हर साल वनाग्नि के कारण उत्तराखंड राज्य की बहुमूल्य सम्पति, इसकी धरोहर जल कर नष्ट हो रहे हैं. हर साल हजारों हैक्टेयर जंगल वनाग्नि में जल कर राख हो रहे हैं. इस साल राज्य मे लगभग 1400 वनाग्नि की घटनायें सामने आई हैं जिसमें 2000 हैक्टेयर जंगल जल कर राख हो चुका है.
आखिर इस वनाग्नि का यूं दहक उठना और जंगलों का जल कर यूं राख हो जाना, इन सब के पीछे कारण क्या है?
कारण साफ है वन विभाग और क्षेत्रीय लोगों की लापरवाही. ग्रीष्म ऋतु के आने से पहले वन विभाग का कार्य होता है कि वे जगंल में फायर लाईन बनाये जिससे जंगल में आग न फैले परंतु वन विभाग अपना कार्य ठीक तरह से नहीं करते तो वहीं दूसरी ओर क्षेत्री लोगों की लापरवाही भी कम नहीं है, लोग जंगलो में आधी बुझी बीड़ी, सिगरेट या माचिस की तिली को फेंक देते हैं और देखते ही देखते वो जरा सी चिंगारी भीषण आग का रूप ले लेती है.
हमारी जरा सी लापरवाही बहुमूल्य जीव जंतुओं को पल भर में राख कर देती है. इन वनाग्नि के कारण देवदार, सुरई, बाँज जैसी कई प्रजातियों के जंगल जल कर राख हो जाते हैं, जिनकी जगह चीण के जंगल ले लेते हैं. जिसका सीधा असर उस क्षेत्र की जैव विविधता और जल स्रोत पर पड़ता है.
ओडाखान, नैनीताल डिस्ट्रीक में बसे गांव के नरेंद्र रैकवाल ने बताया कुछ दशक पहले तक ओडाखान और आस-पास के गाँव में बाँज का घने जंगल हुआ करता थे, परंतु क्षेत्र में लगी वनाग्नि के बाद वहां चीड़ का जंगल पनप गये. नतीजा ये है कि एक समय जल स्रोतों से भरे रहने वाले गाँव में अब कुछ ही स्रोत जीवित रह गए हैं जिनकी गति भी घट गई है.
बात यहीं खत्म नहीं होती है वनाग्नि के कारण जलते वनों से निकालता धुआँ वातावरण में कार्बन डाई आक्साइड तथा कार्बन मोनो आक्साइड जैसी हानिकारक गैसों की मात्रा में तेजी से बढ़ाता है, जिससे तापमान में इजाफा होता है तथा अन्य स्वास सम्बन्धित बीमारियों के खतरे भी बड़ जाते हैं.
एक और जहाँ हम पेड़ लगाओ जीवन बचाओ जैसे मुद्दों पर चर्चा करते हैं और इसकी पहल के लिए लोगों को जागरूक करते हैं तो वही खुद की लापरवाही के कारण वनाग्नि से जगंलो को नष्ट करते हैं. हमे पेड़ लगाओ जीवन बचाओ की पहल के साथ लापरवाही पर रोक लगाओ वनाग्नि से जीव जंतुओं बचाओ की पहल भी शुरू करनी चाहिए.
क्योंकि जितनी मात्रा में हमें एक विकसित पेड़ ऑक्सीजन तथा अन्य NTFP दे सकता है उतनी मात्रा में एक ऑक्सीजन नये छोटे पेड़ों से नहीं मिलती, इसलिए हमारी पहल ये होनी चाहिए कि नये पेड़ हम लगायें साथ ही मौजूदा पेड़ों और जंगलो की हिफाजत को अपना लक्ष्य बनायें.
डिसक्लेमर : यह लेखक के निजी विचार हैं.
यह लेख काफल ट्री की ईमेल आईडी पर यशी गुप्ता ने भेजा है. यशी वर्तमान में Centre for Ecology Development and Research (CEDAR) में जूनियर रिसर्च एसोसिएट हैं.
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…
उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…
(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…
पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…
आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…
“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…