पहाड़ों में इन दिनों होता है आनन्द और उत्सव का माहौल. अगले कुछ दिन गाँव के लोग मिलकर आंगन में खेल लगाते नज़र आयेंगे. अनेक तरह के लोकगीत जैसे – झोड़े, झुमटा, चांचरी आदि गाते पहाड़ी झूमते नज़र आयेंगे. आनन्द और उत्सव का माहौल का कारण है सातों-आठों का लोकपर्व. सातों-आठों कुमाऊं का प्रमुख लोकपर्व है. इस लोकपर्व में गमारा दीदी और महेश भिना पूजे जाते हैं.
(Saton Aathon Festival Uttarakhand 2024)
सातों आठों का यह लोकपर्व आज से शुरू गया है. आज का दिन बिरुण पंचमी कहलाता है. बिरुण पंचमी के दिन पर पढ़िये कुलदीप सिंह महर की फ़ेसबुक वॉल से एक पोस्ट –
आज बिरुण पंचमी है. सुबह-शाम गुनगुनी ठंड का आगाज. हमारे घर की महिलायें मिलकर इकट्ठे नौले (पानी का चश्मा) जाकर बिरुढ़ धोऐंगी और कल के लिये तांबे के बर्तन में भिगाकर रख देंगी.
गमारा (गौरा) की आकृति बनाने में धान की पौध, सौं, तिल, बलो घास का उपयोग होता है. इसमें सौं (सौतन) का प्रतीक है. गमारा महेश्वर से कहती है –
मैंने सौ घड़े पानी घर में भरकर रखे हैं, तू नदी किनारे सौतन संग क्यों है. लगाया बिस्तर सड़ने को है घड़े सूखने को हैं घर आजा. महेश्वर कहते हैं सौतन संग रहना मंजूर कर तब घर आउंगा.
इसी सन्दर्भ में कासनी गाँव की महिला ने गमारा की आकृति को झक-झोरते हुए कहा – तू जो सौतन को स्वीकार नहीं करती तो सौतन की परंपरा ही नहीं पनपती. हास्य विनोद भी खूब होता है इस पर्व में.
(Saton Aathon Festival Uttarakhand 2024)
कुलदीप सिंह महर
पिथौरागढ़ के विण गांव में रहने वाले कुलदीप सिंह महर सोशल मीडिया में जनसरोकारों से जुड़े लेखन के लिए लोकप्रिय हैं.
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