँ बिशारत का ख़ानसामा याद आ गया. युसूफ़ी लिखते हैं- अपने कलाम के दैवीय होने में उसे कोई शक़ न था. शक़ औरों को भी नहीं था क्योंकि केवल अक़्ल या ख़ाली-ख़ूली इल्म के जोर से कोई शख़्स ऐसे ख़राब शे’र नहीं कह सकता. इसी तरह मैं भी आश्वस्त हूँ कि कोई कितना भी प्रयास कर ले, बिना ऊपर वाले की कृपा के इतनी ख़राब कविताएँ नहीं लिख सकता. ये कविताएँ, मामूली कविताएँ नहीं हैं. ये कवि पर नाज़िल हुई हैं. और ये किताब भी मामूली किताब नहीं है. ये आसमानी किताब है. ऐसी किताब को मैं मस्तक से लगाता हूँ, चूमता हूँ और पूजा की अलमारी में रख देता हूँ.
(Satire by Priy Abhishek)

अब मेरी पूजा की अलमारी आसमानी किताबों से भर चली है. हर हफ़्ते किसी न किसी प्रकाशन से कोई आसमानी किताब आ जाती है. मुझे लगता है कविता की इन आसमानी किताबों से एक दिन आसमान पट जायेगा.  फिर एक दिन कवि ने फ़ोन लगा कर पूछा- कैसी लगी मेरी कविताएँ? मैंने कहा- आपकी किताब मैंने कई मित्रों को पढ़ने को दी, सभी जानना चाहते हैं कि आप ऐसा कैसे लिख लेते हैं? वे शरमा गए- जी मैं कहाँ लिखता हूँ, सब ऊपर वाला लिखवाता है. मैंने कहा- जी मित्रों को भी कविताएँ पढ कर कुछ ऐसा ही लगा कि ये लिखी नहीं गई हैं, ऊपर वाले ने लिखवाई हैं. बिना दैवीय हस्तक्षेप के ऐसा लिखा जाना सम्भव नहीं है. फिर वे बोले- आपका लेखन भी कुछ ऐसा ही है जैसे ऊपर वाला लिखवा रहा हो. मैं आशंकित हो गया कि क्या वो सच में तारीफ कर रहे हैं, या मेरा व्यंग्य समझ गए हैं.

उन्होंने बात आगे बढ़ाई- दूसरे काव्य संग्रह की तैयारी कर रहा हूँ. देखिये कब प्रभु की कृपा होती है. मैंने कहा- जी सही कहा, बिना प्रभु कृपा के ये सब कहाँ सम्भव है. परन्तु उन शायर महोदय के सम्बंध में ऐसा नहीं है, जैसा दैवीय कृपा-पात्र कवि महोदय के साथ है.
(Satire by Priy Abhishek)

वे सच में बहुत आला-दर्जे के शायर थे. बहुत महान. मैं सोचता हूँ जिस तरह हज़ारों प्रकार की मदिरा आती हैं, और उनके अनेक प्रकार के कॉकटेल बनते हैं, हो सकता है ज्ञान उन्होंने शराब में घोल कर पी लिया हो और किसी को पता न चला हो. शाम को किसी बार में पहुँचे और कहा- एक स्मॉल फ़ारसी देना. बार अटेंडर ने पूछा- नीट लेंगे या उर्दू मिलाऊँ. और इस तरह ज्ञान को वो स्मॉल-स्मॉल लेते रहे. सम्भव है कि ये कोई रूपक हो, शराब हो ही न. पर रूपक से लिवर ख़राब नहीं हो सकता. उनके अद्भुत लेखन का रहस्य बना हुआ है.
(Satire by Priy Abhishek)

सुबह एक युवा साथी आये और बोले- प्रिय भैया, मैं शायरी लिखना सीख रहा हूँ, कुछ बताइये, क्या पढूँ. मैंने कहा- पढ़ने का तो पता नहीं, एक बहुत महान शायर की संक्षिप्त जीवनी पढ़ी थी, उस हिसाब से तुम शाम सात बजे से देसी के अहाते में बैठना शुरू करो. ग़ज़ल अपने आप आने लगेगी.
(Satire by Priy Abhishek)

प्रिय अभिषेक
मूलतः ग्वालियर से वास्ता रखने वाले प्रिय अभिषेक सोशल मीडिया पर अपने चुटीले लेखों और सुन्दर भाषा के लिए जाने जाते हैं. वर्तमान में भोपाल में कार्यरत हैं.

काफल ट्री के फेसबुक पेज को लाइक करें : Kafal Tree Online

Support Kafal Tree

.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

शेरवुड कॉलेज नैनीताल

शेरवुड कॉलेज, भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित किए गए पहले आवासीय विद्यालयों में से एक…

5 days ago

दीप पर्व में रंगोली

कभी गौर से देखना, दीप पर्व के ज्योत्सनालोक में सबसे सुंदर तस्वीर रंगोली बनाती हुई एक…

6 days ago

इस बार दो दिन मनाएं दीपावली

शायद यह पहला अवसर होगा जब दीपावली दो दिन मनाई जाएगी. मंगलवार 29 अक्टूबर को…

7 days ago

गुम : रजनीश की कविता

तकलीफ़ तो बहुत हुए थी... तेरे आख़िरी अलविदा के बाद। तकलीफ़ तो बहुत हुए थी,…

1 week ago

मैं जहां-जहां चलूंगा तेरा साया साथ होगा

चाणक्य! डीएसबी राजकीय स्नात्तकोत्तर महाविद्यालय नैनीताल. तल्ली ताल से फांसी गधेरे की चढ़ाई चढ़, चार…

2 weeks ago

विसर्जन : रजनीश की कविता

देह तोड़ी है एक रिश्ते ने…   आख़िरी बूँद पानी का भी न दे पाया. आख़िरी…

2 weeks ago