प्रिय अभिषेक

पूँजीपुर रेलवे स्टेशन पर क्रांति एक्सप्रेस

पूँजीपुर के रेलवे स्टेशन पर क्रांति एक्सप्रेस के यात्री अपनी ट्रेन की प्रतीक्षा में खड़े थे. सभी ने पूँजीपुर के बाज़ार से मोबाइल फ़ोन खरीदे थे,  जिसमें ट्रेन की वास्तविक स्थिति बताने वाला ऐप डाऊनलोड किया गया था. ऐप बता रहा था कि क्रांति एक्सप्रेस बस कुछ किलोमीटर दूर है. उन्हें विश्वास था कि पूँजी स्टोर से डाऊनलोड किया गया ये ऐप,  ट्रेन की वास्तविक एवं सही-सही स्थिति बताता है. हालाँकि ऐप पर ट्रेन की ये पोज़िशन एक लम्बे समय से नहीं बदली थी.

उनमें से कुछ सत्तर-पिचहत्तर साल के हो चुके थे,  कुछ अस्सी-पिचासी भी पहुँच चुके थे. वे लम्बे समय से,  इस स्थान पर,  प्रतीक्षारत थे. उन सब ने वहीं स्टेशन पर ही पाँच-पाँच हज़ार दोस्त बना लिये थे,  अब उनका समय बहुत अच्छे से कट रहा था. गप्पें-टप्पें चल रही थीं – ‘कुछ नहीं किया इस सरकार ने,  इस बार तो खेल ख़त्म है,  बुरी तरह हारेंगे आदि.’

पूँजीपुर के कुछ दक्षिणपंथी भी वहाँ खड़े थे और उनसे भिड़ रहे थे. मिनट, घण्टों में बदलते गये और घण्टे, दिनों में. पर क्रान्तिएक्सप्रेस नहीं आई, तो नहीं आई. वे सब प्लेटफॉर्म के किनारे, पटरियों के ऊपर झुक-झुक कर ट्रेन की राह देखते रहते.

अचानक एक दिन घोषणा हुई – क्रान्ति एक्सप्रेस प्लेटफॉर्म क्रमांक एक – फेसबुक प्लेटफॉर्म की जगह प्लेटफॉर्म क्रमांक दो –  इंस्टाग्राम से जाएगी. वे सब अपने पाँच हज़ार दोस्तों के साथ लदर-पदर करते,  गिरते-पड़ते प्लेटफॉर्म क्रमांक दो पर पहुँचे. सब बहुत प्रसन्न थे कि लम्बी प्रतीक्षा के बाद,  ट्रेन आने वाली है. और इस बार,  बहुत दिनों बाद ट्रेन सच में आ पहुँची.

पूँजीपुर के यार्ड से ट्रेन को लाल रंग से पोत कर भेजा गया था. यात्री बहुत प्रसन्न हुए कि ट्रेन आ गई. सब एक-दूसरे से पूछने लगे कि भाईसाहब कविता वाला डिब्बा किधर आयेगा? इतिहासकारों की बोगी आगे लगती है या पीछे? कोई कहता- कोच डिस्प्ले देखिये.

कोच डिस्प्ले पर सभी बोगियों की वास्तविक सही-सही स्थिति आ रही थी. कविता, इतिहास,  पेंटिंग,  एनजीओ,  पेंट्रीकार सबकी.

एक वृद्ध शख़्स छड़ी टेकते हुए आये और टीटीई से पूछा  – ‘भाईसाहब मेरा एनजीओ है और मैं कविता भी लिखता हूँ. मैं कहाँ बैठूँ?’

टीटीई ने कहा -‘दोनों ही डिब्बे खचाखच भरे हैं. कोई जगह खाली नहीं है. आप अगली ट्रेन से आ जाइयेगा.’

वे बोले -‘मैं सालों से इसकी प्रतीक्षा कर रहा हूँ. अब इसे मिस नहीं करना चाहता. वैसे मैं कहानियां भी लिखता हूँ.’

टीटीई अपना चार्ट देखा – ‘कहानी के डिब्बे में एक जगह खाली है. लेकिन कोई महिला कहानीकार आई तो जगह खाली करनी पड़ेगी.’

‘कोई बात नहीं मैं खड़ा होकर चला जाऊँगा.’ वे बोले और छड़ी टिका कर तेजी से कहानी की बोगी की ओर बढ़ गये.

स्टेशन पर भारी अफरातफरी मची हुई थी. अनेक युवक-युवतियां टीटीई को घेरे खड़े थे. कोई शायर था,  तो कोई कवि. कोई चित्रकार, तो कोई कलाकार. कोई भी उस क्रांति की ट्रेन को मिस नहीं करना चाहता था,  पर जगह सीमित थीं. अचानक ट्रेन ने सीटी बजाई और चल पड़ी.

जो लोग स्टेशन पर छूट गए,  वे निराश थे. अब क्या करें? अगली ट्रेन आने में अभी समय है. एक ने कहा- ‘चलो वीडियो ऐप वाले प्लेटफॉर्म पर चलें. वहाँ संघी इकट्ठे हैं. उनको हराएंगे.’  दूसरे ने कहा – ‘तुम लोग जाओ, मुझे अमेज़न से कुछ ख़रीदारी करनी है.’

ट्रेन में बहुत अच्छी व्यवस्था थी. बेहतरीन भोजन, शराब का इंतज़ाम था. पूरी ट्रेन वातानुकूलित थी.कहीं सेमिनार चल रहे थे, तो कहीं काव्य गोष्ठी.

‘ये सारे डिब्बे तो एक दूसरे से जुड़े हैं. कहीं से भी कहीं जा सकते हो. मैं खामख्वाह में टीटीई से हाथ जोड़ रहा था. कहानी क्या,  इतिहास-अर्थशास्त्र कुछ भी बता कर घुस जाता. क्या शानदार ट्रेन है’- टीटीई से सीट माँगने वाले उन वृद्ध ने सोचा और फिर परोसी गई प्लेट से फिश टिक्का का टुकड़ा उठाकर मुँह में डाल लिया. उनके बगल में एक सुंदर कहानीकार विराजमान थी.

एक डिब्बे में पुरस्कार वितरण चल रहा था. दूसरे में परिचर्चा. तभी वहाँ से एक सफाईकर्मी निकला. एक युवा चिल्लाया – ‘इस सफाईकर्मी के हाथों में दस्ताने नहीं है. कितनी बुरी परिस्थिति में ये लोग काम कर रहे हैं. हम ऐसा नहीं होने देंगे. हम यहीं पर अभी धरना देंगे. रेल प्रशासन को हमारी बात सुननी होगी.’

‘हाँ! हाँ! सुननी होगी. हम भी तुम्हारे साथ धरने पर बैठेंगे.’ उसके साथियों ने कहा. और वे सब वहाँ धरने पर बैठ गए.

कोचअधीक्षक को ख़बर लगी तो वह तत्काल वहाँ आया और माफ़ी माँगी. तत्काल दस्ताने मंगवाए गये और उस सफाईकर्मी को पहनाए गये. धरने पर बैठे लोगों ने एक-दूसरे को बधाई दी. उन्होंने सरकार को झुका लिया था.

पूरी ट्रेन में ये ख़बर फैल गई कि एक्टिविस्ट कोच में एक युवा ने अकेले,  अपनी दम पर सरकार को झुका लिया. उसके प्रयासों से सफाईकर्मीयों की स्थिति सुधर गई. सब प्रसन्न थे. उन्हें उनका नायक मिल गया था.

‘अब हमें हमारी ताक़त का अहसास हो गया है. हमारा नायक हमें नई दिशा देगा. अब तो ये सरकार गई समझो.  क्रांति स्टेशन अब दूर नहीं है.

ट्रेन धीमी होने लगी. गंतव्य आने वाला था. वे सब नाचने-गाने लगे. उनमें से कुछ,  जिनके लम्बे खूबसूरत बाल और करीने से कटी दाढ़ी थी,  जिन्होंने लाल कुर्ते पहने थे और गले में गमछा डाला था,  वे ढपली बजा रहे थे. जब वे सिर ऊपर कर के ढपली बजाते तो उनके बाल हवा में लहराते थे. कुछ,  जिन्होंने बाघ-बगरू के सुंदर सूट पहने थे,  जिनके कान में हस्तशिल्प के सुंदर कुंडल थे,  वे क्रांति के गीत गा रहीं थी.

ट्रेन रुकी और दरवाजा खुला. ठीक सामने प्लेटफार्म था. स्टेशन का नाम लिखा था – पूँजीपुर.

‘पूँजीपुर?’ ये क्या कोई दूसरा पूँजीपुर है. हम अभी पहुँचे नहीं क्या?’ उनमें से एक ने चारों ओर देखते हुए कहा.

‘नहीं यार, स्टेशन तो वैसा ही दिख रहा है, ‘ दूसरे ने चारों ओर देखते हुए उत्तर दिया, ‘ये तो वही पूँजीपुर है यार, जहाँ से ट्रेन में चढ़े थे.’

‘तो क्या ट्रेन लौट कर वहीं आ गई क्या?’

‘लौट कर आ गई? मुझे तो लगता है ट्रेन कहीं गई ही नहीं. यहीँ खड़ी रही, ‘ उन वृद्ध ने कहा. उनके साथ बैठी कमसिन कहानीकार गायब थी. ‘हम सब के साथ धोखा हुआ है, ‘ वे ज़ोर से चीखे. कमसिन कहानीकार को आस-पास न पा कर उन्हें धोखे का अहसास हुआ.

‘नहीं, मुझे अच्छे से याद है ट्रेन चली थी. कुछ साथी छूट भी गये थे. मुझे लगता है ये चक्कर लगा कर वापस आ गई है.’ एक स्वप्नलोकीय समाजवादी ने कहा.

‘न तो ट्रेन गई, न ट्रेन ठहरी रही, ‘ एक तीसरा विचारक बोला, ‘ ये यहीं आगे-पीछे हो रही थी, आगे-पीछे.’

अब युवाओं को क्रोध आने लगा. वे चीखे, ‘हम सब यहीं प्लेटफॉर्म पर धरना देंगे. आमरण अनशन. हमें यहीं क्रांति स्टेशन उपलब्ध कराया जाय. यहाँ,  अभी के अभी. वरना हम सरकार की ईंट से ईंट बजा देंगे.’

वे सब अनशन पर बैठ गए. तभी वो ढपली वादक भागता हुआ आया और ज़ोर से चीखा, ‘साथियों! प्लेटफॉर्म नम्बर आठ पर नया वीडियो एप आया है. जिसमें आप महान लोगों के कपड़े पहन कर उनके जैसे दिख सकते हो. संघी, सावरकर जैसे कपड़े पहन कर वीडियो डाल रहे हैं. चलो हम भी चे-ग्वारा जैसी टोपी और भगत सिंह जैसी दाढ़ी रख कर वीडियो डालें और संघियो को सबक सिखा दें.

वे सब अपने पाँच हज़ार दोस्तों के साथ लदर-पदर करते,  गिरते-पड़ते प्लेटफॉर्म नम्बर आठ की ओर भागे. पूँजीपुर गुलज़ार रहा.

प्रिय अभिषेक
मूलतः ग्वालियर से वास्ता रखने वाले प्रिय अभिषेक सोशल मीडिया पर अपने चुटीले लेखों और सुन्दर भाषा के लिए जाने जाते हैं. वर्तमान में भोपाल में कार्यरत हैं.

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