समाजसेवा और सिक्ख एक दूसरे के पर्याय हैं. पूरे विश्वभर में आपातकालीन स्थितियों में सेवा देने के लिए सिक्ख समाज सबसे पहले नजर आता है. गुरुद्वारों में चलने वाले लंगर से करोड़ों लोग अपनी भूख प्यास मिटाते हैं. उत्तराखंड की तराई में बसे प्रमुख शहर रुद्रपुर में भी एक ऐसा ही जाना पहचाना चेहरा आपको निःस्वार्थ भाव से शहर भर में पौधे लगाने और उनको बचाने के काम में जुटा हुआ मिलता है. ये हैं इलाहाबाद बैंक के सेवानिवृत्त अधिकारी सरदार मनमोहन सिंह. Sardar Manmohan Singh Rudrapur
रुद्रपुर शहर के बीच से गुजरने वाले दो मुख्य हाइवे और शहर के बीच की मुख्य सड़कों की डिवाइडर पर कनेर, बोगेनबेलिया और फाइकस के हजारों लहलहाते हरे पौधे सरदार मनमोहन सिंह के अथक प्रयासों और पर्यावरण संरक्षण के प्रति पूर्ण समर्पण की बेजोड़ दास्तान खुद बयान करते हैं.
रुद्रपुर शहर के हर वाशिंदे ने सर्दी-गर्मी-बरसात में 71 वर्षीय सरदार मनमोहन सिंह को उनकी कार के साथ रोजाना सुबह-शाम इन पौधों की देखभाल और खाद-पानी देने में जुटे हुए देखा है. इस मारुति 800 कार में सरदार मनमोहन सिंह ने पौधों की सिंचाई के लिए पानी के दो बड़े ड्रम और स्प्रे पम्प सिस्टम लगाकर शहर को हरा-भरा बनाने के काम में पूरी तरह लगा दिया है.
शहर को हराभरा बनाने के लिए बरसात के दिनों में पेड़ लगाकर खानापूर्ति करने की बजाय सरदार मनमोहन सिंह ने डिवाइडर के बीच की जमीन पर और कुछ स्थानों पर बड़े गमले रखवाकर शहर भर में 5 हजार से ज्यादा पेड़ लगाए और उनको बचाने का भी संकल्प लिया.
नियमित
देखभाल और खाद-पानी मिलने के कारण अब सभी पौधे रुद्रपुर शहर को एक नई खूबसूरती
प्रदान कर रहे हैं. इसके अलावा बरसात के मौसम में उन्होंने हजारों पौधों का
निशुल्क वितरण किया. रुद्रपुर में हुए औद्योगिकीकरण और बढ़ती जनसंख्या के कारण यह
शहर भारी प्रदूषण की गम्भीर समस्या से जूझ रहा है, जनप्रतिनिधियों और सरकारी योजनाओं से
शहर का कोई उद्धार होता नजर नहीं आ रहा है. ऐसे में सरदार मनमोहन सिंह जैसे
पर्यावरणकर्मी के निस्वार्थ प्रयास ही लोगों को समाधान की दिशा में नया रास्ता
दिखाने का काम कर रहे हैं.
रुद्रपुर
शहर में राजनीतिक समीकरणों को साधने के लिए हर बड़े चौराहे पर महापुरुषों की
मूर्तियां लगवा दी गई हैं. देश के अन्य चौराहों की तरह यहां भी साल में एक दो दिन
मूर्तियों पर माला डाली जाती है, बाकी समय यह मूर्तियां धूल-गंदगी से
सनी रहती हैं.
सरदार मनमोहन सिंह ने इन महापुरुषों की मूर्तियों की सफाई का और चौराहों के सौंदर्यीकरण का काम भी खुद-ब-खुद संभाल लिया. अब कई मुख्य चौराहों पर वह नियमित रूप से पेंटिंग करवाते हैं, फूलों से भरे गमले रखवाकर उनकी भी देखभाल करते हैं. जब कभी आप रुद्रपुर शहर से गुजरें तो चौराहों की सफाई देखकर सरदार मनमोहन सिंह को जरूर याद करें. Sardar Manmohan Singh Rudrapur
कठोर जाड़े के दिनों तराई क्षेत्र में लगने वाले घनघोर कोहरे के बीच सुबह सुबह मजदूरों के अड्डे पर भारी भीड़ के बीच आप सरदार मनमोहन सिंह को गर्म चाय और बिस्कुट बांटते हुए देख सकते हैं. वह अपने खर्चे से अलाव जलाने की भी पुख्ता व्यवस्था भी करवाते हैं. ठण्ड से ठिठुरते हुए दिहाड़ी की खोज में पहुंचे मजदूरों को चाय-बिस्कुट बांटने वाले सरदार जी का इंतजार रहता है. ठण्ड के दिनों में रुद्रपुर के विभिन्न स्कूलों में प्रतियोगी परीक्षाएं देने के लिए दूर दूर से आने वाले परीक्षार्थियों के लिए भी सरदार मनमोहन सिंह अलाव और चाय-बिस्कुट का प्रबंध करते हुए अक्सर देखे जा सकते हैं.
सरदार मनमोहन सिंह बताते हैं कि उनके पिता सुभाष चन्द्र बोस की आजाद हिंद फौज के सिपाही रहे, उन्होंने लगभग 7 साल कालापानी की सजा भी झेली और देश की आजादी के बाद उनका परिवार रुद्रपुर आकर बस गया. इन सभी सामाजिक कार्यों का खर्चा वह अपनी पेंशन निकालते हैं साथ ही विदेशों में रह रहे उनके बेटा और बेटी भी इस काम में आर्थिक सहयोग देते हैं. विभिन्न सामाजिक और राजनीतिक विषयों पर सरदार मनमोहन सिंह जी के लेख भी स्थानीय पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते हैं.
सरदार मनमोहन सिंह के व्यक्तिगत स्तर पर किए गए महत्वपूर्ण सामाजिक कार्यों को अब तक बड़े स्तर पर पहचान तो नहीं मिल पाई है, लेकिन उनके समाजसेवी कार्य से जुड़ रहे लोगों को देखकर यह आसानी से समझा जा सकता है कि रूद्रपुर शहर के नागरिक अब अपनी सामाजिक जिम्मेदारियों के प्रति जागरूक होने लगे हैं. Sardar Manmohan Singh Rudrapur
काफल ट्री के फेसबुक पेज को लाइक करें : Kafal Tree Online
हेम पंत मूलतः पिथौरागढ़ के रहने वाले हैं. वर्तमान में रुद्रपुर में कार्यरत हैं. हेम पंत उत्तराखंड में सांस्कृतिक चेतना फैलाने का कार्य कर रहे ‘क्रियेटिव उत्तराखंड’ के एक सक्रिय सदस्य हैं. उनसे hempantt@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है.
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
लम्बी बीमारी के बाद हरिप्रिया गहतोड़ी का 75 वर्ष की आयु में निधन हो गया.…
इगास पर्व पर उपरोक्त गढ़वाली लोकगीत गाते हुए, भैलों खेलते, गोल-घेरे में घूमते हुए स्त्री और …
तस्वीरें बोलती हैं... तस्वीरें कुछ छिपाती नहीं, वे जैसी होती हैं वैसी ही दिखती हैं.…
उत्तराखंड, जिसे अक्सर "देवभूमि" के नाम से जाना जाता है, अपने पहाड़ी परिदृश्यों, घने जंगलों,…
शेरवुड कॉलेज, भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित किए गए पहले आवासीय विद्यालयों में से एक…
कभी गौर से देखना, दीप पर्व के ज्योत्सनालोक में सबसे सुंदर तस्वीर रंगोली बनाती हुई एक…
View Comments
ऐसे अद्भुत व्यक्ति को नमन..
जै जै. सुच्चे बादशाह.