शकुनाखर (Shakunakhar) उत्तराखण्ड (Uttarakhand) के कुमाऊँ मंडल में किसी भी शुभ कार्य की शरुआत से पहले गाये जाने वाले गीत हैं. शकुन का अर्थ है शगुन और आखर मतलब अक्षर. इस तरह यह नाम शगुन के मौके पर गाए जाने वाले अक्षरों का बोध करता है. धार्मिक संस्कारों एवं अन्य मांगलिक अवसरों को शुरू करने के गाये जाने वाले मंगलगीत शकुनाखर कहे जाते हैं. नामकरण, यज्ञोपवीत, विवाह सहित सभी मांगलिक अवसरों पर यह गाये जाते हैं. गढ़वाल में इन्हें मांगलगीत ही कहा जाता है और कुमाऊँ में शकुनाखर.
शकुनाखर को महिलाएं ही गाया करती हैं. इन गीतों में संबंधित कार्य के निर्विघ्न संपन्न होने के लिए इष्ट देवों, देवी-देवताओं से आशीर्वाद माँगा जाता है. इसमें परिवार के लिए शांति, सुख-समृद्धि और सभी परिवारीजनों की लम्बी उम्र की भी कामना की जाती है.
शकुना दे, शकुना दे काजौ यो अति नीको,
ओ रंगीलो!
पाटलैं आंचली कमल को फूल
सोई फूल ओलावंत आद्या हमरो होलो
सोई फूल मोलावंत सिद्धि गणेश!
रामिचंद्र, लछिमन, भरत-चरत, लव-कुश, जीव जनम
आद्या हमरो होलो!
सोई फूल मोलावंत (घर के पुरुषों के नामों का उच्चारण…)
सोई पात पैरी रैन रिद्धि-बुद्धि, देवी सीता, देई उमारानी!
बहूरानी आयुवंती पुत्रेवन्ति होय! सोई पाट पैरी रैन…
(घर की महिलाओं के नामों का उच्चारण…)
सकुना बोल स्वरसती लगन विरस्पति
बोल सुकेसर स्वरसती बोल!
कसोकोट वालो जर्मों कर कोट धाई-बधाई!
ऊंचाकोट बाले जर्मों कर कोट ढाई-बधाई!
कौशल्या जिया होली, दसरथ बाबा,
राम रे लछिमन जति जनम होई गया!
जाना जाना छुरी छुमेरी, बमन बुल्या लानूँ
शकुनाखरों में क्षेत्र विशेष के गीतों में कही जाने वाली देव शक्तियों अथवा शुभ वस्तुओं के उल्लेख में भिन्नता होती है. लेकिन भाव के स्तर पर यह एक जैसे ही हुआ करते हैं. जोहार के शकुनाखर में वही भी वही भावना अभिव्यक्त होती है जो कि कुमाऊँ के शकुनाखर या गढ़वाल के मंगल गीतों में. हुड़के की गमक और हुड़किया बौल
शकुना दे शगुना दे, भला-भला रे सगुना सुन!
पैंली क शगुन भेंटो, दांतुली दूब, पिंगली पिठांग!
उती का शगुन भेंटो, जौंला घाड़ा जान जौंला चेचु
(जोहार के स्वर, शेर सिंह पांगती)
धार्मिक संस्कारों और अनुष्ठानिक कामों के अलावा कई सामाजिक कामों के निर्विघ्न समापन के लिए भी शकुनाखर गाये जाते हैं. अक्सर सामूहिक रूप से निपटाए जाने वाले कई सामाजिक के लिए शकुनाखर कहे जाते हैं. सामूहिक रूप से फसल की रोपाई, गुड़ाई, कटाई के मौके पर महिलाएं शकुनाखर गाकर अपने इष्ट देवों का आशीर्वाद लेना नहीं भूलतीं. पारंपरिक लोक-संगीत की धरोहर ‘हरदा सूरदास’
दैना होया, दैन होया, पंचनामा देवो,
दैना होया, दैन होया भूमि का भुम्याल!
दैना होया, दैन होया पंचनाम देवो!
स्योल दिया, बिदो दिया हो धरती माता
हलद बलद बरोबरी दिया हो!!
कत्यूर झाली-माली देवी, कत्यूर नीली छ चौड़ी
कत्यूर कोटै की माई त्वी देवी सबी होए दैनी
पिनाकी देवा हो पिनाकी देवा!
सुफल हो जाया हो पिनाकी देवा!
स्योल दिया हो बिदो लग हो पिनाकी देवा!!
(उत्तराखण्ड ज्ञानकोष, प्रो. डी.डी. शर्मा, के आधार पर)
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