वरिष्ठ पत्रकार, कवि-साहित्यकार, सेवानिवृत शिक्षक व उत्तरांचल प्रेस क्लब के संस्थापक सदस्यों में शामिल रहे सुरेंद्र पुंडीर जी का आज सुबह 8 बजे मसूरी में निधन हो गया. वे करीब 64 वर्ष के थे. सुरेंद्र भाई कल देहरादून से मसूरी गांधीजी पर आयोजित कार्यक्रम में शामिल होने गए थे और पूर्णतः स्वस्थ थे. आज सुबह अपने मसूरी के लंढौर स्थित घर में हृदयगति रुक जाने से उनका निधन हो गया. उनकी अंतिम यात्रा दोपहर 12 बजे मसूरी से हरिद्वार के लिए निकलेगी. Senior Uttarakhand Journalist Surendra Pundir Dead
सुरेंद्र भाई मसूरी और देहरादून के साहित्यिक परिवेश के एक जाना पहचाना नाम थे. मसूरी में साहित्यिक संस्था “अलीक” के संस्थापकों में भी वे रहे हैं और उनकी सक्रियता के चलते 1990 के दशक के आखिर तक मसूरी और आसपास अलीक की मासिक साहित्यिक गोष्ठियां नियमित तौर पर होती रहीं. उनकी कुछ पुस्तकें भी प्रकाशित हुईं. प्रदेश में कहीं ही होने वाले साहित्यिक आयोजनों में उनकी मौजूदगी तकरीबन हमेशा रहती थी. Senior Uttarakhand Journalist Surendra Pundir Dead
एक पत्रकार के तौर पर सुरेंद्र भाई 1986 में अमर उजाला की शुरुआती टीम के साथ मसूरी से संवाददाता के तौर पर जुड़े और लम्बे समय तक सक्रिय रहे. बाद में मसूरी टाइम्स समेत कुछ अन्य पत्रों से भी उनका जुड़ाव रहा. 1994 में जब दून (उत्तरांचल) प्रेस क्लब की स्थापना हुई तो वे उसके संस्थापक सदस्यों में शामिल रहे. प्रेस क्लब की शुरुआती कार्यकारिणी में मसूरी से वे कार्यकारिणी सदस्य भी रह चुके हैं. उन्होंने जौनपुर ब्लाक स्थित इंटर कॉलेज घोड़ाखुरी में कर डेढ़ दशक तक अध्यापक के तौर पर भी कार्य किया. अभी 3-4 साल पूर्व ही वे वहां से सेवानिवृत हुए. मसूरी के अलावा वे काफी समय से देहरादून में भी रह रहे थे. हर छोटे-बड़े को “गुरजी” कह कर सम्बोधित करने वाला उनका खास अंदाज मसूरी से लेकर देहरादून और यहां से बाहर भी उन्हें जानने वालों के बीच उनकी खास पहचान बना था. सहज, सरल, सौम्य, ईमानदार और परिश्रमी सुरेंद्र भाई को नमन. Senior Uttarakhand Journalist Surendra Pundir Dead
[जीतेन्द्र अन्थवाल की फेसबुक वॉल से साभार]
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…
उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…
(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…
पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…
आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…
“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…